किसान भाइयों, गर्मी का मौसम भारत के लाखों पशुपालकों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाता है, क्योंकि इस दौरान गाय, भैंस, और बकरी जैसे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन कम हो जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे राज्यों में पशुपालक इस समस्या से परेशान रहते हैं, जिससे उनकी आय पर गहरा असर पड़ता है। गर्मी में दूध कम होने के पीछे कई कारण हैं, जैसे तापमान का बढ़ना, पानी और चारे की कमी, और पशु स्वास्थ्य पर प्रभाव। यदि समय पर सही उपाय किए जाएँ, तो इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। यह लेख गर्मी में दूध कम होने के कारण, प्रभाव, समाधान, घरेलू उपाय,पर विस्तृत जानकारी देगा।
दूध उत्पादन में कमी के क्या हैं कारण
गर्मी में पशुओं का दूध कम होने का सबसे बड़ा कारण तापमान का बढ़ना है। जब तापमान 40-50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचता है, पशु का शरीर इसे नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करता है। इससे उनकी भूख कम हो जाती है, जिसका सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च तापमान के कारण दूध में 15-25% तक की कमी आ सकती है।
पानी की कमी भी एक प्रमुख कारण है। एक किलो दूध उत्पादन के लिए पशु को लगभग एक किलो पानी की जरूरत होती है। गर्मी में पसीना और डिहाइड्रेशन के कारण पानी की आवश्यकता बढ़ जाती है। यदि पशु को पर्याप्त स्वच्छ पानी नहीं मिलता, तो दूध की मात्रा कम हो जाती है। साथ ही, गर्मी में हरे चारे की उपलब्धता घट जाती है, और सूखा चारा पोषण की पूरी पूर्ति नहीं कर पाता।
पाचन शक्ति का कमजोर होना भी दूध उत्पादन को प्रभावित करता है। गर्मी में पशु कम चारा खाते हैं, जिससे प्रोटीन, विटामिन, और खनिज तत्वों की कमी हो जाती है। यह पशु के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और दूध की गुणवत्ता व मात्रा में कमी लाता है। इसके अलावा, गर्मी में तनाव के कारण पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है।
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तापमान का पशुओं पर प्रभाव का आंकलन
उच्च तापमान पशुओं में तनाव, सुस्ती, और चिड़चिड़ापन पैदा करता है। यह शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बिगाड़ता है, जिससे दूध उत्पादन कम होता है। भैंसें गायों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती हैं, क्योंकि उनकी त्वचा में पसीने की ग्रंथियाँ कम होती हैं। तापमान का असर पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी पड़ता है, जिससे थनैला रोग (मैस्टाइटिस) और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
गर्मी में पशु की जुगाली कम हो जाती है, जिससे पाचन प्रक्रिया धीमी पड़ती है। इससे पोषक तत्वों का अवशोषण कम होता है, जो दूध की मात्रा और वसा सामग्री को प्रभावित करता है। लंबे समय तक उच्च तापमान का सामना करने से पशु को थकान, चक्कर, और गंभीर मामलों में हीट स्ट्रोक का खतरा हो सकता है।
पानी और चारा का चुनाव
पशुओं को गर्मी में पर्याप्त स्वच्छ और ठंडा पानी देना बेहद जरूरी है। एक दुधारू भैंस, जो प्रतिदिन 15-20 किलो दूध देती है, को 24 घंटे में 70-80 लीटर पानी चाहिए। चारे के प्रकार के आधार पर पानी की मात्रा बदलती है। उदाहरण के लिए, बरसीम जैसे हरे चारे से 70-80% पानी मिलता है, जबकि सूखे चारे से केवल 10-15%। पानी में 250 ग्राम चीनी और 20-30 ग्राम नमक का घोल मिलाकर देने से इलेक्ट्रोलाइट्स की पूर्ति होती है।
हरे चारे की कमी को पूरा करने के लिए फसल चक्र की योजना बनाएँ। मार्च-अप्रैल में बरसीम को सुखाकर ‘हे’ के रूप में मई-जून के लिए संग्रह करें। लोबिया और अजोला जैसे चारे गर्मी में उपयोगी हैं। लोबिया में प्रोटीन और फाइबर प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो दूध उत्पादन को बढ़ाते हैं। अजोला पानी में उगाया जाता है और पोषण से भरपूर होता है। संतुलित आहार के लिए 100 किलो चारे में 32 किलो अनाज (गेहूं, मक्का), 20 किलो खल (सरसों, बिनौला), 10 किलो दालों की चूरी, 25 किलो चौकर, 2 किलो खनिज मिश्रण, और 1 किलो नमक मिलाएँ। गर्मी में खल की मात्रा 30-35% बढ़ाने से लाभ होता है।
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शेड प्रबंधन और देखभाल कैसे करें
पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए छायादार, हवादार, और साफ शेड बनाएँ। शेड में पंखे या कूलर लगाएँ और सुबह-शाम पानी का छिड़काव करें। दोपहर 11 बजे से 5 बजे तक पशुओं को सीधी धूप से बचाएँ। दिन में एक-दो बार ठंडे पानी से नहलाने से शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है। शेड में जलभराव और गंदगी से बचें, क्योंकि यह मक्खियों और बैक्टीरिया को बढ़ावा देता है।
नियमित पशु चिकित्सक से जाँच कराएँ। गर्मी में डिवार्मिंग और टीकाकरण जरूरी है, ताकि पेट के कीड़े और रोगों से बचाव हो। नीम, तुलसी, या पुदीने का अर्क पानी में मिलाकर देने से पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। थनों की नियमित सफाई और बोरिक पाउडर का उपयोग मैस्टाइटिस से बचाव करता है।
घरेलू उपाय और पोषण
कुछ घरेलू उपाय दूध उत्पादन बढ़ाने में प्रभावी हैं। 200-300 ग्राम सरसों का तेल और 250 ग्राम गेहूं का आटा मिलाकर शाम को चारा और पानी देने के बाद पशु को खिलाएँ। इस मिश्रण को 7-8 दिन तक दें, लेकिन इसके बाद पानी न पिलाएँ। यह दूध की मात्रा में सुधार करता है।
लहसुन को चारे में मिलाकर देने से पाचन बेहतर होता है और दूध उत्पादन बढ़ता है। लहसुन पशु के पेट में मीथेन गैस उत्सर्जन को कम करता है, जो पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। जई का चारा (10-12% प्रोटीन) और साइलेज भी उपयोगी हैं। ब्याने के बाद 3 दिन तक गेहूं का दलिया, गुड़, मैथी, कच्चा नारियल, जीरा, और अजवाइन का मिश्रण देना फायदेमंद है। यह मिश्रण पशु की ताकत बढ़ाता है और दूध उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।
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