केंद्र सरकार डीजल से चलने वाली मशीनों, जैसे ट्रैक्टर और हार्वेस्टर, के लिए नया ईंधन विकल्प लाने की तैयारी कर रही है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में ऑटो उद्योग के विशेषज्ञों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की। बैठक में डीजल में आइसोब्यूटेनॉल मिलाने या इसे डीजल की जगह पूरी तरह इस्तेमाल करने की संभावनाओं पर बात हुई। इस जैव ईंधन से प्रदूषण कम होगा और विदेशी तेल आयात पर निर्भरता घटेगी। किसानों के लिए यह खबर इसलिए अहम है, क्योंकि ट्रैक्टरों की लागत और पर्यावरणीय प्रभाव कम हो सकता है।
आइसोब्यूटेनॉल है क्या
आइसोब्यूटेनॉल एक जैव ईंधन है, जो इथेनॉल से किण्वन प्रक्रिया के जरिए बनता है। यह इथेनॉल से ज्यादा ऊर्जा देता है और कम संक्षारक होता है। यह रंगहीन और गंधहीन होता है, जिसके कारण इसे डीजल के साथ मिलाने या डीजल की जगह इस्तेमाल करने के लिए उपयुक्त माना जा रहा है। नितिन गडकरी ने बताया कि इसे शुरू में डीजल में 10 फीसदी तक मिलाया जा सकता है, और भविष्य में यह डीजल को पूरी तरह रिप्लेस कर सकता है। ऑटो कंपनियाँ इसकी टेस्टिंग कर रही हैं, ताकि ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरणों में इसका उपयोग आसानी से हो सके।
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डीजल में 10 फीसदी मिलावट की योजना
नितिन गडकरी ने सुझाव दिया कि शुरुआत में आइसोब्यूटेनॉल को डीजल में 10 फीसदी तक मिलाया जाएगा, जैसा कि पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाकर E-20 पेट्रोल बनाया गया है। ऑटो उद्योग इस मिश्रण को ट्रैक्टरों और हार्वेस्टरों में आजमाने के लिए रिसर्च कर रहा है। यह मिश्रण बिना किसी तकनीकी बदलाव के इस्तेमाल हो सकता है। अगर यह योजना सफल रही, तो भविष्य में आइसोब्यूटेनॉल डीजल की जगह पूरी तरह ले सकता है। इससे किसानों को कम प्रदूषण वाले ट्रैक्टर मिलेंगे, और खेती का काम और पर्यावरण के लिए बेहतर होगा।
डीजल की बढ़ती माँग का समाधान
भारत में डीजल की खपत बहुत ज्यादा है। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के अनुसार, देश के कच्चे तेल के इस्तेमाल में डीजल की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है। 2024-25 में डीजल की माँग 2 फीसदी बढ़ी, और 2025-26 में इसके 3 फीसदी और बढ़ने की उम्मीद है। नितिन गडकरी ने कहा कि डीजल पर इतनी निर्भरता देश के लिए नुकसानदेह है, क्योंकि इससे विदेशी तेल आयात का खर्च बढ़ता है और प्रदूषण भी बढ़ता है। आइसोब्यूटेनॉल जैसे जैव ईंधन से यह समस्या कम हो सकती है, और किसानों के लिए ट्रैक्टरों का खर्च भी घट सकता है।
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किसानों पर असर
आइसोब्यूटेनॉल को डीजल में मिलाने का काम अभी शुरुआती दौर में है। ऑटो कंपनियाँ और स्टार्टअप इसकी टेस्टिंग कर रहे हैं, ताकि यह ट्रैक्टरों और हार्वेस्टरों में बिना किसी परेशानी के इस्तेमाल हो सके। शुरू में 90 फीसदी डीजल और 10 फीसदी आइसोब्यूटेनॉल का मिश्रण होगा। इससे ट्रैक्टरों की ताकत या प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन बड़े स्तर पर यह मिश्रण डीजल की खपत और प्रदूषण को कम करेगा। अगर सरकार इस नए ईंधन की कीमत कम रखती है, तो किसानों की खेती की लागत घट सकती है। यह बागवानी और अन्य फसलों की खेती करने वालों के लिए भी फायदेमंद होगा।
पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
आइसोब्यूटेनॉल जैसे जैव ईंधन से पर्यावरण को फायदा होगा और देश का तेल आयात का खर्च कम होगा। यह ईंधन कृषि आधारित कच्चे माल से बनता है, जिससे बागवानी किसानों को नई आय के रास्ते खुल सकते हैं। बायोमास से बने इस ईंधन से खेती से जुड़ी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। सरकार की इस पहल से प्रदूषण कम होगा और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा। किसानों के लिए यह एक ऐसी खबर है, जो उनकी खेती को और किफायती और पर्यावरण के लिए बेहतर बना सकती है।
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