मांस और दूध के लिए मशहूर ये 3 देसी भेड़ नस्लें बना सकती हैं किसान को मालामाल

Sheep Farming: भारत में पशुपालन का चलन तेजी से बढ़ रहा है। जहाँ कुछ लोग दूध के लिए गाय-भैंस पाल रहे हैं, वहीं मांस और ऊन के लिए भेड़ पालन भी अब ग्रामीण इलाकों में लोकप्रिय हो रहा है। भेड़ पालन की खासियत है कि इसमें कम खर्च में ज्यादा मुनाफा मिलता है। मांस और ऊन की बाजार में बढ़ती माँग ने इसे और आकर्षक बना दिया है। केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान (CSWRI) की मदद से विकसित देसी नस्लें जैसे अविशान, खेरी, और पांचाली मांस, दूध, और ऊन के लिए बेहतरीन हैं। आइए जानते हैं इन नस्लों की खासियत और इनसे मुनाफे का रास्ता।

अविशान: साल में दो बार बच्चे, ज्यादा मुनाफा

अविशान नस्ल को CSWRI ने राजस्थान की मालपुरा, पश्चिम बंगाल की गैरोल, और गुजरात की पाटनवाड़ी नस्लों के संकरण से विकसित किया है। इस नस्ल की सबसे बड़ी खासियत है कि यह साल में दो बार गर्भधारण करती है और हर बार 2-4 मेमनों को जन्म देती है। यानी एक भेड़ से साल में 4-8 मेमने मिल सकते हैं। इन मेमनों का विकास 30 फीसदी तेज होता है, और जन्म के 3 महीने में इनका वजन 16 किलो तक हो जाता है।

ऐसे मेमनों को मांस के लिए बेचकर प्रति मेमना 2500 रुपये तक कमाए जा सकते हैं। अगर 50 भेड़ों से शुरुआत करें, तो साल में 200 मेमने बेचकर लाखों की कमाई संभव है। अविशान भेड़ 40 फीसदी ज्यादा ऊन और 200 ग्राम अतिरिक्त दूध देती है। इसकी मृत्यु दर केवल 5 फीसदी है, जो इसे कम जोखिम वाला बनाता है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और आंध्र प्रदेश में यह नस्ल खूब पसंद की जा रही है।

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खेरी: कठिन मौसम में भी शानदार उत्पादन

खेरी नस्ल की भेड़ें राजस्थान के जोधपुर, नागौर, और पाली जिलों में खूब पाई जाती हैं। इनका कद लंबा और रंग सफेद होता है, जो इन्हें आकर्षक बनाता है। खेरी भेड़ें कठोर जलवायु, कम पानी, और चारे की कमी को आसानी से सहन कर लेती हैं। ये लंबी दूरी चलने में सक्षम हैं, जिससे इन्हें चराने में आसानी होती है। इस नस्ल का मांस और ऊन बाजार में अच्छा दाम दिलाता है।

एक खेरी भेड़ से सालाना 1.5-2 किलो ऊन मिलती है, जो मोटी और टिकाऊ होती है। मांस के लिए इनके मेमने 6 महीने में 25-30 किलो तक पहुँच जाते हैं। ये भेड़ें हर तरह की मिट्टी और मौसम में पनप सकती हैं, जिससे इन्हें पालना आसान है। खेरी नस्ल की माँग राजस्थान के साथ हरियाणा और पंजाब में भी बढ़ रही है।

पांचाली: गुजरात की मुनाफेदार नस्ल

पांचाली भेड़, जिसे दुम्मा या डूमी देसी भी कहते हैं, गुजरात के सुरेंद्रनगर, राजकोट, भावनगर, और कच्छ इलाकों में लोकप्रिय है। यह नस्ल रेवाड़ी और भरवाड़ समुदायों के बीच खास पसंद है। पांचाली भेड़ का आकार बड़ा और रंग सफेद होता है, जबकि इसका चेहरा हल्का भूरा या काला हो सकता है। इसका ऊन मोटा और मांस रसदार होता है। एक पांचाली भेड़ रोजाना 0.5-1.5 किलो दूध देती है, जो स्थानीय बाजार में अच्छी कीमत पर बिकता है।

सालाना 1 किलो ऊन प्रति भेड़ मिलता है। जन्म के समय मेमने का वजन 3.5-4 किलो होता है, जो 3-4 महीने में 18-20 किलो हो जाता है। ऐसे मेमनों को बेचकर अच्छी कमाई हो सकती है। लगभग 16 फीसदी मादा भेड़ें जुड़वाँ बच्चे देती हैं, जो मुनाफा बढ़ाता है। यह नस्ल मानसून में स्थिर रहती है और कम रखरखाव में पनपती है।

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कम लागत में तगड़ा मुनाफा

भेड़ पालन की सबसे बड़ी खासियत है कम निवेश। 20 मादा और 1 नर भेड़ से शुरुआत करने के लिए 1 लाख रुपये काफी हैं। 500 वर्ग फीट का खुला बाड़ा 30-40 हजार में बन सकता है। भेड़ें जंगली घास, पेड़ों की पत्तियाँ, और खेतों के अवशेष खाती हैं, जिससे चारे का खर्च कम होता है। मांस, ऊन, और दूध से आय के तीन रास्ते खुलते हैं। सरकार भी भेड़ पालन के लिए सब्सिडी और लोन दे रही है, जैसे राष्ट्रीय पशुधन मिशन। CSWRI और स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र प्रशिक्षण और बीज भेड़ उपलब्ध कराते हैं। अविशान, खेरी, और पांचाली जैसी नस्लें कम जोखिम और ज्यादा उत्पादन के कारण ग्रामीण भारत में लोकप्रिय हो रही हैं।

कैसे शुरू करें भेड़ पालन

भेड़ पालन शुरू करने के लिए नस्ल का सही चयन जरूरी है। अविशान, खेरी, या पांचाली को स्थानीय जलवायु के हिसाब से चुनें। भेड़ें 1-2 साल की हों, स्वस्थ हों, और प्रजनन के लिए उपयुक्त हों। CSWRI या जिला पशुपालन विभाग से संपर्क कर प्रशिक्षण और बीज भेड़ लें। बाड़े को हवादार और साफ रखें। टीकाकरण और समय-समय पर स्वास्थ्य जाँच कराएँ। मांस और ऊन की बिक्री के लिए स्थानीय मंडियों या कोऑपरेटिव से जुड़ें। भेड़ पालन न सिर्फ मुनाफेदार है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है।

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  • Shashikant

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