Taiwani Lauki Ki Kheti: आज का किसान पुरानी सोच को पीछे छोड़कर नई राह पकड़ रहा है। पहले जहाँ गाँवों में सिर्फ गेहूं, धान, सरसों या मेंथा की खेती होती थी, वहीं अब किसान सब्जियों की खेती से अपनी जेब भर रहे हैं। खासकर उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में ताइवानी लौकी की खेती ने किसानों को मालामाल कर दिया है। सुकलाई गाँव के किसान बृजेश कुमार की कहानी इसका जीता-जागता सबूत है। आधे एकड़ में ताइवानी लौकी की खेती करके वो हर फसल में 80-90 हजार रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं। आइए, जानते हैं बृजेश की ताइवानी लौकी की खेती का देसी तरीका।
पारंपरिक खेती से ताइवानी लौकी तक
बाराबंकी जिले के सुकलाई गाँव के बृजेश कुमार पहले धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलें उगाते थे। लेकिन मेहनत के हिसाब से मुनाफा कम मिलता था। फिर उन्होंने सब्जियों की खेती की ओर रुख किया। शुरू में कुछ सब्जियाँ उगाकर अच्छा मुनाफा देखा, लेकिन असली कमाल हुआ जब दो साल पहले उन्होंने ताइवानी लौकी की खेती शुरू की।
बृजेश बताते हैं कि गर्मियों में इस लौकी की माँग आसमान छूती है, और इसकी पैदावार भी दूसरी किस्मों से कहीं ज्यादा होती है। आज वो आधे एकड़ में इसकी खेती कर रहे हैं, और हर फसल में 80-90 हजार रुपये का शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं। उनकी मेहनत और समझदारी ने न सिर्फ उनकी जिंदगी बदली, बल्कि गाँव के दूसरे किसानों को भी प्रेरित किया।
ताइवानी लौकी: कम लागत, बंपर मुनाफा
ताइवानी लौकी की खेती की सबसे बड़ी खासियत है इसकी कम लागत और ज्यादा पैदावार। बृजेश के मुताबिक, एक बीघे में इसकी खेती की लागत करीब 7-8 हजार रुपये आती है। इसमें बीज, बांस, डोरी, कीटनाशक, पानी और मजदूरी का खर्च शामिल है। लेकिन मुनाफा इतना शानदार है कि लागत कई गुना निकल आती है। आधे एकड़ (लगभग डेढ़ बीघा) से वो हर फसल में 80-90 हजार रुपये कमा लेते हैं। गर्मियों में इस लौकी की माँग बाजार में इतनी ज्यादा होती है कि इसे रोज तोड़कर बेचा जा सकता है। ताइवानी लौकी के फल लंबे, हरे और मध्यम आकार के होते हैं, जो ग्राहकों को खूब पसंद आते हैं।
खेती का देसी तरीका
ताइवानी लौकी की खेती करना इतना आसान है कि कोई भी किसान इसे आजमा सकता है। बृजेश बताते हैं कि सबसे पहले खेत की दो बार अच्छी जुताई करनी चाहिए। इसके बाद खेत में मेड़ बनाए जाते हैं। मेड़ों पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लौकी के बीज बोए जाते हैं। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं, तब उनकी पहली सिंचाई की जाती है।
इसके बाद खेत में बांस का स्टेचर (ढाँचा) बनाया जाता है। इस स्टेचर पर डोरी की मदद से लौकी के पौधों को बाँधा जाता है, ताकि वो ऊपर की ओर फैलें। इससे पौधों को हवा और धूप अच्छे से मिलती है, और फसल की पैदावार बढ़ती है। स्टेचर की वजह से फल तोड़ना भी आसान हो जाता है। बीज बोने के सिर्फ 50-55 दिनों बाद फल आने शुरू हो जाते हैं, और दो महीने में फसल पूरी तरह तैयार हो जाती है।
ताइवानी लौकी की खासियत
ताइवानी लौकी दूसरी किस्मों से कई मायनों में अलग है। इसकी पैदावार ज्यादा होती है, और फल मध्यम आकार के, हरे रंग के, और 1-1.5 फीट लंबे होते हैं। ये न सिर्फ देखने में आकर्षक होते हैं, बल्कि स्वाद में भी शानदार होते हैं। गर्मियों में इसकी माँग बाजारों और होटलों में खूब रहती है। ताइवानी लौकी की खेती जायद, खरीफ और रबी तीनों सीजन में की जा सकती है, लेकिन गर्मियों में इसका उत्पादन और मुनाफा सबसे ज्यादा होता है। बृजेश जैसे किसानों ने इसकी खेती को स्टेचर विधि से और फायदेमंद बना दिया है, क्योंकि इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और फल की गुणवत्ता बढ़ती है।
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