गाय-भैंस खा रही हैं राख, पत्थर या कचरा? अजीब व्यवहार के पीछे है चौंकाने वाला कारण, जानें क्या है इलाज?

गांव में पशुपालक अक्सर देखते हैं कि उनकी गाय-भैंस कभी-कभी मिट्टी, गोबर, कपड़ा, या दूसरों जानवरों की हड्डियां चाटने लगती हैं। ये भूख की वजह से नहीं, बल्कि एक बीमारी की वजह से होता है, जिसे पाइका या एलोट्रोफेजिया कहते हैं। पशुपालक इसे पाइका के नाम से जानते हैं। ये बीमारी सिर्फ गाय-भैंस तक सीमित नहीं, बल्कि भेड़-बकरी, घोड़े, और कुत्तों में भी हो सकती है। इसका मुख्य कारण पशुओं की खुराक में मिनरल्स की कमी है। अगर सही समय पर ध्यान न दिया जाए, तो पशु कमजोर हो सकते हैं और दूध उत्पादन भी घट सकता है। आइए, पाइका बीमारी के कारण, लक्षण, और इलाज को समझें.

पाइका बीमारी क्या है?

पाइका बीमारी तब होती है, जब पशुओं को उनकी खुराक में जरूरी मिनरल्स, जैसे फॉस्फोरस, कोबाल्ट, नमक, या कैल्शियम, नहीं मिलते। पशु चिकित्सकों के अनुसार, ये कमी पशुओं को अजीब चीजें खाने के लिए मजबूर करती है, जैसे मिट्टी, गोबर, या हड्डियां। इसके अलावा, तंग बाड़े में रखना, पेट में कीड़े होना, या पित्ताशय की समस्या भी इस बीमारी को बढ़ा सकती है। पाइका सिर्फ खाने की कमी से नहीं, बल्कि पशुओं की देखभाल और पर्यावरण से भी जुड़ा है। अगर पशुपालक समय रहते इस पर ध्यान दें, तो पशुओं को आसानी से बचाया जा सकता है।

पाइका बीमारी के प्रकार

पाइका बीमारी कई तरह की होती है, और हर प्रकार का व्यवहार अलग होता है।

कोप्रोफेजिया में पशु खुद का या दूसरे पशु का गोबर खाने लगता है।

ऑस्टियोफेजिया में पशु मरे हुए जानवरों की हड्डियां चाटता या चबाता है।

साल्ट हंगर में पशु अपनी या दूसरों की चमड़ी चाटने लगता है।

सबसे गंभीर है इनफेंटोफेजिया, जिसमें मादा पशु अपने नवजात बच्चों को खा लेती है। ये सभी व्यवहार पशु की सेहत के लिए खतरनाक हैं और तुरंत इलाज की जरूरत होती है। पशुपालकों को इन लक्षणों पर नजर रखनी चाहिए, ताकि बीमारी को शुरुआत में ही पकड़ा जाए।

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पाइका के लक्षण

पाइका बीमारी के लक्षण साफ दिखते हैं, लेकिन लापरवाही से नजरअंदाज हो जाते हैं। जानवर सामान्य चारा या दाना कम खाने लगते हैं और मिट्टी, कपड़ा या गोबर जैसी बेकार चीजें चाटने-खाने लगते हैं। दूध उत्पादन तेजी से घट जाता है, शरीर पतला पड़ने लगता है और त्वचा हड्डियों से चिपक जाती है। पेट में असहजता, गैस या बार-बार अजीब चीजें चाटना ये रोग का स्पष्ट संकेत है। अगर आपका पशु राख या पत्थर चबा रहा है तो समझ लें कि खनिजों की कमी हो गई है। तुरंत पशु चिकित्सक बुलाएँ, क्योंकि देरी से आंतों में ब्लॉकेज हो सकता है।

पाइका बीमारी के कारण

इस रोग का मुख्य कारण आहार में फॉस्फोरस, कैल्शियम, नमक या कोबाल्ट जैसे खनिजों की कमी है, जो शरीर के संतुलन को बिगाड़ देती है। संकुचित बाड़े में बाँधने से तनाव बढ़ता है और जानवर अजीब व्यवहार करने लगते हैं। आंतों में कृमि या पित्ताशय की समस्या भी ट्रिगर करती है। घटिया चारे या असंतुलित दाने का इस्तेमाल भी इसका सबब बनता है। किसान भाई चारे की गुणवत्ता पर ध्यान दें, क्योंकि सर्दियों में हरा चारा कम होने से ये समस्या ज्यादा होती है।

पाइका का इलाज और रोकथाम

इलाज आसान है अगर शुरुआत में ही पकड़ लिया जाए। पशु चिकित्सक से सलाह लें और रोजाना 40-50 ग्राम मल्टी-मिनरल मिक्स दें। बाड़े में नमक की चाट (लिकिंग स्टोन) रख दें, ताकि जानवर अपनी जरूरत भर नमक ले सकें। आंतों के कृमियों से बचाव के लिए हर 3-6 महीने में डीवर्मिंग करवाएँ। जानवरों को खुले और साफ बाड़े में रखें, तनाव कम होगा। आहार में बरसीम जैसा हरा चारा और अच्छा दाना शामिल करें। अगर गोबर या हड्डी चाटने का शौक हो गया है तो तुरंत चेकअप करवाएँ। बचाव ही सबसे बड़ा इलाज है – संतुलित आहार से रोग को जड़ से रोका जा सकता है।

पशुपालकों के लिए सलाह

किसान भाई, पशुओं का आहार विशेष ध्यान रखें – रोजाना 30-50 ग्राम मिनरल मिक्स और भरपूर हरा चारा दें। बाड़ा साफ और खुला रखें ताकि जानवर तनावमुक्त रहें। स्थानीय पशु चिकित्सालय या कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) से मिनरल सप्लीमेंट और डीवर्मिंग की सलाह लें। दुधारू गाय-भैंसों का नियमित स्वास्थ्य जाँच करवाएँ। आहार में संतुलन और सफाई से पिका रोग टाला जा सकता है। अगर कोई अजीब व्यवहार दिखे तो देर न करें, तुरंत विशेषज्ञ की मदद लें। पिका रोकने से न सिर्फ जानवर स्वस्थ रहेंगे बल्कि आपकी आय भी बढ़ेगी।

पाइका रोग रोकने से पशुपालन मजबूत बनेगा। सर्दियों में चारे की कमी से सावधान रहें। कृषि विशेषज्ञों की ये सलाह अपनाएँ तो नुकसान से बच जाएँगे और दूध उत्पादन बढ़ेगा। आज ही पशुशाला पहुँचें, क्योंकि समय रहते कदम उठाना ही सफलता की कुंजी है।

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  • Shashikant

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