छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के किसानों ने पारंपरिक धान की खेती को छोड़कर ढेस (कमल ककड़ी) की खेती शुरू की है, और इससे उनकी कमाई में बंपर इजाफा हुआ है। गर्मियों में पानी की कमी को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को धान की जगह दूसरी फसलों पर ध्यान देने की सलाह दी थी। इस सलाह को अपनाते हुए बालोद के पड़कीभाट गाँव के किसानों ने ढेस की खेती शुरू की, और अब वे प्रति एकड़ 50 हजार रुपये तक कमा रहे हैं।
30 एकड़ में कमल ककड़ी की फसल
बालोद जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर पड़कीभाट गाँव में धान के खेतों के बीच दलदली जमीन पर ढेस की खेती हो रही है। पिछले साल इस गाँव में कुछ ही किसानों ने ढेस की खेती शुरू की थी, लेकिन इस बार गाँव में 25 से 30 एकड़ खेतों में ढेस की फसल लगाई गई है। किसान संतोष यादव ने बताया कि पिछले साल की तुलना में इस बार 75 प्रतिशत ज्यादा फसल हुई है। उन्होंने कहा, “धान में ज्यादा पानी लगता है, लेकिन ढेस की खेती में पानी कम लगता है। इस वजह से हम लोग अब ढेस की खेती ज्यादा कर रहे हैं।”
कम पानी में ज्यादा मुनाफा
कृषि विज्ञान केंद्र बालोद के प्रमुख वैज्ञानिक और संचालक के. आर. साहू ने बताया कि ढेस की खेती धान की तुलना में ज्यादा फायदेमंद है। ये फसल कम पानी में उगती है और दलदली जमीन के लिए मुफीद है। साहू ने कहा, “खेत में 2 से 4 इंच पानी भी हो, तो ढेस की खेती हो सकती है। ये नकदी फसल है, जिसे सालभर बेचकर पैसे कमाए जा सकते हैं। धान की तुलना में ढेस की खेती से दोगुना मुनाफा हो रहा है।” ढेस एक हरी खाद फसल भी है, जो खेतों में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है, जिससे दूसरी फसलों की पैदावार में भी इजाफा होता है।
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साल में तीन बार फसल
ढेस की खेती की खासियत ये है कि ये 3 से 4 महीने में तैयार हो जाती है, जिससे किसान साल में तीन बार फसल ले सकते हैं। जबकि धान की फसल साल में सिर्फ दो बार ली जा सकती है। किसान राजकुमार यादव ने बताया, “हमने गाँव में 20 एकड़ से ज्यादा खेतों में ढेस लगाया है। पानी कम लगता है, और फायदा ज्यादा है।” ढेस की फसल में कमल का पूरा पौधा इस्तेमाल होता है। इसके फूल (कमल) और फल (पोखरा) बाजार में बिकते हैं, और जड़ (ढेस) की माँग तो हाथों-हाथ रहती है। ये विटामिन सी, पोटेशियम, फास्फोरस, फाइबर, और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है।
किसानों को मिला फायदा
पड़कीभाट के किसान चन्द्रलाल निषाद ने बताया कि ढेस की फसल को वे राजनांदगांव, भिलाई, बालोद, रानीतरई, और गुंडरदेही के बाजारों में बेचते हैं। उन्होंने कहा, “धान से ज्यादा फायदा ढेस की फसल में है। एक एकड़ में 50 हजार रुपये तक की कमाई हो जाती है।” धान की खेती में पानी के साथ-साथ खाद, यूरिया, और कीटनाशक का ज्यादा खर्च होता है, जिससे लागत बढ़ जाती है। लेकिन ढेस की खेती में लागत कम लगती है, और मुनाफा ज्यादा मिलता है। छत्तीसगढ़ में ढेस को लोग खूब पसंद करते हैं, जिससे इसकी माँग हमेशा बनी रहती है।
ढेस की खेती से नया रास्ता
पड़कीभाट के किसानों की सफलता अब पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गई है। कम पानी में अच्छी कमाई देने वाली ढेस की खेती अब किसानों के लिए नया रास्ता बन रही है। अगर आप भी पानी की कमी से परेशान हैं और धान की जगह दूसरी फसल उगाना चाहते हैं, तो ढेस की खेती शुरू कर सकते हैं। इसके लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें और सही जानकारी लें। ढेस की खेती से न सिर्फ आपकी जेब भरेगी, बल्कि खेतों की सेहत भी बेहतर होगी।
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