कीजिए वाटर एप्पल की खेती, एक एकड़ से कमाइए 20 लाख रूपये

Water Apple Farming: हमारे देश में फल खेती किसानों और शहरी बागवानों के लिए आय का एक आकर्षक स्रोत बन रही है। वाटर एप्पल, जिसे जल सेब या गुलाब सेब भी कहते हैं, एक उष्णकटिबंधीय फल है, जो अपने रसीले स्वाद और पोषक गुणों के लिए जाना जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे राज्यों में इसकी खेती खेतों और गमलों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यह फल न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि कम लागत में अच्छा मुनाफा भी देता है। यह लेख वाटर एप्पल की खेती, गमले में रोपण, देखभाल, लाभ, और चुनौतियों पर विस्तृत जानकारी देगा।

वाटर एप्पल क्या है

वाटर एप्पल एक उष्णकटिबंधीय फलदार वृक्ष है, जो मायर्टेसी परिवार से संबंधित है। यह सायजिजियम जीनस का हिस्सा है, जिसमें जामुन और लौंग भी शामिल हैं। फल गोल, घंटी के आकार का, और हल्का गुलाबी, लाल, या सफेद रंग का होता है। इसका स्वाद हल्का मीठा और रसीला होता है, जिसमें पानी की मात्रा अधिक होती है। भारत में यह दक्षिणी राज्यों (केरल, कर्नाटक) के साथ-साथ अब उत्तर भारत के गर्म और नम क्षेत्रों में उगाया जा रहा है। यह पेड़ 3-10 मीटर ऊँचा होता है और छायादार, सजावटी भी है।

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खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

वाटर एप्पल की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु आदर्श है। यह 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 1000-2000 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छा बढ़ता है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, बिहार के भागलपुर, मध्य प्रदेश के जबलपुर, और उत्तराखंड के हरिद्वार जैसे क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त हैं। सर्दियों में तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं जाना चाहिए, क्योंकि यह ठंड सहन नहीं करता।

दोमट, रेतीली दोमट, या चिकनी मिट्टी (pH 5.5-7.5) जिसमें अच्छा जल निकास हो, सर्वोत्तम है। जलभराव जड़ों को नुकसान पहुँचाता है। खेत की तैयारी के लिए 2-3 बार गहरी जुताई करें और प्रति एकड़ 8-10 टन सड़ी गोबर खाद डालें। CISH सलाह देता है कि मिट्टी परीक्षण करवाकर पोषक तत्वों की कमी को दूर करें।

खेती की प्रक्रिया

वाटर एप्पल की खेती बीज, कलम (कटिंग), या ग्राफ्टिंग से की जाती है। ग्राफ्टेड पौधे जल्दी फल देते हैं (2-3 साल में) और बेहतर गुणवत्ता के होते हैं। पौधे KVK, CISH, या विश्वसनीय नर्सरियों से प्राप्त करें।

रोपण के लिए 6×6 मीटर की दूरी पर 3x3x3 फीट के गड्ढे खोदें। प्रत्येक गड्ढे में 15-20 किलो गोबर खाद, 100 ग्राम नीम खली, और 50 ग्राम NPK (10:26:26) मिलाएँ। पौधे को गड्ढे के केंद्र में रोपें और हल्की सिंचाई करें। रोपण का आदर्श समय वर्षा ऋतु (जून-जुलाई) है।

पहले वर्ष सप्ताह में 2-3 बार सिंचाई करें। ड्रिप सिस्टम पानी की बचत करता है। प्रत्येक पौधे को प्रति वर्ष 100-150 ग्राम नाइट्रोजन, 50-75 ग्राम फॉस्फोरस, और 75-100 ग्राम पोटाश दें। फलन शुरू होने पर जैविक खाद (वर्मी कम्पोस्ट) और जीवामृत का उपयोग करें।

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गमले में वाटर एप्पल की खेती

वाटर एप्पल को गमले में उगाना शहरी बागवानों के लिए आसान और लोकप्रिय है। इसके लिए 18-24 इंच व्यास और 12-15 इंच गहराई वाला गमला चुनें, जिसमें जल निकास के लिए छेद हों। पॉटिंग मिक्स के लिए 50% बगीचे की मिट्टी, 30% वर्मी कम्पोस्ट, और 20% कोकोपीट या रेत मिलाएँ। नीम खली (50 ग्राम) और 20 ग्राम NPK जोड़ें।

ग्राफ्टेड पौधा चुनें, क्योंकि यह कम जगह में फल देता है। पौधे को गमले के केंद्र में रोपें और हल्का पानी डालें। गमले को ऐसी जगह रखें, जहाँ 6-8 घंटे धूप मिले। सप्ताह में 2-3 बार हल्की सिंचाई करें। हर 2-3 महीने में 50 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट और 10 ग्राम NPK डालें। पौधे की छँटाई करें ताकि यह 4-6 फीट तक सीमित रहे। कीटों से बचाव के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। गमले में 2-3 साल में फल शुरू हो जाते हैं।

कटाई और उत्पादन कितना संभव

वाटर एप्पल के पेड़ रोपण के 2-4 साल बाद फल देना शुरू करते हैं। फल वर्ष में दो बार (मार्च-मई और सितंबर-नवंबर) पकते हैं। एक परिपक्व पेड़ प्रति वर्ष 20-50 किलो फल देता है। गमले में 5-10 किलो प्रति पौधा संभव है। फल पूरी तरह रंग बदलने (लाल/गुलाबी) पर काटें। खेत में प्रति एकड़ 8-10 टन उत्पादन संभव है।

पोषक गुण और मुनाफे का हिसाब

वाटर एप्पल में 90% पानी, विटामिन C, फाइबर, और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। यह पाचन, हृदय स्वास्थ्य, और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने से मधुमेह रोगियों के लिए उपयुक्त है। बाजार में यह 100-200 रुपये/किलो बिकता है, जो शहरी क्षेत्रों में माँग बढ़ने से लाभकारी है। सजावटी पौधे के रूप में भी यह मूल्यवान है।

वाटर एप्पल की माँग शहरी बाजारों, होटलों, और जैविक स्टोर्स में बढ़ रही है। लखनऊ, पटना, और भोपाल जैसे शहरों में यह प्रीमियम फल के रूप में बिकता है। किसान e-NAM या FPO के माध्यम से बेच सकते हैं। गमले में उगाए फल स्थानीय बाजारों और नर्सरियों में बिक्री के लिए उपयुक्त हैं। प्रति एकड़ 5-8 लाख रुपये की आय संभव है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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