Top 3 New Varieties of Soyabean: रबी फसलों की कटाई खत्म हो चुकी है, और अब खरीफ सीजन की तैयारी का वक्त है। सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने पर होती है, जो हर साल अच्छी कमाई का रास्ता खोलती है। लेकिन सही किस्म का बीज चुनना आपकी मेहनत को सोना बना सकता है। आज हम आपको पिछले साल सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली सोयाबीन की तीन उन्नत किस्मों जेएस 2303, जेएस 2172, और एनआरसी 150 के बारे में बताएँगे। ये किस्में न सिर्फ ज्यादा फसल देती हैं, बल्कि रोगों से भी लड़ सकती हैं। आइए, इनके बारे में जानें, ताकि आप इस खरीफ सीजन में मालामाल हो सकें।
जेएस 2303
जेएस 2303 सोयाबीन की ऐसी किस्म है, जिसने पिछले साल किसानों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी। इसे जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर ने बनाया है। ये किस्म 92 दिन में पककर तैयार हो जाती है, यानी आप जल्दी कटाई करके आलू, प्याज, मटर या लहसुन जैसी दूसरी फसलें लगा सकते हैं। इसकी खास बात ये है कि इसमें तीन-तीन फलियों का गुच्छा बनता है, और फलियाँ चिकनी होती हैं। पौधे की ऊँचाई अच्छी होने से ये हार्वेस्टर से कटाई के लिए बिल्कुल मुफीद है।
पिछले साल इसने 5 से 6 क्विंटल प्रति बीघा तक पैदावार दी, और आदर्श हालात में ये 7 क्विंटल प्रति बीघा या 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक फसल दे सकती है। बीज की मात्रा 16-18 किलो प्रति बीघा रखें, और कतारों के बीच 18 इंच की दूरी बनाएँ। ये किस्म रोगों से लड़ने में भी माहिर है और खरीफ-रबी दोनों मौसमों में बोई जा सकती है। बस सावधानी बरतें कि असली बीज खरीदें, क्योंकि बाजार में नकली बीज बेचने वाले भी सक्रिय हैं।
जेएस 2172
जेएस 2172 भी जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की देन है, जिसे बदलते मौसम, गर्मी और पानी की कमी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। ये किस्म मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, और महाराष्ट्र के भारी मिट्टी और मध्यम से ज्यादा बारिश वाले इलाकों के लिए बेस्ट है। इसकी पकने की अवधि 94-95 दिन है, और पिछले साल इसने 4 से 6.5 क्विंटल प्रति बीघा तक पैदावार दी। कुछ किसानों ने तो 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक फसल ली।
इस किस्म का पौधा मज़बूत होता है, जो आड़ा नहीं पड़ता और हार्वेस्टर से कटाई में आसान है। फलियों में चटकने की समस्या भी नहीं होती, यानी कटाई के वक्त नुकसान कम। ये येलो मोजेक वायरस, चारकोल रॉट, और बैक्टीरियल पाश्चुल जैसे रोगों से लड़ने में माहिर है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय गुप्ता कहते हैं कि जेएस 2172 की रोग प्रतिरोधक क्षमता इसे दूसरी किस्मों से अलग बनाती है। बीज की मात्रा 80 किलो प्रति हेक्टेयर रखें, और सही देखभाल के साथ ये आपकी जेब भर सकती है।
एनआरसी 150
एनआरसी 150 को आईसीएआर-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने विकसित किया है। ये किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड, राजस्थान, गुजरात, और महाराष्ट्र के लिए अनुशंसित है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये सिर्फ 91 दिन में पक जाती है, यानी अनियमित मानसून में भी फसल सुरक्षित रहती है। पिछले साल इसने 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर या 6-7 क्विंटल प्रति बीघा तक पैदावार दी।
ये किस्म लाइपोक्सीजिनेज-2 एंजाइम से मुक्त है, जिसकी वजह से इससे बने सोया दूध, टोफू, और पनीर में गंध नहीं आती। ये चारकोल रॉट जैसे रोगों से भी लड़ सकती है। अगर आप ऐसी फसल चाहते हैं, जो जल्दी पके और बाजार में अच्छा दाम दे, तो एनआरसी 150 बेस्ट है। बीज की मात्रा 80 किलो प्रति हेक्टेयर रखें, और बोने से पहले मिट्टी की जाँच ज़रूर कराएँ।
नकली बीज से बचें
इन तीनों किस्मों की डिमांड इतनी है कि बाजार में नकली बीज बेचने वाले भी सक्रिय हो गए हैं। खासकर जेएस 2303 और एनआरसी 150 के बीज सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, लेकिन कुछ लोग क्विंटलों में बीज होने का दावा करते हैं। ऐसे में, बीज खरीदते वक्त बिल ज़रूर लें और उसकी शुद्धता की जाँच कराएँ। भरोसेमंद दुकान या सरकारी केंद्र से ही बीज खरीदें।
सोयाबीन की खेती से मुनाफा कैसे कमाएँ?
इन उन्नत किस्मों को सही देखभाल के साथ बोने से आपकी कमाई कई गुना बढ़ सकती है। जून-जुलाई में बोवनी शुरू करें, और मिट्टी को अच्छे से तैयार करें। गोबर की खाद और जैविक खुराक डालें। कतारों के बीच सही दूरी रखें और समय पर पानी दें। इन किस्मों की फसल न सिर्फ ज्यादा देगी, बल्कि बाजार में अच्छा दाम भी लाएगी। गाँव की बहनें भी सोयाबीन से बने प्रोडक्ट्स, जैसे सोया दूध या नमकीन, बनाकर कमाई कर सकती हैं।
तो देर न करें, इस खरीफ सीजन में जेएस 2303, जेएस 2172, या एनआरसी 150 चुनें। सही बीज, मेहनत, और देखभाल से आपका खेत सोने की तरह चमकेगा। अपनी फसल को बंपर बनाएँ और मुनाफे की नई कहानी लिखें।
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