पर्माकल्चर का मतलब और शुरूआत का ढंग
पर्माकल्चर का मतलब है ऐसी खेती जो सालों तक बिना रुके चल सके। इसमें खेत को सिर्फ फसल लेने की जगह नहीं समझते, बल्कि उसे एक पूरा घर बनाते हैं, जहाँ हर चीज एक-दूसरे की मदद करती है। गाँव में इसे शुरू करने के लिए पहले अपने खेत को अच्छे से देखें। सोचें कि यहाँ क्या-क्या हो सकता है। मसलन, धान या मूँग की फसल के साथ नीम, सहजन, बेर या आम के पेड़ लगाएँ। पास में गाय-भैंस हों, तो उनका गोबर खाद बनाएगा। पानी को बचाने के लिए छोटे गड्ढे बनाएँ। शुरूआत छोटी करें—एक कोने से पेड़ और फसल लगाएँ, फिर धीरे-धीरे बढ़ाएँ। ये तरीका धीमा है, पर लंबे वक्त का फायदा देता है।
मिट्टी को ताकत और पानी को बचाने का फायदा
पर्माकल्चर में मिट्टी को सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है। पेड़ों की सूखी पत्तियाँ और गोबर से खाद बनती है, जो मिट्टी को नरम और भुरभुरा रखती है। गाँव में नीम की पत्तियाँ या बबूल की टहनियाँ इसमें मिलाएँ, ये कीटों को भगाती हैं और मिट्टी को पोषण देती हैं। पानी को बचाने के लिए खेत के किनारे गड्ढे खोदें, ताकि बारिश का पानी जमा हो। ऊँचे हिस्सों में पेड़ और नीचे फसल लगाएँ, इससे पानी अपने आप नीचे आएगा। गाँव में जहाँ सूखा पड़ता हो, वहाँ ये गड्ढे फसल को जिंदा रखते हैं। मिट्टी सालों तक उपजाऊ रहती है, और पानी की बर्बादी भी कम होती है।
फसल और कमाई में बढ़ोतरी का हिसाब
पर्माकल्चर से खेत में एक साथ कई चीजें मिलती हैं। धान, गेहूँ या सब्जियाँ तो हर साल मिलेंगी ही, साथ में पेड़ों से फल, लकड़ी और चारा भी आएगा। गाँव में एक बीघे से अगर 10 क्विंटल धान मिलता था, तो पेड़ों और पशुओं की मदद से 12-15 क्विंटल तक हो सकता है। सहजन की फलियाँ 50 रुपये किलो बिकती हैं, और 20-25 पेड़ों से साल में 500 किलो तक मिल सकता है, यानी 20-25 हज़ार रुपये की कमाई। बेर या आम के पेड़ 3-4 साल बाद फल देंगे, जो 40-50 रुपये किलो बिकेगा। लकड़ी बाद में बेच सकते हैं, जो हजारों में जाएगी। रासायनिक खाद का खर्चा कम होगा, और आय बढ़ेगी।
प्रकृति के साथ संतुलन और खेत की सुरक्षा
पर्माकल्चर में प्रकृति का पूरा खयाल रखते हैं। पेड़ तेज हवा और गर्मी से फसल को ढाल देते हैं। गाय-भैंस का गोबर खाद बनता है, और बकरी-मुर्गी चारा खाकर खेत को साफ रखते हैं। गाँव में बरसात का पानी जमा करने से सूखे में फायदा होता है। कीटों को भगाने के लिए नीम, तुलसी या मिर्ची के पौधे लगाएँ, ये प्राकृतिक ढंग से कीटाणुओं को रोकते हैं। तेज बारिश में पेड़ों की जड़ें मिट्टी को कटने से बचाती हैं। ये तरीका खेत को बीमारी और मौसम की मार से सुरक्षित रखता है, जो गाँव में बड़ी राहत की बात है।
पशुओं और खेत का आपसी तालमेल
पर्माकल्चर में पशुओं को भी शामिल करें। गाय-भैंस का गोबर खाद बनाएगा, और मुर्गियाँ खेत में कीड़े खाकर फसल को बचाएँगी। गाँव में बकरी का चारा पेड़ों से मिलेगा, और उनकी मेंगनी मिट्टी को ताकत देगी। पशुओं को खेत के पास छोटा बाड़ा बनाएँ, ताकि गोबर आसानी से इकट्ठा हो। इससे दूध, अंडे या मांस भी मिलेगा, जो घर में काम आएगा और बेचकर थोड़ा पैसा भी लाएगा। ये तालमेल खेत को अपने आप चलने लायक बनाता है।
गाँव में पर्माकल्चर इसलिए फायदेमंद है, क्योंकि ये खेत को सालों तक हरा-भरा रखता है। कम पैसे में शुरू कर सकते हैं, और जो कुछ खेत में है, उसी से काम चल जाता है। पानी, मिट्टी और मेहनत का सही इस्तेमाल होता है। ये खेती न सिर्फ फसल देती है, बल्कि खेत को आने वाली पीढ़ी के लिए भी तैयार करती है। तो भाइयों, पर्माकल्चर या सतत कृषि को अपने खेत में अपनाएँ, खेती को समृद्ध करें और कमाई को बढ़ाएँ।
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