सिर्फ 1 एकड़ में ओल की खेती से कमाएं 7 लाख, खाली जमीन को बनाएं सोने की खान!

Yam Cultivation in Hindi : गर्मियां शुरू हो चुकी हैं, और खेत खाली पड़े हैं। ऐसे में किसान अपनी आय बढ़ाने के लिए नई फसलों और तकनीकों की तलाश में रहते हैं। ओल (एलिफेंट फूट याम) की खेती इस मौसम में किसानों के लिए लखपति बनने का रास्ता खोल सकती है। खासकर दक्षिण भारत में गजेन्द्र प्रभेद की ओल की भारी मांग है, जो सात से आठ महीने में तैयार होकर अच्छा मुनाफा देती है। लेकिन इसकी खेती में एक छोटी सी चूक भी नुकसान का सबब बन सकती है।

क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, चियांकी के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद कुमार के सुझावों के आधार पर आइए जानते हैं कि गर्मियों में गजेन्द्र ओल की खेती कैसे करें, ताकि ज्यादा उपज और मोटा मुनाफा कमाया जा सके।

गजेन्द्र ओल: क्यों है खास?

गजेन्द्र ओल दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली उन्नत किस्म है। ये 7 से 8 महीने में पककर तैयार हो जाती है और सामान्य किस्मों की तुलना में ज्यादा उपज देती है। इसके कंद बड़े, स्टार्च से भरपूर और बाजार में मांग वाले होते हैं। एक एकड़ खेत में लगभग 200 क्विंटल तक उत्पादन मिल सकता है, जिससे किसानों को 5 से 7 लाख रुपये तक का मुनाफा हो सकता है। इसके अलावा, ओल से बने उत्पाद, जैसे आचार, चिप्स और सब्जी, भी बाजार में अच्छा दाम लाते हैं। गजेन्द्र की खासियत ये है कि ये छायादार जगहों में भी अच्छी तरह बढ़ता है और कीट-रोगों का खतरा कम रहता है।

Yam Cultivation
Yam Cultivation

बीज और कंद की सही तैयारी

ओल एक कंद वाली फसल है, और इसकी खेती में बीज के रूप में कंद के टुकड़ों का इस्तेमाल होता है। डॉ. प्रमोद कुमार बताते हैं कि कंद को काटते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। ओल के कंद में बीच में एक गड्ढा होता है, जिसे “आंख” कहते हैं। कंद को इस तरह काटें कि हर टुकड़े में ये गड्ढा शामिल हो। अगर बिना आंख वाला टुकड़ा लगाया गया, तो पौधा नहीं उगेगा, और सारा मेहनत-खर्च बर्बाद हो सकता है।

एक एकड़ के लिए 500 ग्राम वजन के लगभग 8000 से 10000 कंद टुकड़े चाहिए। कंद को काटने के बाद टुकड़ों को 24 घंटे छांव में सुखाएं और फिर नीम तेल या गोमूत्र में डुबोकर उपचारित करें। इससे कंद सड़ने से बचेगा और अंकुरण बेहतर होगा।

मिट्टी और खेत की तैयारी

गजेन्द्र ओल की खेती (Yam Cultivation) के लिए अच्छी जल निकासी वाली लाल दोमट या रेतीली मिट्टी सबसे सही है। मिट्टी का पीएच 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए। गर्मियों में खेत को दो से तीन बार अच्छे से जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसके बाद प्रति हेक्टेयर 12 से 15 टन गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। खेत में 60 x 60 x 45 सेंटीमीटर के गड्ढे बनाएं, जिनके बीच 90 x 90 सेंटीमीटर की दूरी हो।

हर गड्ढे में 2.5 किलो खाद और मिट्टी का मिश्रण भरें। गर्मियों में मिट्टी को गर्मी से बचाने के लिए गड्ढों के आसपास पुआल या सूखी घास की मल्चिंग करें। ये नमी बनाए रखता है और खरपतवार को भी रोकता है।

बुवाई का सही समय और तरीका

दक्षिण भारत में गर्मियों की शुरुआत, यानी फरवरी से मार्च, ओल की बुवाई का सबसे अच्छा समय है। इस समय गर्म और नम मौसम कंद के अंकुरण के लिए सही होता है। तैयार गड्ढों में कंद के टुकड़े इस तरह लगाएं कि आंख वाला हिस्सा ऊपर की ओर हो। प्रत्येक गड्ढे में एक टुकड़ा 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई पर लगाएं। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे। अगर बारिश का इंतजार कर रहे हैं, तो सुनिश्चित करें कि बुवाई बारिश शुरू होने से पहले हो, ताकि अंकुरण समय पर शुरू हो।

उर्वरक और पोषण प्रबंधन

गजेन्द्र ओल को अच्छी पैदावार के लिए संतुलित पोषण चाहिए। बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 40 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 50 किलो पोटाश डालें। इसके 45 दिन बाद 40 किलो नाइट्रोजन और 50 किलो पोटाश की टॉप ड्रेसिंग करें। देसी तरीके से गोबर की खाद, नीम खली या पंचगव्य का छिड़काव हर 15 दिन में करें। इससे कंद का आकार बढ़ता है और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है। गर्मियों में पौधों को ताकत देने के लिए छाछ और गोमूत्र (1:10 अनुपात) का घोल बनाकर हर 20 दिन में छिड़काव करें। ये पौधों को रोगों से बचाता है और विकास को तेज करता है।

सिंचाई और जल प्रबंधन

गर्मियों में ओल की खेती (Yam Cultivation) में पानी का सही प्रबंधन बहुत जरूरी है। बुवाई के बाद पहली सिंचाई तुरंत करें। इसके बाद पहले दो महीनों तक हफ्ते में एक बार 5 से 6 सेंटीमीटर पानी दें। जब पौधे बड़े होने लगें, तो मिट्टी की नमी के आधार पर 10 से 15 दिन में एक बार सिंचाई करें। ज्यादा पानी देने से बचें, क्योंकि पानी का जमाव कंद को सड़ा सकता है। ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल करें, ताकि पानी सीधे जड़ों तक पहुंचे और बर्बादी न हो। गर्मी में मल्चिंग जरूर करें, ये पानी को लंबे समय तक मिट्टी में रखता है।

खरपतवार और कीट प्रबंधन

गर्मियों में खरपतवार तेजी से बढ़ते हैं, जो ओल के पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बुवाई के 10 से 15 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। इसके बाद हर 20 दिन में हल्की गुड़ाई करें ताकि खरपतवार न बढ़ें। देसी उपाय के तौर पर नीम तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव हर 15 दिन में करें। ये माइली बग और व्हाइट स्केल जैसे कीटों को रोकता है। अगर फंगल रोग जैसे रूट रॉट दिखे, तो गोमूत्र और हल्दी पाउडर का मिश्रण (10:1) बनाकर जड़ों के पास डालें। ये रोग को काबू करता है और पौधों को ताकत देता है।

कटाई और बाजार

गजेन्द्र ओल की फसल 7 से 8 महीने में तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगें और तना सूखने लगे, तो ये कटाई का सही समय है। आमतौर पर जनवरी-फरवरी में कटाई होती है। कंद को सावधानी से खोदें, ताकि वो टूटे नहीं। एक एकड़ में 500 ग्राम के कंद लगाने पर 200 क्विंटल तक उपज मिलती है, जो चार गुना बड़ा हो जाता है। बाजार में ओल का दाम 25 से 35 रुपये प्रति किलो तक मिलता है। इसके अलावा, ओल का आचार, चिप्स या सब्जी बनाकर बेचने से भी अतिरिक्त कमाई हो सकती है। स्थानीय मंडी या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए बिक्री करें, ताकि बेहतर दाम मिले।

किसानों के लिए खास सुझाव

गजेन्द्र ओल की खेती (Yam Cultivation) में मुनाफा तभी मिलेगा, जब छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए। हमेशा स्वस्थ और रोगमुक्त कंद चुनें। काटते समय आंख वाले हिस्से को बरकरार रखें। गर्मियों में मल्चिंग और ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल जरूर करें, ताकि पानी की कमी न हो। देसी उपाय जैसे नीम तेल, गोमूत्र और जैविक खाद का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें, इससे लागत कम होगी और मुनाफा बढ़ेगा। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें और गजेन्द्र प्रभेद के बीज की जानकारी लें। अगर खेत में छाया है, तो ओल को केले, कॉफी या नारियल के पेड़ों के साथ इंटरक्रॉपिंग करें। इससे जगह का सही इस्तेमाल होगा और कमाई दोगुनी हो सकती है।

गर्मियों में ओल से लखपति बनें

गजेन्द्र ओल की खेती गर्मियों में किसानों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है। सही बीज, खेत की तैयारी, उर्वरक, सिंचाई और कीट प्रबंधन के साथ ये फसल 5 से 7 लाख रुपये तक का मुनाफा दे सकती है। ये न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट है, बल्कि इसके आचार और चिप्स भी बाजार में खूब बिकते हैं। 2025 में अगर आप अपने खाली खेत को मुनाफे का खजाना बनाना चाहते हैं, तो गजेन्द्र ओल की खेती अपनाएं। देसी उपायों और वैज्ञानिक सलाह के साथ इस फसल को उगाएं और अपनी मेहनत को मोटी कमाई में बदलें।

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Author

  • Rahul Maurya

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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