जैविक खेती का छुपा राज, फसलों का रहस्यमय रक्षक, जो कीटों का दुश्मन है

Zytonic Neem: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ खेतिहर समुदाय की मेहनत से धान, कपास, मक्का, सोयाबीन, और मूंगफली जैसी फसलें उगती हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में कीटों का आतंक इन फसलों के लिए सिरदर्द बन गया है। कपास में पिंक बॉल वर्म (गुलाबी सुंडी), सफेद मक्खी, और थ्रिप्स; मक्का और धान में तना छेदक; और मूंगफली-सोयाबीन में सफेद मक्खी से फैलने वाले वायरस ने किसानों की नींद उड़ा दी है। इन कीटों को काबू में रखना ही अब जरूरी हो गया है, वरना फसल बर्बाद होने का खतरा बढ़ता जा रहा है।

रासायनिक जाल से आजादी, नीम का कमाल

रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल मिट्टी, पानी, और पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है। कपास जैसे फसलों में 12 हानिकारक कीटों के साथ 172 मित्र कीट भी होते हैं, जो प्राकृतिक रूप से नुकसानदेह कीटों को नियंत्रित करते हैं। लेकिन रासायनिक छिड़काव से ये मित्र कीट भी मर जाते हैं, जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है। हानिकारक कीट तेजी से बढ़ते हैं और कीटनाशकों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। ऐसे में नीम प्रकृति का वरदान बनकर सामने आया है। नीम के तेल में एजाडिरेक्टिन नामक तत्व कीटों के जीवन चक्र को तोड़ता है।

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जायटॉनिक नीम, नई तकनीक का तोहफा

ज़ायडेक्स कंपनी का जायटॉनिक नीम इस प्राकृतिक समाधान को नई ऊँचाइयों पर ले जाता है। इसमें एजाडिरेक्टिन की मात्रा 300 ppm तक होती है, जो कीट नियंत्रण के लिए सटीक है। इसकी खासियत है माइक्रोएनकैप्सुलेशन तकनीक, जिसे हम “बूंदों की मजबूत पकड़” कह सकते हैं। इस तकनीक से नीम तेल को पत्तियों पर लंबे समय तक चिपका रहने की शक्ति मिलती है, जिससे इसका असर कई दिन तक बना रहता है। पत्ते कड़वे होकर कीटों को अंडा देने से रोकते हैं, जबकि मित्र कीट सुरक्षित रहते हैं। यह जैविक तरीका मिट्टी और पर्यावरण को स्वस्थ रखता है।

जायटॉनिक नीम का सही उपयोग

कीटों से बचाव के लिए जायटॉनिक (Zytonic Neem) नीम का इस्तेमाल शुरूआती दौर में ही करें। फसलों में कीट दिखने से पहले 500 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करें, ताकि नुकसान पहले ही रुक जाए। अगर कीट पहले से हैं और आप रासायनिक कीटनाशक का उपयोग कर रहे हैं, तो 1-2 मिली प्रति लीटर पानी के साथ जायटॉनिक नीम मिलाएँ। ध्यान रखें सबसे पहले नीम और कीटनाशक को मिलाएँ, फिर इस मिश्रण को पानी में डालें, ताकि माइक्रोएनकैप्सुलेशन का पूरा फायदा मिले और दवा का असर बढ़े। मिट्टी के कीटों पर काबू पाने के लिए इसे पानी में घोलकर जड़ों के पास डालें।

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कपास में IPM का नया साथी

कपास की फसल में गुलाबी सुंडी (पिंक बॉल वर्म) सबसे बड़ी चुनौती है। इसका जीवन चक्र छोटा लेकिन नुकसानदेह है, और यह कीटनाशकों के प्रति जल्दी प्रतिरोधक बन जाती है। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि शुरुआत में जायटॉनिक नीम का छिड़काव करें, जो कीटों की प्रारंभिक आबादी को नियंत्रित करता है। माइक्रोएनकैप्सुलेशन तकनीक से यह लंबे समय तक असर दिखाती है। बाद के रासायनिक छिड़काव में इसे मिलाने से दवाओं की ताकत बढ़ती है और कीटों का जीवन चक्र बाधित होता है, जिससे फसल कई हफ्तों तक सुरक्षित रहती है। यह एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) का कारगर हिस्सा बन सकता है।

पर्यावरण का संतुलन

जायटॉनिक नीम से कीट नियंत्रण होने से फसलों की पैदावार 15-20% तक बढ़ सकती है, जो किसानों की आय को बढ़ाएगी। एक एकड़ में 200-300 रुपये की लागत से यह 10-15 हजार रुपये का फायदा दे सकता है। बार-बार छिड़काव न करने से समय और मेहनत भी बचेगी। पर्यावरण के लिए यह वरदान है मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, पानी प्रदूषित नहीं होता, और मित्र कीटों की रक्षा होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह टिकाऊ खेती को बढ़ावा देगा। सरकार की राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना के तहत जैविक उत्पादों पर सब्सिडी मिलती है नजदीकी कृषि केंद्र से जानकारी लें।

जायटॉनिक नीम खेती की मुश्किलों को हल्का करने वाला प्राकृतिक साथी है। देसी मेहनत, सही तकनीक, और सरकारी सहायता से आप इसको अपनी फसलों का रक्षक बना सकते हैं। इस जून-जुलाई 2025 में इसे अपनाएँ और कीटों से मुक्ति पाएँ!

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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