जाने क्या है ईको-फ्रेंडली चिकन कॉप, मुर्गियों का हरा-भरा घर, एक मुर्गा बेंचिए 1500 का

प्यारे किसान भाइयों, आपके खेतों की मेहनत ही हर घर को ताकत देती है। आजकल मुर्गियाँ पालना सिर्फ अंडे और मांस के लिए नहीं, बल्कि शौक और सेहत के लिए भी बढ़ रहा है। मगर इन मुर्गियों को रखने के लिए ऐसा घर चाहिए जो न सिर्फ उनके लिए आरामदायक हो, बल्कि हमारी धरती को भी नुकसान न पहुँचाए। ईको-फ्रेंडली चिकन कॉप यानी पर्यावरण के दोस्त मुर्गीघर इस काम में कमाल करते हैं। ये नई सोच के साथ पुराने देसी तरीकों का मेल हैं। आइए जानते हैं कि गाँव में मुर्गियों के लिए हरा-भरा घर कैसे बनाएँ।

प्रकृति के साथ मुर्गीघर का डिज़ाइन

ईको-फ्रेंडली चिकन कॉप का मतलब है ऐसा घर जो प्रकृति के साथ तालमेल रखे। इसके लिए पुराना लकड़ी का सामान, जैसे टूटे फर्नीचर या खेत की बेकार पड़ी लकड़ी, इस्तेमाल करें। बाँस भी बढ़िया है-हल्का, मजबूत, और जल्दी उग जाता है। छत के लिए पुरानी टीन या घास-फूस का ढक्कन बनाएँ। सूरज की रोशनी का फायदा उठाएँ-दक्षिण दिशा में खिड़कियाँ रखें, ताकि सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में हवा मिले। ऐसा डिज़ाइन मुर्गियों को ठंडा और खुश रखता है।

पानी और खाद का जुगाड़

मुर्गीघर को हरा-भरा बनाने के लिए पानी और कचरे का सही इस्तेमाल जरूरी है। बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए छत पर टीन की नाली और पास में मटका या टंकी रखें। ये पानी मुर्गियों को पिलाने और सफाई में काम आएगा। मुर्गियों की बीट को फेंकें नहीं-इसे गोबर के साथ मिलाकर खाद बनाएँ। गाँव में ये पुराना तरीका है, जो खेतों को ताकत देता है। नीम की पत्तियाँ या तेल डालें, तो कीड़े भी भागेंगे। इससे खर्चा कम होगा और मिट्टी भी हरी-भरी रहेगी।

कीटनाशक छोड़ें, देसी उपाय अपनाएँ

ईको-फ्रेंडली चिकन कॉप में केमिकल की जगह देसी नुस्खे काम करते हैं। मुर्गीघर के आसपास गेंदे, तुलसी, या पुदीने के पौधे लगाएँ-ये कीटों को भगाते हैं और हवा को शुद्ध रखते हैं। कॉप की दीवारों पर नीम का तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) छिड़कें, ताकि लाल कीड़े (रेड माइट्स) न आएँ। लकड़ी की राख या गोमूत्र का हल्का छिड़काव भी कीटों से बचाता है। ये सब गाँव में आसानी से मिलता है और धरती को नुकसान नहीं पहुँचाता।

मशीनों से कम, हाथों से ज्यादा

बड़ी कंपनियाँ मशीनों से मुर्गीघर बनाती हैं, मगर गाँव में अपने हाथों से बनाना सस्ता और मजेदार है। पुराने ड्रम, टायर, या पलेट्स से कॉप की दीवारें खड़ी करें। ऊँचाई का फायदा लें-रोस्टिंग बार्स और नेस्टिंग बॉक्स ऊपर-नीचे लगाएँ, ताकि जगह बचे। सोलर लाइट लगाएँ, जो सूरज से चार्ज होकर रात में रोशनी दे। ये तरीके लागत घटाते हैं और मुर्गियों को आराम देते हैं। गाँव में कहते हैं, “अपना हाथ, जगन्नाथ”-तो खुद बनाएँ, फायदा पाएँ।

फायदा मुर्गियों का, कमाई आपकी

ईको-फ्रेंडली चिकन कॉप से मुर्गियाँ खुश रहती हैं, तो अंडे और सेहत अच्छी मिलती है। एक छोटा कॉप (4×6 फीट) 6-8 मुर्गियों के लिए काफी है। प्रति हेक्टेयर 500 मुर्गियाँ पालें, तो सालाना 50,000-1 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। लागत 10,000-15,000 रुपये से शुरू होती है-पुराना सामान और देसी तरीकों से और कम। बाजार में ऑर्गेनिक अंडे 10-15 रुपये प्रति पीस बिकते हैं। और एक मुर्गे को आप 1000 से 1500 तक बेंच सकते हैं। गाँव से शहर तक डिमांड बढ़ रही है। ये खेती धरती को बचाती है और जेब भरती है।

तो, किसान भाइयों, ईको-फ्रेंडली चिकन कॉप बनाएँ। पुराने सामान, देसी जुगाड़, और थोड़ी मेहनत से मुर्गियों का हरा-भरा घर तैयार करें। ये न सिर्फ आपके लिए फायदेमंद है, बल्कि हमारी धरती के लिए भी सौगात है।

ये भी पढ़ें – खरीद रहे हैं गाय या भैंस, तो इन 5 गलतियों से बचें, नहीं तो उठाना पड़ेगा भारी नुकसान

Author

  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

    View all posts

Leave a Comment