सर्दी की दहलीज पर खेतों में गेहूं की हरी चादर बिछाने का मौका है, लेकिन एक-एक दिन की देरी फसल को महंगा पड़ रही है। वाराणसी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसान भाई धान की लंबी फसल से जूझ रहे हैं, जहां कटाई के बाद खेत तैयार करने में वक्त लग जाता है। अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (ISARC) के ताजा शोध से साफ है कि गेहूं की बोआई में देरी से पैदावार में भारी नुकसान होता है।
यहां तक कि 1 नवंबर के बाद हर दिन 40-50 किलो प्रति हेक्टेयर की हानि हो रही है, क्योंकि गर्मी के असर से दाने सिकुड़ जाते हैं। पूर्वी यूपी में 60 प्रतिशत बोआई ही देरी से हो रही है, जो किसानों की जेब पर चोट कर रही है। लेकिन चिंता न करें, जीरो टिलेज और डीएसआर जैसी तकनीकों से नुकसान रोका जा सकता है।
प्रति दिन 40-50 किलो घाटा
IRRI-ISARC के अध्ययन के मुताबिक, 1 से 20 नवंबर के बाद बोआई करने पर रोजाना पैदावार में 40-50 किलो प्रति हेक्टेयर की कमी आ जाती है। कारण साफ है समय पर बोई फसल को सर्दी का पूरा फायदा मिलता है, पौधे मजबूत बढ़ते हैं और दाने अच्छे भरते हैं। देरी होने पर गर्मी बढ़ने से फसल जल्दी पक जाती है, दाने छोटे रह जाते हैं।
पूर्वी यूपी जैसे वाराणसी, आजमगढ़, गोरखपुर में यह समस्या ज्यादा है, क्योंकि यहां धान की लंबी अवधि वाली किस्में (जैसे स्वर्णा) उगाई जाती हैं। रोपाई पद्धति से कटाई और अवशेष साफ करने में 10-15 दिन लग जाते हैं, जिससे गेहूं की बोआई नवंबर के आखिर तक खिंच जाती है। नतीजा? कुल उपज में 20-30 प्रतिशत की कमी, जो बाजार मूल्य पर लाखों का नुकसान है।
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1-20 नवंबर के बीच में बोएं
विशेषज्ञों की एकसहमति है कि गेहूं की बोआई का सुनहरा दौर 1 से 20 नवंबर है। इस दौरान तापमान 15-25 डिग्री रहता है, जो पौधों के फुटाव और जड़ विकास के लिए परफेक्ट है। इससे फसल फरवरी-मार्च में कटाई के लिए तैयार हो जाती है, और प्रति हेक्टेयर 50-60 क्विंटल तक पैदावार संभव है। देरी से बोई फसल को गर्मी की मार पड़ती है, जो दानों की गुणवत्ता गिरा देती है। ISARC निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह कहते हैं, “गेहूं की बोआई में एक-एक दिन की देरी से उतना ही उत्पादन घटता जाता है। समय पर बोआई से 69 प्रतिशत तक ज्यादा पैदावार मिल सकती है, बिना अतिरिक्त लागत के।”
जीरो टिलेज और डीएसआर से समय बचाएं
किसान भाई घबराएं नहीं, कुछ आसान तरीकों से देरी का असर कम किया जा सकता है। सबसे पहले, धान की कटाई समय पर करें और खेत तुरंत तैयार रखें अवशेष न जलाएं, बल्कि मल्चिंग के रूप में इस्तेमाल करें। जीरो टिलेज पद्धति अपनाएं: इसमें खेत जोतने की जरूरत नहीं, सीधे बीज डाल दें। इससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और बोआई 5-7 दिन पहले हो जाती है।
धान की सीधी बोआई (DSI) तकनीक से कटाई 7-10 दिन जल्दी हो जाती है, पानी-मजदूरी-डीजल की बचत होती है। मशीन से कटाई और अवशेष प्रबंधन करें, ताकि गेहूं की बोआई नवंबर के पहले हफ्ते में ही शुरू हो। यूपीएग्रीज परियोजना के तहत विश्व बैंक की मदद से पूर्वी यूपी में ये तकनीकें सिखाई जा रही हैं। डॉ. सिंह की सलाह है, “इन तरीकों से न सिर्फ समय बचेगा, बल्कि लागत भी 20-30 प्रतिशत कम हो जाएगी।”
पूर्वी यूपी में चुनौतियां
वाराणसी और आसपास के जिलों में धान की रोपाई पद्धति और लंबी किस्में मुख्य वजह हैं। कटाई के बाद खेत साफ करने में वक्त लगता है, जिससे गेहूं की बोआई दिसंबर तक खिंच जाती है। लेकिन अब किसान जागरूक हो रहे हैं – स्थानीय कृषि केंद्रों पर मशीनरी उपलब्ध है, और प्रशिक्षण कैंप लग रहे हैं। ICAR और ISARC के सहयोग से बीज और तकनीकें सस्ते दामों पर मिल रही हैं। अगर समय पर बोआई हो जाए तो बाजार में अच्छे दाम (25-30 रुपये प्रति किलो) मिलने पर प्रति एकड़ 40-50 हजार का फायदा हो सकता है।
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