शकरकंदी की खेती से लाखों की कमाई का रहे मुजफ्फरपुर के किसान, महज 700 रुपए है लागत जानें तरीका

Sweet Potato Farming: भारत के किसान आलू, मटर जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भर हैं, लेकिन शकरकंद जैसी फसलें कम समय में जबरदस्त मुनाफा दे सकती हैं। कौशाम्बी जिले के तराई क्षेत्रों में किसान शकरकंद की खेती कर 90 दिनों में लाखों कमा रहे हैं। पहले यह फसल भूल चुकी थी, लेकिन अब बाजार में 40-50 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रही है। यह फसल न केवल पौष्टिक है – विटामिन ए, सी, फाइबर और पोटेशियम से भरपूर – बल्कि कम लागत में उच्च उपज देती है। अगर आप भी इस सीजन में कुछ नया आजमाना चाहते हैं, तो शकरकंद की खेती आपके लिए सुनहरा अवसर है।

शकरकंद की खेती का सही समय और जलवायु

शकरकंद की खेती किसी भी मौसम में संभव है, लेकिन बंपर पैदावार के लिए गर्मी और बारिश का समय सबसे अच्छा माना जाता है। कौशाम्बी के कृषि अधिकारी भगवती प्रसाद के अनुसार, सितंबर-अक्टूबर बुवाई का आदर्श समय है। इस समय बारिश का खतरा कम हो जाता है, जिससे फसल सड़ने का डर नहीं रहता। दिसंबर-जनवरी तक फसल तैयार हो जाती है। न्यूनतम तापमान 20-21 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, जबकि विकास के लिए 25-30 डिग्री आदर्श है। अधिक तापमान पर अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत पड़ती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में यह फसल बड़े पैमाने पर उगाई जाती है।

मिट्टी और खेत की तैयारी

शकरकंद की सफल खेती के लिए बलुई दोमट या हल्की दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है, जहां जल निकास अच्छा हो। मिट्टी का pH 5.7-6.8 होना चाहिए। भारी मिट्टी में जलभराव की समस्या हो सकती है, जबकि हल्की मिट्टी में कंद पतले रह जाते हैं। खेत तैयार करने के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से पहली गहरी जुताई करें, फिर 2-3 दिन खुला छोड़ दें ताकि कीट और खरपतवार नष्ट हो जाएं। उसके बाद 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर खाद मिलाएं। 3-4 बार जुताई और सुहागा फेरकर मिट्टी भुरभुरी बना लें। फसल चक्रण अपनाएं, जैसे धान के बाद शकरकंद।

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चुनें सही वैरायटी

शकरकंद की 400 से अधिक किस्में हैं, लेकिन भारत में कुछ चुनिंदा उन्नत किस्में लोकप्रिय हैं। कौशाम्बी के किसान कोकर अश्वनी (कोंकण अश्विनी), श्रीभद्रा, पूसा सुनहरी, पूसा सफेद जैसी 5 किस्में उगा रहे हैं। श्रीभद्रा 90-105 दिनों में तैयार हो जाती है, गुलाबी कंद वाली, 18-19 टन/हेक्टेयर उपज, केरोटीन युक्त। पूसा सुनहरी सुनहरे कंद वाली, मीठी, 110-120 दिनों में 20-25 टन/हेक्टेयर। पूसा सफेद सफेद कंद, चिकनी, 235-376 क्विंटल/हेक्टेयर। कोकर अश्वनी (कोंकण अश्विनी) छोटे कंद, 33% शुष्क पदार्थ, 90-105 दिनों में। अन्य अच्छी किस्में: श्री अरुण, कालमेघ, राजेंद्र शकरकंद-5। इनसे बाजार में अच्छी कीमत मिलती है।

रोपाई और बुवाई की विधि

शकरकंद की खेती कटिंग या बेलों से की जाती है। नर्सरी जनवरी-फरवरी में तैयार करें, जहां 35-40 किलो कंद से बेलें उगाएं। रोपाई के लिए 30-35 हजार कटिंग/हेक्टेयर या 300-320 किलो कंद चाहिए। मेड़ विधि अपनाएं: मेड़ की ऊंचाई 15-20 सेमी, चौड़ाई 60 सेमी। कटिंग 18-20 सेमी लंबी काटें, 20-25 सेमी दूरी पर लगाएं। पौधे से पौधे 20-35 सेमी, कतार से कतार 60 सेमी दूरी रखें। रोपाई से पहले कटिंग को एमिसन 6 (0.25%) से उपचारित करें।

खाद, उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन

रोपाई से पहले 2 टन/एकड़ गोबर खाद मिलाएं। उर्वरक: नाइट्रोजन 100-120 किलो, फॉस्फोरस 50-60 किलो, पोटाश 100-120 किलो/हेक्टेयर। 2/3 नाइट्रोजन और पूरा फॉस्फोरस-पोटाश बुवाई पर, बाकी नाइट्रोजन दो हिस्सों में पहली-दूसरी सिंचाई पर। जैविक खाद से 50% उर्वरक पूरी करें। सिंचाई: रोपाई के तुरंत बाद हल्की, फिर 4-5 सिंचाई दें। गर्मी में सप्ताह में 2-3 बार। जलभराव से बचें।

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खरपतवार, कीट और रोग नियंत्रण

खरपतवार से बचाव के लिए रोपाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। ट्राइफ्लुरालिन जैसे हर्बिसाइड सीमित उपयोग करें। कीट: शकरकंद घुन के लिए 200 मिली रोमेल (प्रति एकड़) छिड़कें। माहू के लिए नीम तेल। रोग: रूट रॉट से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा मिलाएं। निमेटोड के लिए श्रीभद्रा ट्रैप क्रॉप के रूप में उपयोगी।

कटाई, उपज और बाजार मूल्य

शकरकंद 90-120 दिनों में तैयार हो जाती है। जब पत्तियां पीली पड़ने लगें, तब कटाई करें। सुबह-शाम निकालें। उपज: 20-30 टन/हेक्टेयर। एक बीघे में 10-12 हजार लागत, 1-2 लाख मुनाफा। बाजार मूल्य 40-50 रुपये/किलो। भंडारण: ठंडी, नम जगह पर 7-10 दिन।

शकरकंद की खेती छोटे-बड़े किसानों के लिए आय का मजबूत स्रोत है। सही किस्म, समय और देखभाल से 90 दिनों में लाखों कमाएं। कौशाम्बी जैसे क्षेत्रों से प्रेरणा लें और अपना खेत हरा-भरा बनाएं। स्थानीय कृषि केंद्र से संपर्क करें।

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  • Shashikant

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