Top Varieties of Bitter Gourd Cultivation : किसान भाई आमतौर पर अनाज, दालें और तिलहन की खेती में ही उलझे रहते हैं। लेकिन मौसम की मार या सही दाम न मिलने से मेहनत पर पानी फिर जाता है। ऐसे में अगर आप कुछ नया और फायदेमंद करना चाहते हैं, तो करेले की खेती आपके लिए सुनहरा मौका हो सकती है। ये फसल सिर्फ 50-60 दिन में तैयार हो जाती है। मार्च में बुवाई करें, तो गर्मी शुरू होते ही अच्छी कमाई हाथ में होगी।
बाज़ार में करेले की माँग हमेशा बनी रहती है और इसके दाम भी बढ़िया मिलते हैं। आइए जानते हैं करेले की खेती के फायदे, उन्नत किस्में और इसे सही तरीके से करने का तरीका।
करेला सेहत का खज़ाना
करेला सिर्फ सब्ज़ी नहीं, बल्कि सेहत का खज़ाना है। इसमें विटामिन A, B और C के साथ-साथ कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, जिंक, पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन और मैग्नीज जैसे पोषक तत्व भरे हैं। ये कई बीमारियों को दूर रखता है। शुगर और डायबिटीज के मरीज़ों के लिए तो ये रामबाण है। डॉक्टर भी रोज़ करेला खाने की सलाह देते हैं। ये खून को साफ करता है और पेट की गड़बड़ी को ठीक करता है। औषधीय गुणों से भरपूर होने की वजह से इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है। अगर सही तरीके से खेती करें, तो मुनाफा पक्का है।
वर्टिकल फार्मिंग: कम जगह, ज़्यादा कमाई
करेले की खेती में वर्टिकल फार्मिंग गेम-चेंजर साबित हो सकती है। इसका मतलब है कम जगह में ज़्यादा पैदावार लेना। इसमें बांस और तार की मदद से मचान बनाकर बेलों को ऊपर चढ़ाया जाता है। हाइड्रोपोनिक, एरोपोनिक या एक्वापोनिक्स जैसी तकनीकों से भी इसे और बेहतर बनाया जा सकता है। इससे न सिर्फ ज़मीन की बचत होती है, बल्कि फसल भी अच्छी होती है। वर्टिकल तरीके से खेती करने पर करेला साफ-सुथरा रहता है और बाज़ार में ज़्यादा दाम लाता है।
खेती के लिए ज़रूरी बातें
करेले की खेती के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है। बलुई दोमट या नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी है। गर्म मौसम इसकी खेती के लिए मुफीद है, खासकर 25 से 35 डिग्री तापमान। इसे जायद और खरीफ दोनों मौसम में उगाया जा सकता है। जायद में फरवरी-मार्च की बुवाई से मई-जून में फसल मिलती है। इस सीजन में लागत ज़्यादा लगती है, लेकिन मुनाफा भी शानदार होता है। वहीं, खरीफ में जून-जुलाई की बुवाई से अगस्त-सितंबर में पैदावार मिलती है। मार्च में शुरू करें, तो गर्मी की शुरुआत में कमाई शुरू हो जाएगी।
करेले की उन्नत किस्में- Top Varieties of Bitter Gourd Cultivation
करेले की कई उन्नत किस्में हैं, जो जल्दी तैयार होती हैं और अच्छी पैदावार देती हैं। इनमें पूसा विशेष, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, कल्याणपुर बारहमासी, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलर हरा, सोलर सफेद, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर 1, प्रिया को-1 और एसडीयू-1 शामिल हैं। ये किस्में 50-60 दिन में तैयार हो जाती हैं और बाज़ार में अच्छी कीमत लाती हैं। अपने इलाके के हिसाब से सही किस्म चुनें।
करेले की खेती का सही तरीका
करेले की खेती शुरू करने के लिए सबसे पहले खेत तैयार करें। गोबर की खाद डालकर मिट्टी में मिलाएँ। फिर कल्टीवेटर से अच्छी जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएँ। पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें। खेत में नालियाँ बनाएँ, जो दोनों तरफ हों, ताकि पानी जमा न हो। एक एकड़ के लिए 600 ग्राम बीज काफी हैं। बीजों को 2-3 इंच गहराई पर बोएँ। नाली से नाली की दूरी 2 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 70 सेमी रखें। बेल निकलने पर मचान बनाकर उसे चढ़ाएँ।
जाल विधि सबसे बढ़िया है। इसमें पूरे खेत में जाल बिछाकर बेल फैलाते हैं। इससे फसल पशुओं से सुरक्षित रहती है और नीचे खाली जगह में धनिया या मैथी जैसी सब्ज़ियाँ उगाकर डबल मुनाफा लिया जा सकता है।
मुनाफे का रास्ता
करेले की खेती तेज़ी से तैयार होती है और बाज़ार में इसकी माँग सालभर रहती है। वर्टिकल और जाल विधि से खेती करें, तो पैदावार दोगुनी हो सकती है। मार्च में बुवाई शुरू करें, तो मई-जून में अच्छी कमाई होगी। ये फसल न सिर्फ आपकी जेब भरेगी, बल्कि सेहतमंद सब्ज़ी के तौर पर लोगों तक भी पहुँचेगी। तो देर न करें, करेले की खेती अपनाएँ और मालामाल बनें!
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