स्वामीनाथन आयोग का MSP फॉर्मूला न लागू होने से किसानों को 3 लाख करोड़ का चूना: किसान संगठन का गंभीर आरोप

देश के किसान आज भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के सही निर्धारण के बिना जूझ रहे हैं। अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया है कि अगर सरकार स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले को अपनाती, तो 2024-25 में किसानों को करीब 3 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त फायदा मिल पाता। यह कमी किसानों की कमाई को सीधे प्रभावित कर रही है, खासकर जब खेती की लागत लगातार बढ़ रही है। संगठन के महासचिव विजू कृष्णन ने दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार ने 2014 में किए गए वादे को अभी तक पूरा नहीं किया, जिसमें किसानों को उनकी कुल लागत पर 50% मुनाफा जोड़कर MSP देने का आश्वासन था।

बिहार के किसानों को 10 हजार करोड़ का नुकसान

AIKS की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार जैसे राज्य में धान, गेहूं और मक्का उगाने वाले किसानों को 2024-25 में ही करीब 10 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। पिछले नौ सालों (2016 से 2025 तक) में इन फसलों से होने वाली आय में 71 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की कमी आ चुकी है। संगठन का कहना है कि यह नुकसान और भी गहरा हो सकता है, क्योंकि बिहार में 2006 में ही मंडी व्यवस्था (APMC) को खत्म कर दिया गया था। इससे किसानों को MSP पर अपनी उपज बेचने का कोई ठोस मौका ही नहीं मिला। यह स्थिति छोटे किसानों को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है, जो पहले से ही बाजार की अनिश्चितताओं से जूझ रहे हैं।

20 फसलों से कुल 3 लाख करोड़ का घाटा

रिपोर्ट में 20 प्रमुख खरीफ और रबी फसलों का जिक्र है, जिनके किसानों को C2+50% फॉर्मूले के अभाव में 3 लाख करोड़ रुपये की आय का नुकसान हुआ है। अगर यह फॉर्मूला 2016 से लागू हो गया होता, तो किसानों की कुल आय में 24 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो सकती थी। यह आंकड़े किसानों की मेहनत को कम आंकने वाले लगते हैं, क्योंकि खेती में हर साल बढ़ते खर्च के बावजूद MSP का निर्धारण पुराने तरीके से हो रहा है। संगठन ने चेतावनी दी है कि बिना बदलाव के यह नुकसान और बढ़ेगा, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर कर देगा।

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C2+50% फॉर्मूला क्या कहता है

स्वामीनाथन आयोग ने साफ सुझाव दिया था कि MSP किसानों की कुल लागत (C2) पर 50% लाभ जोड़कर तय की जाए। इसमें सीधी लागतें जैसे बीज, खाद, सिंचाई और मजदूरी (A2), पारिवारिक श्रम की कीमत (FL), साथ ही जमीन का किराया, पूंजी पर ब्याज और लीज पर ली गई जमीन का किराया सब शामिल होते हैं। लेकिन वर्तमान A2+FL+50% फॉर्मूला केवल उत्पादन लागत और पारिवारिक श्रम को ध्यान में रखता है, जिससे किसानों को उनकी वास्तविक मेहनत का पूरा हक नहीं मिल पाता। यह अंतर छोटे-छोटे खर्चों को नजरअंदाज कर देता है, जो किसानों के लिए बहुत मायने रखते हैं।

पीएम-किसान योजना पर सवाल

किसान सभा ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना को किसानों के साथ धोखा बताया है। 2019 से चल रही इस योजना में हर साल 6 हजार रुपये दिए जाते हैं, लेकिन अगर MSP फॉर्मूला लागू होता तो किसानों की आय में 19 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हो जाती। संगठन के अनुसार, सरकार ने अब तक 3.90 लाख करोड़ रुपये PM-KISAN के तहत बांटे हैं, लेकिन असल फायदा कॉरपोरेट कंपनियों को ज्यादा मिला है। यह योजना किसानों की बुनियादी समस्याओं को हल करने के बजाय सिर्फ अस्थायी राहत देती है, जबकि MSP जैसे कदम लंबे समय के लिए आय सुनिश्चित कर सकते हैं।

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2014 के वादों पर सवालिया निशान

विजू कृष्णन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में वादा किया था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। लेकिन हकीकत में खेती की लागत दोगुनी हो गई, जबकि कॉरपोरेट कंपनियों की संपत्ति कई गुना बढ़ गई। बिहार में किसानों को तीन मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है: मंडी व्यवस्था का न होना, मनरेगा की कमजोर स्थिति और कृषि मजदूरों की बढ़ती भूमिहीनता। ये मुद्दे न सिर्फ आय को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि किसानों की आजीविका को भी खतरे में डाल रहे हैं।

बिहार सरकार पर किसान सभा का हमला

AIKS ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा है। संगठन का कहना है कि 2006 में मंडी सिस्टम को खत्म करना किसानों के खिलाफ एक बड़ा फैसला था। वित्त सचिव पी. कृष्णा प्रसाद ने कहा कि बिहार सरकार गरीबों और किसानों के हितों के विपरीत काम कर रही है। इसीलिए संगठन बिहार में नीतीश सरकार के खिलाफ अभियान चलाने की योजना बना रहा है। यह आंदोलन किसानों को एकजुट करने और MSP जैसे मुद्दों पर दबाव बनाने का प्रयास होगा।

किसानों के लिए आगे की राह

यह रिपोर्ट किसानों के लिए एक चेतावनी है कि बिना MSP फॉर्मूले के सुधार के उनकी मेहनत बेकार जा रही है। संगठन ने सरकार से अपील की है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें जल्द लागू की जाएँ, ताकि किसान अपनी फसलों का सही दाम पा सकें। अगर यह होता है, तो न सिर्फ आय बढ़ेगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि भी आएगी। किसान भाइयों को चाहिए कि वे संगठनों से जुड़ें और अपने हक के लिए आवाज उठाएँ।

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  • Shashikant

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