उत्तर प्रदेश में तिल की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बड़ा कदम उठाया है, जो किसानों के लिए कम लागत और उच्च मुनाफे का रास्ता खोल रहा है। पूर्व कृषि निदेशक डॉ. जितेंद्र कुमार तोमर के अनुसार, तिल की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त है, जहां अच्छी जल निकासी वाली दोमट या हल्की बलुई दोमट मिट्टी का उपयोग करना चाहिए, जिसका पीएच 6.0-7.5 होना आदर्श माना जाता है। खरीफ सीजन में तिल की बुवाई जुलाई के आखिरी सप्ताह तक की जा सकती है।
सरकार बीज पर 95 रुपये प्रति किलोग्राम का अनुदान देकर किसानों की लागत कम करने में मदद कर रही है, साथ ही वैज्ञानिक विधियों से खेती को प्रोत्साहित कर रही है। तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 9,846 रुपये प्रति क्विंटल है, जो किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। आइए, इसके फायदे, खेती की तकनीक, और संभावित आय के बारे में विस्तार से जानते हैं!
तिल की खेती, 5 लाख हेक्टेयर का विस्तार
उत्तर प्रदेश में खरीफ मौसम में लगभग 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में (Til Ki Kheti) तिल की खेती होती है, खासकर उन असमतल क्षेत्रों में जहां जलभराव की समस्या नहीं होती और वर्षा कम होती है। तिल की खेती में निवेश बहुत कम लगता है, लेकिन इसके उच्च बाजार मूल्य के कारण प्रति हेक्टेयर लाभ की संभावना अधिक है। प्रमुख प्रजातियां जैसे आरटी-346, आरटी-351, गुजरात तिल-6, आरटी-372, एमटी-2013-3, और बीयूएटी तिल-1 इसकी पैदावार को बढ़ाने में सहायक हैं। बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखने से बेहतर उत्पादन मिलता है।
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बीज पर 95 रुपये प्रति किलोग्राम अनुदान
कृषि विभाग द्वारा तिल की खेती को बढ़ावा देने के लिए बीज पर 95 रुपये प्रति किलोग्राम का अनुदान दिया जा रहा है, जो किसानों की प्रारंभिक लागत को काफी कम करता है। बीज बोने से पहले थिरम या कार्बेन्डाजिम (2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम) से बीजोपचार करने से मिट्टी और बीज जनित रोगों से बचाव होता है, जिससे अंकुरण बेहतर होता है। वैकल्पिक रूप से, जैविक कीटनाशी ट्राइकोडर्मा (4 ग्राम प्रति किलोग्राम) का उपयोग भी प्रभावी है। यह कदम तिल की खेती को और लाभकारी बनाता है।
फसल संरक्षण और देखभाल
तिल की फसल को स्वस्थ रखने के लिए खरपतवार नियंत्रण जरूरी है। बुवाई के तुरंत बाद पेडीमेथालिन का उपयोग लाभकारी होता है। सिंचाई की जरूरत बरसात में कम होती है, लेकिन फूल आने और दाना भरने के दौर में एक सिंचाई उत्पादन बढ़ाने में मदद करती है। तना और फल सड़न से बचाव के लिए थायोफेनेट मिथाइल या कार्बेन्डाजिम, जबकि पत्ती झुलसा रोग के लिए मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करना चाहिए। कीट नियंत्रण के लिए क्विनालफाक्स या डाइमेथोएट का उपयोग केवल तभी करें, जब आर्थिक नुकसान का स्तर पार हो जाए।
बंजर जमीन का बेहतर उपयोग
कृषि विभाग का मानना है कि किसानों के पास बुवाई से बची बंजर जमीन को सूक्ष्म सिंचाई साधनों के साथ तिल की खेती के लिए उपयोग किया जा सकता है। इससे अतिरिक्त आय की संभावना बढ़ती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अन्य फसलें मुश्किल से उगती हैं। यह पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रही है।
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1 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की आय
तिल की फसल कटाई के लिए सही समय तब होता है, जब 70-80% फलियां पीली पड़ जाएं। कटाई के बाद पौधों को धूप में सुखाकर मड़ाई करनी चाहिए। परंपरागत तरीके से 4-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है, जबकि वैज्ञानिक विधि से 8-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो सकता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य 9,846 रुपये प्रति क्विंटल के साथ, वैज्ञानिक खेती से किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 1 लाख रुपये तक की आय कमा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए राजकीय कृषि रक्षा इकाई, जिला कृषि रक्षा अधिकारी, या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें।
पोषण और औषधीय लाभ
तिल न केवल मुनाफा देता है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। इसमें प्रोटीन (20.9%), वसा (53.5%, कोलेस्ट्रॉल मुक्त), विटामिन A, B1, B2, B6, B11, साथ ही पोटैशियम, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, मैग्नीशियम, और जिंक प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके औषधीय गुण रक्तचाप, रक्तशर्करा, और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं, साथ ही इसमें रोगाणुरोधी और कैंसररोधी गुण भी हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक इसके तेल और बीज को दैनिक आहार में शामिल करने की सलाह देते हैं।
तिल की खेती को अपनाएं और यूपी सरकार के अनुदान का लाभ उठाएं। कम लागत में शुरू करें और अपनी आय को दोगुना करें। नजदीकी कृषि केंद्र से बीज और जानकारी लें, और अपनी मेहनत को मुनाफे में बदलें!
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