5 वैज्ञानिक तरीके जो पराली जलाने की समस्या खत्म कर देंगे, मिट्टी भी बचेगी, कमाई भी बढ़ेगी

Stubble Management: हर साल अक्टूबर-नवंबर में उत्तर भारत के खेतों से धुएं की काली चादर छा जाती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर में पराली जलाने से वायु प्रदूषण चरम पर पहुंच जाता है। लेकिन ये सिर्फ हवा की समस्या नहीं – मिट्टी की सेहत का भी सवाल है। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद जैविक कार्बन, नाइट्रोजन और सूक्ष्म पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। तापमान 500-600 डिग्री तक पहुंचने से मिट्टी की जैव विविधता मर जाती है, केंचुए और लाभकारी बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, मिट्टी की जल धारण क्षमता घटती है, उर्वरता कम होती है और अगली फसल के लिए ज्यादा रासायनिक खाद लगानी पड़ती है।

एक अध्ययन के अनुसार, पराली जलाने से प्रति हेक्टेयर 20-30 किलो नाइट्रोजन, 5-10 किलो फॉस्फोरस और 50-100 किलो पोटाश बर्बाद हो जाता है। लेकिन अच्छी खबर ये है कि बेहतर विकल्प उपलब्ध हैं – इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन। कई किसानों ने इन्हें अपनाकर न सिर्फ मिट्टी बचाई, बल्कि आय भी बढ़ाई।

इन-सीटू प्रबंधन, पराली को खेत में ही मिलाकर मिट्टी को उपजाऊ बनाएं

इन-सीटू का मतलब है पराली को खेत में ही प्रबंधित करना। सबसे आसान तरीका है इसे मिट्टी में मिलाना। हैप्पी सीडर या जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बुवाई सीधे पराली पर करें। मशीन पराली को काटकर मिट्टी में दबा देती है। इससे पराली सड़कर जैविक खाद बन जाती है। पंजाब के किसान गुरमीत सिंह ने 10 एकड़ में ये तरीका अपनाया। पहले वे पराली जलाते थे, लेकिन 2023 से हैप्पी सीडर इस्तेमाल कर रहे हैं। परिणाम? मिट्टी में कार्बन 20% बढ़ा, खाद की जरूरत 30% घटी, और गेहूं की उपज 15% बढ़ी।

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सरकार सब्सिडी देती है – हैप्पी सीडर पर 50% तक। दूसरा तरीका है डीकंपोजर स्प्रे। इफको का नैनो डीकंपोजर या गोबर-गोमूत्र का घोल स्प्रे करें। 20-25 दिनों में पराली सड़कर खाद बन जाती है। हरियाणा के किसान रामेश्वर ने 5 एकड़ में ये किया – लागत सिर्फ 500 रुपये/एकड़, लेकिन अगली फसल में 10 क्विंटल ज्यादा उपज।

एक्स-सीटू प्रबंधन, पराली से खाद, चारा और ऊर्जा का उत्पादन

एक्स-सीटू में पराली को खेत से बाहर ले जाकर उपयोग करें। पहला विकल्प है कम्पोस्ट बनाना। पराली को गोबर, गोमूत्र और डीकंपोजर के साथ मिलाकर 45-60 दिनों में वर्मीकम्पोस्ट तैयार करें। उत्तर प्रदेश के किसान अजय यादव ने 20 एकड़ की पराली से 50 टन कम्पोस्ट बनाया, जिसे 500 रुपये/क्विंटल बेचकर 25,000 रुपये कमाए। दूसरा है चारा बनाना। पराली को यूरिया ट्रीटमेंट से साइलेज बनाएं। पंजाब डेयरी फार्मर्स इसे 200 रुपये/क्विंटल खरीदते हैं। तीसरा है बायोएनर्जी। पराली से बायोगैस या बिजली बनाएं। पंजाब में 10 MW का प्लांट पराली से चलता है। किसान को प्रति टन 1500 रुपये मिलते हैं। ये विकल्प न सिर्फ प्रदूषण रोकते हैं, बल्कि अतिरिक्त आय देते हैं।

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किसानों की प्रेरणादायक कहानियां, पराली से समृद्धि तक

पंजाब के लुधियाना के किसान बलजीत सिंह ने 2019 में पराली जलाना बंद किया। हैप्पी सीडर और डीकंपोजर अपनाकर उनकी मिट्टी की उर्वरता 40% बढ़ी। अब वे जैविक गेहूं उगाते हैं, जो बाजार में 50 रुपये/किलो बिकता है। हरियाणा की महिला किसान सुनीता देवी ने पराली से मशरूम उगाना शुरू किया। 1 टन पराली से 300 किलो मशरूम, 30,000 रुपये की कमाई। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के किसान रामस्वरूप ने पराली से बायोचार बनाया, जिसे 1000 रुपये/टन बेचते हैं। ये कहानियां साबित करती हैं कि पराली बोझ नहीं, संसाधन है।

सरकारी सहायता और सब्सिडी, आसान बनाया प्रबंधन

सरकार पराली प्रबंधन को प्रोत्साहित कर रही है। CRM योजना के तहत हैप्पी सीडर, सुपर सीडर पर 50-80% सब्सिडी। पंजाब-हरियाणा में 1.5 लाख रुपये तक की मशीन 50,000 में मिलती है। इफको का नैनो डीकंपोजर मुफ्त या सस्ते में। PM-PRANA योजना से बायोएनर्जी प्लांट को प्रोत्साहन। किसान क्रेडिट कार्ड से लोन। स्थानीय कृषि विभाग ट्रेनिंग देता है।

पराली जलाना आसान लगता है, लेकिन लंबे समय में नुकसानदायक। इन-सीटू और एक्स-सीटू विकल्प अपनाकर मिट्टी बचाएं, प्रदूषण रोकें, आय बढ़ाएं। गुरमीत, सुनीता जैसे किसान प्रेरणा हैं। अगली फसल से शुरू करें – आपका खेत हरा-भरा, आपका भविष्य उज्ज्वल।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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