इलेक्ट्रोकलचर क्या है?
इलेक्ट्रोकलचर एक ऐसी तकनीक है, जिसमें हवा से बिजली की ऊर्जा लेकर पौधों को मजबूत किया जाता है। इसमें लकड़ी या तांबे की छड़ (एंटीना) खेत में लगाई जाती है, जो हवा की बिजली को पकड़ती है और मिट्टी-पौधों तक पहुँचाती है। ये ऊर्जा पौधों की जड़ों को ताकत देती है, पानी और खनिज सोखने की ताकत बढ़ाती है, और बिना रसायन के फसल को बढ़ने में मदद करती है। पुराने समय में यूरोप और अमेरिका में इसका इस्तेमाल होता था, और अब भारत में भी लोग इसे आजमा रहे हैं। ये तरीका खासकर छोटे किसानों के लिए फायदेमंद है, क्यूंकि इसमें लागत कम लगती है।
इसे खेत में कैसे लगाएँ?
इलेक्ट्रोकलचर शुरू करना बिल्कुल आसान है। सबसे पहले एक 6-10 फीट लंबी तांबे या लोहे की छड़ लें। इसे खेत के बीच में सीधा गाड़ दें, ताकि इसका आधा हिस्सा जमीन में और आधा हवा में रहे। छड़ के ऊपर एक तार बाँधकर उसे खेत की मिट्टी से जोड़ दें। कुछ लोग इसमें छोटा सोलर पैनल या बैटरी भी जोड़ते हैं, ताकि बिजली का प्रवाह बढ़े। इसे लगाने के बाद पानी और धूप का ध्यान रखें। ये छड़ हवा से बिजली खींचती है और पौधों तक पहुँचाती है। गाँव में बांस या लकड़ी की छड़ भी काम कर सकती है।
खेती में कैसे काम करता है?
इलेक्ट्रोकलचर हवा की बिजली से पौधों की कोशिकाओं को एक्टिव करता है। इससे जड़ें तेजी से बढ़ती हैं, पत्तियाँ हरी रहती हैं, और फल-फूल ज्यादा लगते हैं। मिट्टी में सूक्ष्म जीव बढ़ते हैं, जो उर्वरता को बढ़ाते हैं। ये तरीका कीटनाशकों की जरूरत को कम करता है, क्यूंकि पौधे खुद मजबूत बनते हैं। धान, गेहूँ, सब्जियाँ और फलों की खेती में इसे आजमाया जा सकता है। गाँव में इसे तालाब या नहर के पास लगाने से और फायदा होता है, क्यूंकि नमी बिजली को बेहतर तरीके से ले जाती है।
फायदे क्या हैं?
- कम लागत: इसमें खाद, उर्वरक या कीटनाशक पर खर्चा नहीं। एक बार छड़ लगाई, तो सालों चलती है।
- ज्यादा पैदावार: कई किसानों ने बताया कि फसल 20-50% तक बढ़ी। मसलन, एक बीघे में 10 किलो सब्जी की जगह 15 किलो तक हो सकती है।
- प्राकृतिक तरीका: रसायन नहीं लगते, तो मिट्टी और सेहत दोनों सुरक्षित रहते हैं।
- आसान देखभाल: बस छड़ लगाओ और पानी दो, बाकी प्रकृति खुद संभाल लेती है।
- हर मौसम में काम: गर्मी, सर्दी या बारिश—ये हर हाल में चलता है।
कितना लाभदायक है?
सिंघाड़ा, धान या सब्जियों की खेती करने वाले गाँव के किसानों के लिए ये बढ़िया है। मान लो, एक बीघे में 5,000 रुपये की लागत से 10 किलो फसल होती थी, जो 10,000 रुपये में बिकती थी। इलेक्ट्रोकलचर से लागत 2,000 रुपये तक कम हो सकती है, और पैदावार 15 किलो तक बढ़ सकती है। यानी 15,000 रुपये की कमाई। मतलब, 3,000 रुपये का खर्चा घटाकर 5,000 रुपये का मुनाफा बढ़ सकता है। बड़े खेतों में ये फायदा लाखों में हो सकता है। बाज़ार में जैविक फसल का दाम भी ज्यादा मिलता है।
सावधानियाँ और चुनौतियाँ
इलेक्ट्रोकलचर हर जगह एक जैसा काम न करे, क्यूंकि मौसम और मिट्टी पर निर्भर करता है। सूखे इलाकों में नमी कम होने से असर कम हो सकता है। बिजली की छड़ को सही जगह लगाना जरूरी है, वरना फायदा नहीं मिलेगा। कुछ वैज्ञानिक इसे पूरी तरह प्रमाणित नहीं मानते, तो पहले छोटे खेत में आजमाएँ। बिजली के तारों से दूर रखें, ताकि खतरा न हो।
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