Toor Dal Price: केंद्र सरकार राष्ट्रीय मिशन के जरिए भारत को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की बात कर रही है, लेकिन दूसरी ओर अरहर (तुअर), चना, मूंग, और उड़द की कीमतें पिछले एक साल में तेजी से गिरी हैं। इससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अरहर की कीमतों में करीब 43% की गिरावट आई है। आयात नीति और बुवाई में कमी जैसे मुद्दों ने आत्मनिर्भरता के सपने को चुनौती दी है। आइए, इसकी वजह और समाधान जानें।
अरहर की कीमतों में भारी गिरावट
एगमार्कनेट पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, 27 जून 2024 को अरहर का भाव 11,213 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 27 जून 2025 को घटकर 6,422 रुपये रह गया। यानी, कीमतों में 43% की कमी आई। 12 जुलाई 2025 को भी महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, और मध्य प्रदेश की मंडियों में अरहर का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी कम रहा। सिर्फ तेलंगाना की आलेर मंडी में 7,550 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला, लेकिन बाकी मंडियों में कीमतें कम थीं। खरीफ मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए अरहर का MSP 7,550 रुपये था, जिसे 2025-26 के लिए बढ़ाकर 8,000 रुपये किया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या किसानों को यह MSP मिल पाएगा?
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सरकारी खरीद की कमियां
प्राइस सपोर्ट स्कीम (PSS) के तहत सरकार दालों की खरीद का दावा करती है, लेकिन सभी किसानों की उपज खरीदना संभव नहीं होता। कुल उत्पादन का बहुत कम हिस्सा ही MSP पर खरीदा जाता है। अरहर की खरीद अन्य दालों जैसे चना और मूंग के मुकाबले कम होती है। कई बार फसल की क्वालिटी, नमी, या अन्य कारणों से किसानों को पूरा MSP नहीं मिलता। इससे किसानों का भरोसा टूटता है, और वे दालों की खेती से मुंह मोड़ने लगते हैं।
आयात नीति का असर
भारत अपनी दालों की मांग पूरी करने के लिए हर साल कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार जैसे देशों से बड़ी मात्रा में दालें आयात करता है। पीली मटर, अरहर, उड़द, और मसूर जैसी दालों पर शुल्क-मुक्त आयात की नीति ने घरेलू कीमतों को दबाया है। 2024-25 में भारत ने 66.3 लाख टन दालें आयात कीं, जो 2023 के 33.1 लाख टन से दोगुना है। पीली मटर का आयात 20.4 लाख टन रहा, जो कुल आयात का 31% है। सस्ती पीली मटर की बड़ी आवक ने अरहर और चना जैसी महंगी दालों की मांग घटाई, जिससे किसानों को नुकसान हुआ।
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बुवाई में कमी और चुनौतियाँ
कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, खरीफ सीजन 2025 में दलहन की बुवाई में तेजी दिखी, लेकिन अरहर की बुवाई पिछले साल से कम रही। 2023-24 में दलहन उत्पादन 242.46 लाख टन था, जो 2022-23 के 260.58 लाख टन से कम है। अरहर, उड़द, और मूंग जैसी खरीफ दालें 87% बारिश पर निर्भर हैं, जिससे उत्पादन में उतार-चढ़ाव आता है। कम MSP और सस्ते आयात के कारण किसान मक्का जैसी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं।
आत्मनिर्भरता के लिए रास्ता
2025-26 के बजट में ‘मिशन फॉर आत्मनिर्भरता इन पल्सेस’ के लिए 1,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इसका लक्ष्य 2029 तक दालों के आयात पर निर्भरता खत्म करना है। NAFED और NCCF MSP पर अरहर, उड़द, और मसूर खरीदेंगे। ICAR ने 2014-23 के बीच 343 उच्च-उपज वाली किस्में विकसित की हैं। लेकिन आत्मनिर्भरता के लिए आयात शुल्क बहाल करना, भंडारण सुविधाएँ बढ़ाना, और किसानों को जलवायु-प्रतिरोधी बीज देना जरूरी है।
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