हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बरसात का मौसम किसानों के लिए सुनहरा अवसर लाया है। उद्यान विभाग ने इस मानसून में 75,000 फलदार और औषधीय पौधों को रियायती दरों पर वितरित करने की योजना शुरू की है। इस पहल से न केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि जिले में हरियाली और फल उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा। आम, लीची, अमरूद, पपीता, सिट्रस, और औषधीय पौधों जैसे अशवगंधा, तुलसी, और सर्पगंधा की माँग को पूरा करने के लिए विभाग ने कमर कस ली है। किसान अपने ब्लॉक के हॉर्टिकल्चर ऑफिसर से संपर्क कर पौधों की डिमांड दर्ज करवा सकते हैं।
75,000 पौधों का वितरण लक्ष्य
कांगड़ा उद्यान विभाग के उप निदेशक सुरेंद्र राणा ने बताया कि इस वर्ष बरसात के मौसम में 75,000 पौधे वितरित किए जाएँगे, जो पिछले वर्ष के 60,000 पौधों से 25% अधिक है। यह योजना जिले के सभी ब्लॉकों में माँग के आधार पर लागू होगी। विभाग की नर्सरियों में तैयार किए गए पौधों में आम, लीची, अमरूद, नींबू, पपीता, जामुन, अंजीर, और औषधीय पौधे जैसे अशवगंधा, तुलसी, और सर्पगंधा शामिल हैं।
राणा ने कहा, “हम उच्च गुणवत्ता वाले पौधे बाजार से कम कीमत पर दे रहे हैं, ताकि छोटे और सीमांत किसान भी बागवानी अपना सकें।” पौधों की कीमतों में मामूली वृद्धि हुई है आम का पौधा 75-90 रुपये, लीची 70 रुपये, और सिट्रस 100 रुपये में उपलब्ध है। पॉलीबैग में पौधों की कीमत थोड़ी अधिक हो सकती है।
बरसात में बागवानी के फायदे
उद्यान विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर कमल शील नेगी ने बताया कि बरसात का मौसम फलदार और औषधीय पौधों की रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त है। इस दौरान मिट्टी में नमी रहती है, जिससे पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं और ग्रोथ तेज होती है। सदाबहार (एवरग्रीन) पौधे जैसे आम, लीची, और पपीता इस मौसम में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। औषधीय पौधों की खेती भी कांगड़ा की जलवायु में फायदेमंद है।
कांगड़ा की विविध भौगोलिक स्थिति और उपजाऊ मिट्टी इसे उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण फसलों के लिए आदर्श बनाती है। नेगी ने सलाह दी कि सही समय पर रोपाई और उचित तकनीक से किसान 20-30% ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
औषधीय पौधों की बढ़ती माँग
कांगड़ा में औषधीय पौधों की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। ज्वालामुखी और देहरा में 300 से अधिक किसान काला तुलसी, सर्पगंधा, और सफेद मूसली की खेती कर रहे हैं, जो प्रति कनाल 25,000-30,000 रुपये का मुनाफा दे रही है। आयुर्वेदिक चिकित्सा और फार्मास्यूटिकल उद्योग में अशवगंधा, सर्पगंधा, और तुलसी की माँग बढ़ रही है।
उद्यान विभाग ने इन पौधों की नर्सरी तैयार की है, और MNREGA के तहत श्रम सहायता भी दी जा रही है। कांगड़ा और हमीरपुर में 2008-09 से औषधीय पौधों के संरक्षण और प्रसार के लिए 200.40 लाख रुपये का प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसे 2015 तक बढ़ाया गया था।
खेती और देखभाल के टिप्स
पौधों की रोपाई के लिए गड्ढे 2x2x2 फीट के हों, जिनमें 10-15 किलो गोबर की खाद और मिट्टी मिलाएँ। पौधों के बीच 4-6 मीटर की दूरी रखें। ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग से पानी और खाद की बचत होगी। औषधीय पौधों के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी चुनें। तुलसी और अशवगंधा के लिए नीम तेल (2 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। फलदार पौधों की नियमित छंटाई और कीट नियंत्रण के लिए KVK से सलाह लें। बरसात में जलभराव से बचें, क्योंकि यह जड़ों को नुकसान पहुँचाता है।
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