किसान भाइयों, सरसों रबी मौसम की एक प्रमुख नकदी फसल है, जो भारत में लाखों किसानों की आय का जरिया है। अगर आप सितंबर-अक्टूबर में अगेती बुवाई कर जल्दी फसल लेना चाहते हैं, तो वर्धन (RGN-48) सरसों आपके लिए शानदार विकल्प है। राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर द्वारा 2006 में विकसित यह अगैती किस्म 100-105 दिन में पककर 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। इसके बीजों में 39-40% तेल की मात्रा होती है, जो इसे तेल उत्पादन के लिए आदर्श बनाती है। राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, और उत्तर प्रदेश में यह किस्म खूब उगाई जाती है।
वर्धन (RGN-48) सरसों क्यों है खास
वर्धन (RGN-48) सरसों की सबसे बड़ी खासियत इसकी अगेती पकने की क्षमता और सूखा सहनशीलता है। यह 100-105 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसान जनवरी-फरवरी में बाजार में ऊँचे दाम पा सकते हैं। इसके दाने मध्यम आकार के, काले-भूरे रंग के, और फलियाँ पकने पर नहीं झड़तीं, जिससे नुकसान कम होता है।
यह किस्म सफेद रतुआ और झुलसा रोग के प्रति सहनशील है, साथ ही चूर्णिल फफूंद और तना गलन के प्रति भी मध्यम प्रतिरोधी है। अनुकूल परिस्थितियों में यह 24 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज दे सकती है। हरियाणा के हिसार में किसानों ने इसकी खेती से प्रति हेक्टेयर 1.2 लाख रुपये तक कमाए। इसका 39-40% तेल कंटेंट इसे तेल मिलों और बाजार में लोकप्रिय बनाता है।
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खेती का सही तरीका
वर्धन (RGN-48) सरसों की खेती के लिए दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी बेस्ट है, जहाँ पानी का निकास अच्छा हो। खेत को दो-तीन बार जोतकर समतल कर लें और प्रति हेक्टेयर 20 टन गोबर की खाद डालें। बुवाई के लिए 4-5 किलो बीज प्रति हेक्टेयर काफी हैं। बीज को ट्राइकोडर्मा (5 ग्राम प्रति किलो) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति किलो) से उपचारित करें, ताकि बीज से होने वाले रोग न लगें। अगेती बुवाई का सही समय 25 सितंबर से 15 अक्टूबर तक है।
पंक्तियों के बीच 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 10 सेंटीमीटर की दूरी रखें। खाद के लिए 80 किलो यूरिया, 100 किलो डीएपी, 50 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश, और 20 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर डालें। आधी नाइट्रोजन बुवाई के समय और बाकी 30 दिन बाद डालें। पहली सिंचाई 25-30 दिन बाद, दूसरी फूल आने पर, और तीसरी (अगर जरूरत हो) दाना बनते समय करें। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में इस तरीके से किसानों ने 20% ज्यादा उपज पाई।
रोग और कीटों से बचाव
वर्धन (RGN-48) सरसों सफेद रतुआ और झुलसा रोग के प्रति मजबूत है, लेकिन सावधानी बरतनी जरूरी है। सफेद रतुआ के लिए 35-40 दिन बाद मैनकोजेब (2.5 ग्राम प्रति लीटर) या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति लीटर) का छिड़काव करें। तेला कीट के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिली प्रति लीटर) का इस्तेमाल करें। झुलसा रोग से बचाव के लिए मैनकोजेब (2.5 ग्राम प्रति लीटर) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर) का छिड़काव करें। कटवा और चितकबरे कीटों से बचने के लिए अंतिम जुताई में क्यूनालफॉस (1.5% चूर्ण, 25 किलो प्रति हेक्टेयर) मिलाएँ।
खरपतवार हटाने के लिए बुवाई के तीसरे हफ्ते से 2-3 बार निराई-गुड़ाई करें या पेंडिमेथालिन (1 किलो प्रति हेक्टेयर) का प्री-इमर्जेंस छिड़काव करें। राजस्थान के भरतपुर में इन तरीकों से उपज 18% बढ़ी। फसल को 100-105 दिन में काटें, जब फलियाँ पीली पड़ने लगें।
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भंडारण और बाजार की मांग
वर्धन (RGN-48) सरसों के दानों में 39-40% तेल की मात्रा इसे तेल मिलों के लिए खास बनाती है। अगर दानों की नमी 8-10% से कम हो, तो इन्हें 3-4 महीने तक बिना खराब हुए स्टोर किया जा सकता है। इसके चमकदार काले-भूरे दाने बाजार में खूब पसंद किए जाते हैं। नवंबर-दिसंबर में सरसों की कमी के समय यह 5,000-6,000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकती है। उत्तर प्रदेश के आगरा के किसानों ने इसके तेल कंटेंट और बाजार मांग की खूब तारीफ की है। सही भंडारण और समय पर बिक्री से किसान मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।
मोटा मुनाफा कमाने का मौका
वर्धन (RGN-48) सरसों की अगेती बुवाई से जनवरी-फरवरी में फसल बेचकर किसान 5,000-6,000 रुपये प्रति क्विंटल का दाम पा सकते हैं। 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज से 1-1.3 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। खेती की लागत 35,000-45,000 रुपये प्रति हेक्टेयर आती है, जिसमें बीज, खाद, और मजदूरी शामिल है। इससे 60,000-90,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा हो सकता है। ICAR और राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के अध्ययनों के मुताबिक, इस किस्म ने राजस्थान और हरियाणा में सरसों की खेती को 15% ज्यादा फायदेमंद बनाया है।
मध्य प्रदेश के मुरैना के किसानों ने इसकी सूखा सहनशीलता और रोग प्रतिरोध की तारीफ की है। किसान भाइयों, प्रमाणित बीज और सलाह के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर से संपर्क करें। वर्धन (RGN-48) के साथ कम समय में बंपर मुनाफा कमाएँ।
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