भारत की खेती की दुनिया में एक नई चिंता उभर रही है। खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट के कारण किसान सोयाबीन और मूंगफली की खेती छोड़कर मक्का की ओर रुख कर रहे हैं। यह बदलाव भले ही कुछ किसानों के लिए फायदेमंद लगे, लेकिन इससे देश की खाद्य तेल और दालों की आयात पर निर्भरता और बढ़ सकती है। भारत पहले से ही अपनी खाद्य तेल जरूरत का 60% आयात पर निर्भर है, और 2024 में दालों का आयात साल दर साल दोगुना होकर 6.63 मिलियन टन तक पहुँच गया है। यह स्थिति खाद्य सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। आइए, इस समस्या के कारणों, प्रभावों, और संभव समाधानों पर गहराई से चर्चा करते हैं।
खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट और फसल बदलाव
पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में कमी आई है, जिसका असर देशी बाजार पर भी पड़ा है। सोयाबीन और मूंगफली तेल की कीमतें नीचे आने से इन फसलों की खेती से मुनाफा कम होना शुरू हो गया है। दूसरी ओर, मक्का की मांग बढ़ रही है, खासकर चारा और औद्योगिक उपयोग के लिए। इसके चलते किसान मक्का की ओर मुड़ रहे हैं, जिससे सोयाबीन और मूंगफली की खेती का रकबा घट रहा है। यह बदलाव अल्पकालिक लाभ दे सकता है, लेकिन लंबे समय में खाद्य तेलों की आपूर्ति पर बुरा असर डालेगा। देश में तेलहन फसलों का उत्पादन पहले से ही आयातित तेलों की सस्ती उपलब्धता के कारण दबाव में है।
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आयात पर बढ़ती निर्भरता
भारत की खाद्य तेल जरूरत का 60% आयात पर निर्भर होना पहले से ही चिंता का विषय है। मलेशिया, इंडोनेशिया, और ब्राजील जैसे देशों से पाम, सोयाबीन, और सूरजमुखी तेल का आयात होता है। सोयाबीन और मूंगफली की खेती में कमी से यह निर्भरता और बढ़ने की संभावना है। साथ ही, 2024 में दालों का आयात 6.63 मिलियन टन तक पहुँचने से स्थिति और गंभीर हो गई है। दालों की मांग बढ़ने और घरेलू उत्पादन कम होने से आयात पर बोझ बढ़ा है। यह न सिर्फ विदेशी मुद्रा का नुकसान कर रहा है, बल्कि कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति देश को असुरक्षित भी बना रहा है।
प्रभाव और चुनौतियाँ
खाद्य तेल और दालों की आयात निर्भरता बढ़ने से कई समस्याएँ सामने आ रही हैं। पहला, सस्ते आयातित तेलों के कारण घरेलू तेलहन फसलों की कीमतें दब रही हैं, जिससे किसानों की आय प्रभावित हो रही है। दूसरा, मक्का की खेती बढ़ने से पोषण संतुलन बिगड़ सकता है, क्योंकि मक्का तेल या प्रोटीन का बड़ा स्रोत नहीं है। तीसरा, दालों का आयात बढ़ने से बाजार में कीमतें अस्थिर हो रही हैं, जो उपभोक्ताओं पर बोझ डाल रहा है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर निर्भरता से मौसम, नीति, और वैश्विक संकटों का जोखिम भी बढ़ गया है। यह स्थिति आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को चुनौती दे रही है।
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इसके पीछे के कारण
इस समस्या के कई कारण हैं। पहला, तेलहन और दालों की खेती को प्रोत्साहन देने वाली नीतियाँ कमजोर रही हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ किसानों तक पूरी तरह नहीं पहुँच पा रहा है। दूसरा, सस्ते आयातित तेलों और दालों ने घरेलू उत्पादकों को नुकसान पहुँचाया है। तीसरा, मौसम की अनिश्चितता और सिंचाई की कमी ने तेलहन और दालों की पैदावार को प्रभावित किया है। इसके अलावा, किसानों की जागरूकता और तकनीक का अभाव भी एक बड़ा कारण है, जिससे वे फसलों के विविधीकरण की ओर नहीं जा पा रहे हैं।
संभव समाधान
इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। पहला, सरकार को तेलहन और दालों की खेती के लिए MSP को प्रभावी बनाना चाहिए और सब्सिडी बढ़ानी चाहिए। दूसरा, प्रिसिजन फार्मिंग जैसी तकनीकों को बढ़ावा देकर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, जिसमें ड्रोन और सेंसर का उपयोग शामिल है। तीसरा, आयात शुल्क बढ़ाकर घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन देना जरूरी है। चौथा, किसानों को मक्का के साथ-साथ तेलहन और दालों की खेती के लिए प्रशिक्षण और बीज सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए। पांचवाँ, सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाकर स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिए।
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