Paddy Farming In Chattisgarh: किसान भाइयों, छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा यूं ही नहीं कहते। यहाँ की मिट्टी और मेहनतकश किसानों ने धान की खेती को सोने की तरह चमकाया है। चाहे भाटा, मटासी हो या कन्हार, छत्तीसगढ़ की हर जमीन धान के लिए बनी है। वैज्ञानिकों ने इसकी उन्नत किस्में और तकनीकें दी हैं, जो खास छत्तीसगढ़ की मिट्टी के लिए हैं। अगर सही तरीके से खेती करें, तो पैदावार 15-20% तक बढ़ सकती है। इसके लिए खेत की तैयारी, अच्छे बीज, सही बुवाई और खाद का इस्तेमाल जरूरी है। तो आइये, जानते हैं कि छत्तीसगढ़ के खेतों में धान की बंपर पैदावार कैसे पाई जाए।
खेत को तैयार करें
छत्तीसगढ़ की धान की खेती की शुरुआत खेत की अच्छी तैयारी से होती है। गर्मी के मौसम में खेत की एक या दो बार गहरी जुताई जरूर करें। इससे मटासी, कन्हार या भाटा मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और खरपतवार भी कम होते हैं। बुवाई से पहले खेत में 200-250 क्विंटल अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें। अगर हर साल इतनी खाद डालना मुमकिन न हो, तो हर दो या तीन साल में एक बार जरूर डालें। ये मिट्टी को ताकत देता है और धान की पैदावार बढ़ाता है। खेत को समतल करें, ताकि बारिश या सिंचाई का पानी हर कोने तक पहुंचे।
स्वस्थ बीज चुनें, पैदावार दोगुनी करें
अच्छी धान की फसल का राज अच्छे बीज में छिपा है। हमेशा स्वस्थ और मजबूत बीज चुनें, जो शुरुआती 10 दिन तक पौधे को पोषण दे सके। हर तीन साल में बीज बदलना जरूरी है, क्योंकि पुराने बीज की शुद्धता कम हो जाती है। बीज बदलने से छत्तीसगढ़ के खेतों में पैदावार 15% तक बढ़ सकती है। इसके लिए आसान तरीका है कि हर साल अपनी जमीन के दसवें हिस्से में प्रमाणित बीज बोएं।
स्वस्थ बीज चुनने के लिए 100 लीटर पानी में 17 किलो नमक घोलकर बीज डुबोएं। जो दाने ऊपर तैरें, उन्हें हटा दें और नीचे बैठे पुष्ट बीज को साफ पानी से धोकर छाया में सुखाएं। बुवाई से पहले 2 ग्राम कार्बन्डाजिम या 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा से बीज का उपचार करें। साथ ही, एजोस्पाइरिलम और पी.एस.बी. कल्चर से भी उपचार करें, ताकि पौधे को शुरू से ताकत मिले।
छत्तीसगढ़ की मिट्टी के लिए सही किस्म चुनें
छत्तीसगढ़ की अलग-अलग मिट्टी और पानी की उपलब्धता के हिसाब से धान की किस्म चुनना जरूरी है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर ने छत्तीसगढ़ की भाटा, मटासी, डोरसा, कन्हार और बहरा मिट्टी के लिए खास किस्में सुझाई हैं।
भाटा और मटासी मिट्टी के लिए धान की किस्में
छत्तीसगढ़ की भाटा और मटासी जैसी ऊंची जमीन, जहां सिंचाई की सुविधा नहीं है, वहां धान की ऐसी किस्में चुनें जो कम पानी में भी लहलहाएं। कलिंगा 3, आदित्य, दंतेश्वरी, पूर्णिमा, सम्लेश्वरी, सहभागी धान-1 और इंदिरा बरानी धान-1 जैसी किस्में इस मिट्टी के लिए बेस्ट हैं। ये किस्में खास तौर पर छत्तीसगढ़ की असिंचित ऊंची भूमि को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं और अच्छी पैदावार देती हैं।
डोरसा और कन्हार मिट्टी के लिए धान की किस्में
डोरसा और कन्हार जैसी मध्यम ऊंचाई वाली जमीन के लिए सम्लेश्वरी, इंदिरा बरानी धान-1, आई.आर. 64, डी.आर.आर-42, एम.टी.यू 1010, चन्द्रहासिनी, इंदिरा राजेश्वरी, दुर्गेश्वरी, कर्मा मासुरी, महामाया और महेश्वरी जैसी किस्में शानदार हैं। ये किस्में छत्तीसगढ़ की इस मिट्टी में अच्छी पैदावार देती हैं और बारिश पर निर्भर खेती के लिए भरोसेमंद हैं।
कन्हार और बहरा मिट्टी के लिए धान की किस्में
निचली कन्हार और बहरा मिट्टी में, जहां पानी ज्यादा ठहरता है, चन्द्रहासिनी, इंदिरा राजेश्वरी, दुर्गेश्वरी, महामाया, कर्मा मासुरी, इंदिरा सुगंधित धान-1, महेश्वरी, एम.टी.यू-1001, बम्लेश्वरी, सम्पदा, जलदूबी, स्वर्णा और स्वर्णा सब-1 जैसी किस्में कमाल करती हैं। ये किस्में छत्तीसगढ़ की निचली और गीली जमीन के लिए खास तौर पर बनाई गई हैं और बंपर पैदावार देती हैं।
सिंचित भूमि के लिए धान की किस्में
अगर आपके पास सिंचाई की सुविधा है, तो छत्तीसगढ़ की किसी भी मिट्टी में सम्लेश्वरी, चन्द्रहासिनी, कर्मा मासुरी, इंदिरा राजेश्वरी, दुर्गेश्वरी, महेश्वरी, इंदिरा सुगंधित धान-1, स्वर्णा सब-1, उन्नत सांबा मासुरी, पी.के.बी. एच.एम.टी., आई.आर.-36, आई.आर.-64, बम्लेश्वरी, महामाया, एम.टी.यू 1010 और एम.टी.यू 1001 जैसी किस्में चुनें। संकर किस्मों में इंदिरा सोना, डी.आर.आर.एच 2, अजय, के.आर.एच.-3, एराइज 6444 गोल्ड, सहयाद्री, के.आर.एच-2, के.आर.एच-4, जवाहर राइस हाइब्रिड-5, पी.आर.एच.-10, जे.के.आर.एच-3333, यू.एस.-312, यू.एस.-382, एराइज तेज और डी.आर.एच-775 भी जबरदस्त उपज देती हैं।
बुवाई का सही समय और तरीका
छत्तीसगढ़ में धान की बुवाई का सही समय बारिश शुरू होने पर होता है, जब मिट्टी में 15-20 सेंमी गहराई तक नमी आ जाए। अगर आपके पास सिंचाई की सुविधा है, तो रोपा विधि के लिए जून के पहले हफ्ते में थरहा (नर्सरी) तैयार करें। बुवाई के लिए कई तरीके हैं, जैसे खुर्रा बोनी, बियासी, कतार बोनी, रोपा विधि या एस.आर.आई पद्धति। कतार बोनी के लिए ट्रैक्टर या सीड ड्रिल से 20-22 सेंमी की दूरी पर कम गहराई में बीज बोएं।
बुवाई के 3 दिन के अंदर पेंडीमेथिलिन या ब्यूटाक्लोर जैसे नींदानाशक का छिड़काव करें। अगर पानी न हो, तो इन दवाओं को सूखी रेत में मिलाकर खेत में बिखेर दें। बियासी विधि में 40 किलो उपचारित बीज प्रति एकड़ बोएं और 25-30 दिन बाद बियासी करें।
रोपा विधि से बढ़ाएं पैदावार
छत्तीसगढ़ में रोपा विधि धान की खेती का पुराना और भरोसेमंद तरीका है। इसके लिए खेत के दसवें हिस्से में थरहा तैयार करें। एक मीटर चौड़ी और 10 मीटर लंबी ऊंची क्यारियां बनाएं। हर क्यारी में 500 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट मिलाएं और 400-500 ग्राम बीज बोएं। थरहा की उम्र 20-21 दिन होने पर रोपाई करें। रोपाई से पहले थरहा की जड़ों को क्लोरपाइरीफॉस से उपचारित करें।
इसके लिए एक गड्ढा खोदकर उसमें पॉलीथिन बिछाएं, 180 लीटर पानी और 12 किलो यूरिया का घोल बनाएं, और थरहा की जड़ों को 3-5 घंटे डुबोएं। शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए पौधों और कतारों की दूरी 15×10 सेंमी, मध्यम अवधि वाली किस्मों के लिए 20×15 सेंमी, और देर से पकने वाली किस्मों के लिए 25×20 सेंमी रखें।
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खाद और उर्वरक का सही इस्तेमाल
धान की खेती में खाद का सही इस्तेमाल पैदावार को आसमान छू सकता है। स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई या रोपाई के समय आधार खाद के रूप में डालें। नत्रजन (नाइट्रोजन) को तीन हिस्सों में बांटकर डालें। शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए 16-24 किलो नत्रजन, 8-16 किलो स्फुर और 6-8 किलो पोटाश प्रति एकड़ डालें।
मध्यम अवधि वाली किस्मों के लिए 24-32 किलो नत्रजन, 12-16 किलो स्फुर और 8-10 किलो पोटाश, और देर से पकने वाली किस्मों के लिए 32-40 किलो नत्रजन, 16-20 किलो स्फुर और 10-12 किलो पोटाश डालें। संकर किस्मों के लिए 50-60 किलो नत्रजन, 24-32 किलो स्फुर और 20-24 किलो पोटाश प्रति एकड़ की जरूरत होती है। नत्रजन को बुवाई/रोपाई, कंस फूटने और गभोट शुरू होने के समय डालें।
जैविक खाद से मिट्टी को ताकत
छत्तीसगढ़ की मिट्टी को जिंदा रखने के लिए जैविक खाद का कोई जवाब नहीं। गोबर खाद, केंचुआ खाद, नाडेप खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, नील हरित काई, एजोला और पी.एस.बी. कल्चर जैसे जैविक उपाय अपनाएं। हरी खाद के लिए दैंचा 20-25 किलो प्रति एकड़ बोएं और 35-40 दिन बाद (पुष्पन अवस्था में) खेत में मिला दें। इससे 16-20 किलो नत्रजन और ढेर सारा जीवांश मिट्टी को मिलता है। पी.एस.बी. कल्चर से मिट्टी में फॉस्फेट घुलनशील बनता है, जिससे 8-10 किलो स्फुर की बचत होती है। 5-10 ग्राम पी.एस.बी. कल्चर प्रति किलो बीज के लिए उपचार करें या 1.5-2 किलो कल्चर को गोबर में मिलाकर खेत में छिड़कें।
छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए सलाह
किसान भाइयों, छत्तीसगढ़ का हर खेत धान का कटोरा बन सकता है। अपने खेत की मटासी, कन्हार या भाटा मिट्टी के हिसाब से सही किस्म चुनें। हर साल थोड़ा-थोड़ा प्रमाणित बीज बोकर पुराने बीज को ताजा रखें। जैविक खाद और हरी खाद का इस्तेमाल करें, ताकि मिट्टी की ताकत बनी रहे। बुवाई और खाद का समय न चूकें, और नींदानाशकों का सही इस्तेमाल करें। रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय या अपने नजदीकी कृषि केंद्र से बीज, खाद और तकनीक की पूरी जानकारी लें। छोटे खेत में नई किस्में आजमाएं, फिर बड़े पैमाने पर लगाएं।
इस सीजन में छत्तीसगढ़ के खेतों में धान की खेती के ये तरीके अपनाएं, और देखें कि कैसे धान का कटोरा आपके लिए सोना उगलता है। कोई सवाल हो, तो अपने नजदीकी कृषि अधिकारी से जरूर संपर्क करें।
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