ठंड की दस्तक हो गई है, लेकिन यह मौसम हमारे पशुओं के लिए मुसीबत भी लाता है। मौसम की मार से नमी बढ़ने और हवा के बदलाव से मुंहखुर (फुट एंड माउथ डिजीज या FMD) जैसे वायरल रोग तेजी से फैल रहे हैं। पशु चिकित्सक डॉ. बृहस्पति भारती बताते हैं कि यह रोग गाय, भैंस, बकरी और सुअर जैसे खुर वाले जानवरों को जल्दी चढ़ जाता है, और एक पशु से पूरा पशुशाला (जैसे 40 जानवरों का झुंड) प्रभावित हो सकता है। दूध उत्पादन में 80-90 प्रतिशत की गिरावट आ जाती है, जो किसान भाइयों की जेब पर भारी पड़ती है। लेकिन चिंता न करें, समय पर पहचान और देसी इलाज से नुकसान रोका जा सकता है।
मौसम बदलाव से फैलता है रोग
सर्दियों में बारिश के बाद की नमी और ठंड-गर्मी का मेल इस रोग को सक्रिय कर देता है। यह वायरस संक्रमित पशु से हवा, संपर्क या दूध के जरिए तेजी से फैलता है। डॉ. भारती कहते हैं कि हाल की बारिशों से हवा में नमी बढ़ गई है, जो रोग के लिए जन्मभूमि बनी हुई है। खराब सफाई वाले पशुशालाओं में यह और तेजी से पनपता है। सांख्यिकी बताती है कि संक्रमित पशु में दूध की पैदावार तुरंत गिर जाती है, और अगर समय पर न रोका जाए तो पूरा झुंड बर्बाद हो सकता है। सरकार का नेशनल एनिमल डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम हर छह महीने में फ्री वैक्सीनेशन कैंप लगाता है, जो इसकी रोकथाम का सबसे मजबूत हथियार है।
पांच मुख्य लक्षण
इस रोग के लक्षण अचानक नजर आते हैं, इसलिए सतर्क रहें। पहला, तेज बुखार जो पशु को सुस्त और कमजोर बना देता है। दूसरा, मुंह में छाले जीभ, दांतों के पास या अंदरूनी हिस्से पर जो खाना चबाना मुश्किल कर देते हैं, नतीजा भूख न लगना। तीसरा, ज्यादा लार टपकना और लंगड़ापन, क्योंकि खुरों के बीच और पंजों पर छाले पड़ जाते हैं। गंभीर मामलों में खुर पूरी तरह गिर भी सकता है, जिसकी मरम्मत में 9-10 महीने लग जाते हैं। चौथा, दूध उत्पादन में 80-90 प्रतिशत की कमी। पांचवां, पशु का वजन तेजी से गिरना। ये लक्षण दिखते ही पशु को अलग कर दें, वरना रोग पूरे शेड में फैल जाएगा।
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वैक्सीनेशन और सफाई से रोग को रोकें
रोकथाम ही सबसे अच्छा इलाज है। सबसे पहले, सरकारी वैक्सीनेशन कैंप में हिस्सा लें – यह रोग को शुरू में ही रोक देता है। पशुशाला की साफ-सफाई रखें, पुराने गोबर को तुरंत हटाएं और फर्श को सूखा रखें। मौसम बदलाव से पशुओं को तनाव न दें, गर्माहट का इंतजाम करें। हरा चारा और संतुलित आहार दें ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बने। संक्रमित पशु को तुरंत अलग करें और स्वस्थों से दूरी बनाएं। डॉ. भारती की सलाह है कि वैक्सीनेशन से 70-80 प्रतिशत मामलों में रोग टल जाता है, इसलिए नजदीकी पशु चिकित्सालय से अपडेट लेते रहें।
देसी इलाज के नुस्खे
अगर रोग लग ही गया तो घबराएं नहीं, घरेलू उपायों से जल्दी संभाला जा सकता है। बुखार के लिए एंटीपायटिक गोलियां 4-5 दिन तक दें। खुरों के छालों के लिए पशु को कच्ची मिट्टी या हल्के कीचड़ पर चलने दें, ताकि दबाव कम हो और छाले न फूटें। मुंह के घावों पर ग्लिसरीन या मीठे तेल (सरसों या अलसी का) दिन में दो बार लगाएं। चारा सूखा न दें, बल्कि दलिया, भूसी या गीली भूसी पर शिफ्ट करें।
घावों को दिन में 2-3 बार गर्म नीम के पत्तों के पानी से धोएं, फिर हल्दी मिले तेल से मलें यह संक्रमण रोकेगा और भरपाई तेज करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि ये देसी नुस्खे प्रभावी हैं और रसायनों से सस्ते पड़ते हैं। लेकिन गंभीर मामलों में डॉक्टर से सलाह लें।
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