जीनोम-एडिटेड धान की दो नई किस्में कमला और Pusa DST Rice-1 लांच, किसानों को मिलेगी रिकॉर्ड उपज

धान भारतीय खेती की रीढ़ है, और अब जीनोम-एडिटेड तकनीक ने इसे और ताकतवर बना दिया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने दो नई किस्में—डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस-1 विकसित की हैं, जिन्हें आज कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जारी किया। ये किस्में ज्यादा उपज, कम पानी, और जलवायु परिवर्तन से लड़ने की खूबी के साथ किसानों के लिए वरदान बन रही हैं। इन किस्मों के विकास में CRISPR-Cas9 जैसी आधुनिक जीनोम एडिटिंग तकनीक का उपयोग किया गया है, जिसमें किसी बाहरी जीन को शामिल नहीं किया गया है।

डीआरआर धान 100 (कमला)

हैदराबाद के ICAR-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान ने लोकप्रिय सांबा मसूरी किस्म को जीनोम-एडिटेड तकनीक से और बेहतर बनाया है। नई किस्म ‘कमला’ में साइटोकिनिन ऑक्सीडेज 2 (CKX2) जीन में बदलाव कर हर बाली में दानों की संख्या बढ़ाई गई है। साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज 1 (SDN1) तकनीक से बिना बाहरी डीएनए के ये बदलाव किए गए, जिससे ये किस्म पूरी तरह सुरक्षित है। परीक्षणों में कमला ने सांबा मसूरी से 19% ज्यादा उपज दी, यानी औसतन 21.48 क्विंटल प्रति एकड़।

अनुकूल हालात में ये 36 क्विंटल तक उपज दे सकती है। खास बात ये है कि ये 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो सांबा मसूरी से 20 दिन कम है। सूखा सहनशीलता, बेहतर नाइट्रोजन उपयोग, और मजबूत तने इसे और खास बनाते हैं। चावल की गुणवत्ता भी सांबा मसूरी जैसी ही शानदार है।

पूसा डीएसटी राइस-1

पूसा के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने एमटीयू1010 किस्म को जीनोम-एडिटेड तकनीक से उन्नत कर पूसा डीएसटी राइस-1 बनाया है। SDN1 तकनीक से इसमें सूखा और नमक सहिष्णुता (DST) जीन डाला गया, बिना किसी बाहरी डीएनए के। ये किस्म सूखा और खारी मिट्टी में भी शानदार उपज देती है। फील्ड ट्रायल्स में इसने एमटीयू1010 से 9.66% ज्यादा उपज सामान्य खारी मिट्टी में और 30.36% ज्यादा उपज तनावपूर्ण खारी हालात में दी। इसकी अनाज गुणवत्ता एमटीयू1010 जैसी ही है, लेकिन सूखा और लवणता प्रतिरोध इसे उन इलाकों के लिए वरदान बनाता है, जहां पारंपरिक किस्में कमजोर पड़ती हैं।

कम पानी कम समय में ज्यादा मुनाफा

कमला और पूसा डीएसटी राइस-1 दोनों किस्में जलवायु परिवर्तन के दौर में किसानों के लिए उम्मीद की किरण हैं। कमला को तीन बार कम सिंचाई चाहिए, जिससे 7,500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की बचत हो सकती है। ये किस्म 15-20 दिन पहले पककर तैयार होती है, जिससे किसान अगली फसल जल्दी बो सकते हैं। पूसा डीएसटी राइस-1 खारी और क्षारीय मिट्टी में भी अच्छी उपज देता है, जो तटीय और सूखाग्रस्त इलाकों के लिए बड़ी राहत है। ICAR का दावा है कि 50 लाख हेक्टेयर में इन किस्मों की खेती से 45 लाख टन अतिरिक्त धान मिलेगा। इससे न सिर्फ खाद्य सुरक्षा बढ़ेगी, बल्कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20% की कमी आएगी।

वैज्ञानिक खेती का तरीका

इन किस्मों की खेती के लिए ICAR ने वैज्ञानिक तरीके सुझाए हैं। खेत को 10-15 टन गोबर खाद से तैयार करें। प्रति हेक्टेयर 120 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, और 40 किलो पोटाश डालें। ड्रिप सिंचाई से हर 2-3 दिन में पानी दें, साथ ही एन.पी.के. (19:19:19) उर्वरक का इस्तेमाल करें। बुवाई 30 x 10 सेमी की दूरी पर करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 3 दिन बाद ऑक्सी डाइअर्जिल (75 ग्राम/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। कीटों के लिए इमिडाक्लोप्रिड (1 मि.ली./लीटर) और रोगों के लिए कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/लीटर) का उपयोग करें।

ICAR ने 2018 से जीनोम-एडिटिंग पर काम शुरू किया था, और 2023-24 के बजट में 500 करोड़ रुपये का फंड भी मिला। कमला और पूसा डीएसटी राइस-1 की रिलीज भारत में जीनोम-एडिटेड फसलों का पहला बड़ा कदम है। ये किस्में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, छत्तीसगढ़, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में खेती के लिए मंजूर हैं। हालांकि, जीएम फसलों पर बहस जारी है, लेकिन ICAR का दावा है कि ये किस्में पूरी तरह सुरक्षित हैं। अब देखना ये है कि किसान और उपभोक्ता इन्हें कितना अपनाते हैं।

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  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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