जुलाई का महीना बरसात की शुरुआत का समय है, जो आम के पौधे लगाने के लिए बेहतरीन मौका देता है। इस समय मिट्टी में नमी होती है, जो पौधों की जड़ों को मजबूत करने में मदद करती है। आम का पेड़ एक बार लगाने के बाद 20-30 साल तक फल दे सकता है, और सही किस्म चुनने से आप जल्दी और ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं। अब बरसात शुरू हो चुकी है, इसलिए अभी पौधा लगाना सही रहेगा। सही तरीके और उन्नत किस्मों (जैसे दशहरी, लंगड़ा, केसर, और तोटापुरी) के साथ आप अपनी बागवानी को मुनाफे का जरिया बना सकते हैं। आइए, जानते हैं कि जुलाई में आम का पौधा कैसे लगाएँ और कौन सी किस्म ज्यादा फायदेमंद है।
पौधा लगाने का सही तरीका
जुलाई में आम का पौधा (Mango Planting in July) लगाने के लिए पहले खेत या बगीचे की तैयारी करें। 3×3 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदें, जिनकी गहराई और चौड़ाई 1 मीटर हो। गड्ढे में 20-25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद और 500 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट मिलाएँ, फिर 15 दिन तक इसे खुला छोड़ दें। बरसात की नमी से मिट्टी तैयार हो जाएगी। पौधा लगाने से पहले जड़ों को 2-3 घंटे पानी में भिगोएँ। गड्ढे में पौधे को बीच में रखें और मिट्टी से भरें, फिर हल्का दबाएँ। पहली सिंचाई हल्की करें, लेकिन ज्यादा पानी जमा न होने दें। बरसात में जल निकासी का खास ध्यान रखें, क्योंकि पानी जमा होने से जड़ें सड़ सकती हैं। पौधे को धूप से आधा-आधा छाया दें, और 2-3 महीने तक नियमित नमी बनाए रखें।
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दशहरी, स्वाद और मांग का बादशाह
दशहरी उत्तर प्रदेश की मशहूर किस्म है, जो 4-5 साल में फल देना शुरू कर देती है। इसके फल मध्यम आकार के, पीले-हरे, और मीठे होते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत लाते हैं। प्रति पेड़ 100-150 किलोग्राम उत्पादन संभव है, और यह रोगों के प्रति सहनशील है। जुलाई में लगाए गए पौधे को 6-7 साल में पूरी पैदावार देनी शुरू कर देता है। इसे दोमट मिट्टी में उगाना सबसे अच्छा है। देखभाल में गोबर खाद और हल्की सिंचाई जरूरी है। इसकी मांग निर्यात में भी बढ़ रही है, जो किसानों को मुनाफा दे सकती है।
लंगड़ा, मजबूत और उत्पादन देने वाला
लंगड़ा, खासकर बिहार और पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय, 5-6 साल में फल देता है। इसके फल बड़े, रसीले, और मीठे होते हैं, जो 150-200 किलोग्राम प्रति पेड़ पैदा कर सकते हैं। यह गर्मी और हल्की नमी को सहन कर सकता है, लेकिन ज्यादा बारिश से बचाव चाहिए। जुलाई में लगाए गए पौधे को 7-8 साल में बंपर पैदावार मिलती है। बलुई दोमट मिट्टी और वर्मीकम्पोस्ट इसके लिए उपयुक्त हैं। कीट नियंत्रण के लिए नीम तेल का छिड़काव करें। यह किस्म स्थानीय बाजार में मांग के हिसाब से फायदेमंद है।
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केसर, जल्दी और रंगीन फल
केसर, दक्षिण भारत की खास किस्म, 4-5 साल में फल देना शुरू करती है। इसके फल पीले-नारंगी, सुगंधित, और 120-150 किलोग्राम प्रति पेड़ पैदा करते हैं। यह बरसात में भी अच्छी तरह बढ़ता है और रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है। जुलाई में लगाए गए पौधे को 6 साल में पूरी पैदावार देता है। दोमट मिट्टी में ड्रिप इरिगेशन और गोबर खाद से इसे स्वस्थ रखें। इसकी रंग-बिरंगी खूबी इसे निर्यात के लिए खास बनाती है।
तोटापुरी, ज्यादा पैदावार का वरदान
तोतापुरी, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मशहूर, 5-6 साल में फल देती है। इसके फल लंबे, हरे-पीले, और 200-250 किलोग्राम प्रति पेड़ तक पैदा कर सकते हैं। यह नमी और कीटों को सहन करने में सक्षम है, लेकिन जल निकासी जरूरी है। जुलाई में लगाए गए पौधे को 7 साल में बंपर उत्पादन मिलता है। बलुई मिट्टी और जैविक खाद इसके लिए सही हैं। कीटों से बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा का उपयोग करें। यह किस्म अचार और प्रसंस्करण उद्योग के लिए लोकप्रिय है।
पौधे को पहला साल मजबूत करने के लिए छाया और नमी दें। 3-4 साल बाद फल आने शुरू होंगे, और 7-8 साल में पूरी पैदावार होगी। सरकारी योजनाओं जैसे राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) से सब्सिडी और बीज मिल सकते हैं। KVK से प्रशिक्षण लें। बाजार में इन किस्मों की मांग बढ़ रही है, जो 50-100 रुपये प्रति किलोग्राम तक दे सकती है।
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