Top 3 Paddy Varieties : धान की खेती हमारे देश की रीढ़ है। ये हर घर की थाली में चावल पहुँचाती है और देश को खाने का भरोसा देती है। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। मौसम का मिजाज़ बिगड़ रहा है, बारिश कम हो रही है, और पानी की किल्लत बढ़ रही है। ऊपर से आपको अच्छी पैदावार भी चाहिए। ऐसे में पुरानी धान की किस्में अब काम नहीं देतीं, क्यूँकि वो पानी खूब पीती हैं। तो क्या करें? जवाब है—उन्नत किस्में।
ये नई किस्में कम पानी में भी खेत को लहलहा देती हैं और मोटी फसल देती हैं। इस लेख में हम आपको ऐसी ही तीन उन्नत किस्मों पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1509, और स्वर्ण शक्ति के बारे में सब कुछ बताएँगे। साथ ही, इन्हें बोने का सही तरीका भी समझाएँगे, ताकि आपकी मेहनत का पूरा फल मिले।
पानी की कमी से क्यों परेशानी, और नया रास्ता क्या?
सबसे पहले ये समझें कि पानी की दिक्कत क्यों बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश का भरोसा नहीं रहा। कहीं सूखा पड़ता है, कहीं बाढ़ आती है। नदियाँ-तालाब सूख रहे हैं, और भूजल नीचे जा रहा है। पुरानी धान की किस्में तो पानी की प्यासी होती हैं दिन-रात सिंचाई चाहिए। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने ऐसी नई किस्में बनाई हैं, जो कम पानी में भी बढ़िया काम करती हैं। ये सूखे को झेल लेती हैं, कम सिंचाई माँगती हैं, और फसल भी मज़ेदार देती हैं। मतलब, आप पानी बचाएँगे, मेहनत कम करेंगे, और मुनाफा ज़्यादा पाएँगे।
पूसा बासमती 1847
पहली किस्म है पूसा बासमती 1847। ये बासमती चावल का उन्नत रूप है, जिसे वैज्ञानिकों ने खास तौर पर तैयार किया है। इसके दाने लंबे और पतले होते हैं, सुगंध ऐसी कि खाने का मन करे, और स्वाद में कोई जवाब नहीं। बाज़ार में इसकी खूब माँग है। ये अर्ध-बौनी किस्म है, यानी पौधा ज्यादा लंबा नहीं होता 95-100 सेंटीमीटर तक। तेज़ हवा आए तो भी ये नहीं गिरता। खास बात ये कि ये बैक्टीरियल ब्लाइट (जीवाणु झुलसा) और ब्लास्ट (पत्ती झुलसा) जैसे रोगों से नहीं डरता। इसे पूरे भारत में बो सकते हैं चाहे उत्तर प्रदेश हो, पंजाब हो, या बिहार।
इसकी पैदावार भी कमाल की है एक हेक्टेयर में 5.7 टन तक चावल देती है। यानी एक एकड़ में करीब 23-24 क्विंटल। अगर बाज़ार में 40 रुपए किलो भी भाव मिले, तो 90 हज़ार से 1 लाख तक की कमाई हो सकती है। लागत निकालकर भी मुनाफा पक्का। और पानी? ये पुरानी बासमती से कम लेती है, तो सूखे इलाकों में भी आप इसे आज़मा सकते हैं।
पूसा बासमती 1509
दूसरी किस्म है पूसा बासमती 1509। इसे दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) ने बनाया है। ये बासमती की सबसे तेज़ पकने वाली किस्मों में से एक है सिर्फ़ 120 दिन में तैयार। मतलब, जून में बोएँ, तो अक्टूबर तक फसल हाथ में। इसके दाने 8.19 मिमी लंबे होते हैं, और पकने पर 18-20 मिमी तक बढ़ जाते हैं। सुगंध भी शानदार है, जिसकी वजह से बाज़ार में इसे खूब पसंद किया जाता है। ये भी अर्ध-बौना है लंबाई 95-100 सेंटीमीटर तो हवा से नहीं गिरता।
पैदावार की बात करें, तो एक हेक्टेयर में 4.25 से 6.5 टन तक चावल देती है। यानी एक एकड़ में 17-26 क्विंटल। सबसे बड़ी खासियत—ये पूसा बासमती 1121 से 33% कम पानी लेती है। जहाँ पुरानी किस्म को 6-7 सिंचाई चाहिए, ये 4 में काम चला लेती है। सूखे इलाकों के लिए ये वरदान है। पिछले 7 साल में देश में 2.68 लाख हेक्टेयर में इसे बोया गया और 11.65 लाख टन चावल पैदा हुआ। आप भी इसे बोकर पानी बचाएँ और मुनाफा कमाएँ।
स्वर्ण शक्ति
तीसरी किस्म है स्वर्ण शक्ति। इसे हैदराबाद के चावल अनुसंधान निदेशालय ने तैयार किया है। ये 115-120 दिनों में पक जाती है और एक हेक्टेयर में 45-50 क्विंटल (4.5-5 टन) तक देती है। ये सूखा झेलने में माहिर है और कीड़े-बीमारियों से लड़ सकती है। इसके चावल में पोषण खूब होता है 23.5 पीपीएम जिंक, 15.1 पीपीएम आयरन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, और मैग्नीशियम। मतलब, खाने वाले को सेहत और आपको फायदा।
ये मध्यम अवधि की किस्म है, जो कम पानी में भी लहलहाती है। अगर आपके खेत में पानी कम है, तो ये आपके लिए पक्की चॉइस है। एक एकड़ में 18-20 क्विंटल तक दे सकती है। बाज़ार में 35-40 रुपए किलो भी मिले, तो 70-80 हज़ार की कमाई हो सकती है। लागत कम और फायदा ज़्यादा ये है इसकी खूबी।
खेती का सही तरीका, हर बात साफ
अब इन किस्मों को बोने का तरीका समझें। सबसे पहले खेत तैयार करें। मिट्टी को अच्छे से जोतें, गोबर की खाद डालें 10-15 गाड़ी प्रति एकड़। थोड़ा जैविक उर्वरक जैसे वर्मी कम्पोस्ट भी मिलाएँ, ताकि मिट्टी ताकतवर बने और पानी अच्छे से निकले। बुआई जून-जुलाई में शुरू करें, क्यूँकि बारिश का पानी फायदा देगा। पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर रखें, ताकि हवा और धूप सबको मिले।
सिंचाई हल्की-हल्की करें। ड्रिप इरिगेशन का तरीका अपनाएँ पानी की बूँद-बूँद इस्तेमाल होगी और फसल भी बढ़िया आएगी। पहली सिंचाई बुआई के 5-7 दिन बाद, फिर हर 10-12 दिन में। इन किस्मों को 4-5 सिंचाई काफी है। कीड़े-मकोड़े लगें जैसे धान का तना छेदक या झुलसा तो नीम का तेल या जैविक दवा छिड़कें। रसायन कम इस्तेमाल करें, ताकि मिट्टी की सेहत बनी रहे। समय पर निराई-गुड़ाई करें, ताकि खरपतवार न बढ़ें।
फायदा कितना, हिसाब समझें
अब हिसाब लगाएँ। पूसा 1509 से एक एकड़ में 25 क्विंटल चावल मिले और 40 रुपए किलो भाव मिला, तो 1 लाख की कमाई। लागत बीज, खाद, पानी 30-35 हज़ार मानें, तो 65-70 हज़ार मुनाफा। स्वर्ण शक्ति से 20 क्विंटल मिले, 40 रुपए किलो, तो 80 हज़ार लागत निकालकर 50 हज़ार बचत। पूसा 1847 से 23 क्विंटल, तो 90 हज़ार कमाई और 60 हज़ार मुनाफा। पानी की बचत अलग से। मतलब, मेहनत कम, फायदा ज़्यादा, और देश का भूजल भी बचेगा।
क्यों जरूरी हैं ये किस्में?
ये उन्नत किस्में आपके लिए वरदान हैं। कम पानी में फसल देती हैं, तो सूखे की मार नहीं झेलनी पड़ती। पैदावार ज़्यादा है, तो बाज़ार में दाम अच्छा मिलेगा। पोषण से भरपूर हैं, तो खाने वालों की सेहत बनेगी। ऊपर से मौसम की अनिश्चितता से बचाव होगा। तो इस बार पुरानी किस्मों को छोड़ें, इन नए बीजों को अपनाएँ, और अपनी खेती को चमकाएँ।
ये भी पढ़ें- अप्रैल में धान की नर्सरी तैयार करने की विधि: सही तरीके और सावधानियाँ