बरसात बनी किसानों के लिए वरदान, ढैंचा बोने पर सरकार दे रही है 50% अनुदान!

उत्तर प्रदेश में इस बार बेमौसम बारिश ने किसानों के लिए नया मौका ला दिया है। खेतों में बनी नमी को देखते हुए कृषि विभाग किसानों को ढैंचा की फसल बोने की सलाह दे रहा है। ये फसल न सिर्फ खेत की मिट्टी को ताकत देती है, बल्कि अगली रबी फसलों जैसे गेहूं, सरसों, आलू और धान की पैदावार में 20% से 30% तक का इजाफा कर सकती है। अच्छी खबर ये है कि योगी सरकार ढैंचा के बीज पर 50% सब्सिडी दे रही है, ताकि गाँव का हर किसान इसका फायदा उठा सके। ये मौका है खेती को सस्ते और प्राकृतिक तरीके से बेहतर करने का।

मिट्टी के लिए ढैंचा है वरदान

ढैंचा की फसल को हरी खाद के तौर पर इस्तेमाल करने से खेत की मिट्टी में कमाल होता है। ये मिट्टी में नाइट्रोजन को जमा करता है, कार्बनिक तत्व बढ़ाता है, और पानी रोकने की ताकत को बेहतर करता है। साथ ही, मिट्टी में अच्छे जीवाणुओं की सक्रियता भी बढ़ती है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश सरकार जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए ढैंचा जैसी हरी खाद फसलों पर जोर दे रही है। गाँव के किसानों के लिए ये फसल किसी सस्ते और असरदार खाद की तरह है, जो मिट्टी को ताकतवर बनाकर लंबे समय तक फायदा देती है।

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सस्ते दाम पर बीज और सब्सिडी

2025-26 के खरीफ सीजन के लिए सरकार ने ढैंचा बीज की कीमत 11,685 रुपये प्रति क्विंटल तय की है। लेकिन किसानों को ये बीज कृषि विभाग के बीज केंद्रों पर 50% सब्सिडी के साथ सिर्फ 5,842 रुपये प्रति क्विंटल में मिलेगा। पहले की व्यवस्था में किसानों को पूरा दाम चुकाना पड़ता था और बाद में डीबीटी से सब्सिडी मिलती थी। लेकिन अब सरकार ने इसे आसान कर दिया है। बीज खरीदते वक्त ही सब्सिडी की राशि कम कर दी जाती है। ये बदलाव छोटे किसानों के लिए बड़ी राहत है, क्योंकि अब उन्हें पहले ज्यादा पैसे जुटाने की जरूरत नहीं पड़ती।

ढैंचा की बुवाई का सही तरीका

ढैंचा की खेती करना बिल्कुल आसान है। अगर आपके खेत में सिंचाई की सुविधा है, तो अप्रैल से जून के बीच खाली खेतों में बुवाई कर सकते हैं। ज्यादा बारिश हो या कम, ढैंचा हर हाल में उग जाता है। एक हेक्टेयर के लिए 60-80 किलोग्राम बीज काफी है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि बुवाई के 6-8 हफ्ते बाद, जब फूल आने शुरू हों, ढैंचा को पलट देना चाहिए। इसके बाद खेत में पानी भर दें। अगर सड़न को तेज करना हो, तो पलटाई के बाद प्रति एकड़ 5 किलो यूरिया छिड़क सकते हैं। 3-4 हफ्तों में फसल सड़कर मिट्टी में मिल जाती है। इसके बाद आप गेहूं, सरसों या दूसरी फसल बो सकते हैं।

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ढैंचा के अलावा ये विकल्प भी आजमाएं

अगर ढैंचा नहीं बोना चाहते, तो मूंग और उड़द जैसी फसलें भी हरी खाद के लिए अच्छी हैं। इन फसलों से न सिर्फ मिट्टी को ताकत मिलती है, बल्कि आपको दलहन की अतिरिक्त उपज भी मिल जाती है। हालांकि, इनके लिए सिंचाई की जरूरत पड़ती है। मूंग और उड़द मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ रासायनिक खादों का असर बढ़ाते हैं और खरपतवारों को भी काबू में रखते हैं। गाँव के किसान इन फसलों को आजमाकर दोहरा फायदा उठा सकते हैं।

जागरूकता से जोड़ रहे किसानों को

कृषि विभाग गाँव-गाँव में खरीफ गोष्ठियों के जरिए किसानों को ढैंचा और हरी खाद फसलों के फायदे बता रहा है। बीज केंद्रों पर ढैंचा के बीज की कोई कमी नहीं है। अगर आप इस मौके का फायदा उठाना चाहते हैं, तो अपने नजदीकी कृषि कार्यालय या बीज केंद्र पर जाकर पूरी जानकारी ले सकते हैं। वहां आपको बीज खरीदने और बुवाई की पूरी प्रक्रिया समझाई जाएगी। ये समय है अपनी खेती को प्राकृतिक तरीके से ताकतवर बनाने का, ताकि कम लागत में ज्यादा मुनाफा हो।

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  • Shashikant

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