30 साल में 25 लाख हेक्टेयर घटा मूंगफली का रकबा, किसानों ने क्यों छोड़ी ये खेती?

Peanut Crop: भारतीय मूंगफली अनुसंधान संस्थान (IIGR) ने मूंगफली की खेती में रकबे की भारी गिरावट पर चिंता जताई है। 1993-94 में मूंगफली का रकबा 83.22 लाख हेक्टेयर था, जो 2024-25 में घटकर 57.54 लाख हेक्टेयर रह गया है। यानी करीब 25 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। IIGR के निदेशक संदीप कुमार बेरा के मुताबिक, बीजों की ऊंची लागत, गुजरात को छोड़कर अन्य राज्यों में मशीनीकरण की कमी, और खेती के सही तौर-तरीकों का पालन न करना इसकी बड़ी वजहें हैं। मूंगफली तिलहन फसलों में अहम है, लेकिन इन चुनौतियों ने किसानों की कमाई और उत्पादन पर असर डाला है।

बीजों की लागत बनी बड़ी रुकावट

मूंगफली की खेती में बीजों की लागत सबसे बड़ी चुनौती है। संदीप कुमार बेरा बताते हैं कि मूंगफली की बुवाई के लिए 180-200 किलो प्रति हेक्टेयर बीज चाहिए। एक अनुमान के मुताबिक, किसान अपनी कुल लागत का आधा हिस्सा बीज खरीदने में खर्च करते हैं। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 से 2023-24 के बीच मूंगफली की औसत उत्पादन लागत 76,772 रुपये प्रति हेक्टेयर थी, जो तिलहन फसलों में सबसे ज्यादा है।

निजी क्षेत्र की कम भागीदारी भी बड़ी वजह है, क्योंकि बीज उत्पादन और भंडारण में ज्यादा निवेश और नमी या कीटों से नुकसान का जोखिम रहता है। बीज प्रमाणीकरण और वितरण में देरी से भी किसानों को समय पर अच्छे बीज नहीं मिल पाते।

मशीनीकरण की कमी, भंडारण का अभाव

गुजरात को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में मूंगफली की खेती छोटे खेतों में होती है। यहां के किसान मशीनीकरण में निवेश नहीं कर पाते। संदीप कुमार बेरा कहते हैं कि छोटे किसान न तो मशीनें खरीद सकते हैं और न ही भंडारण की व्यवस्था कर सकते हैं। इससे वे मूंगफली को ऊंचे दामों पर बेचने का मौका गंवा देते हैं। स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण इकाइयों की कमी भी बड़ी समस्या है। गुजरात में मशीनीकरण और बुनियादी ढांचे की बेहतर सुविधाओं की वजह से मूंगफली की खेती ज्यादा सफल है, लेकिन अन्य राज्यों में यह सुविधा न के बराबर है।

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राज्यों में उपज का बड़ा अंतर

CACP की रिपोर्ट बताती है कि मूंगफली की उपज में राज्यों के बीच बड़ा अंतर है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, और गुजरात में 2021-24 के दौरान प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल से ज्यादा उपज मिली, जबकि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र में यह 9-13 क्विंटल के बीच रही। इस अंतर की वजह खेती के तरीकों का सही इस्तेमाल न करना और मशीनीकरण की कमी है। गुजरात में मूंगफली की पैदावार ज्यादा होने से वह देश का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, जो भारत के कुल उत्पादन का 46 फीसदी हिस्सा देता है।

लागत कम करने की जरूरत

उत्पादन लागत को कम करना मूंगफली की खेती को बढ़ाने का सबसे बड़ा रास्ता है। उत्तर प्रदेश में 2025-26 के लिए खेती की लागत 9,962 रुपये प्रति क्विंटल अनुमानित है, जबकि राजस्थान में यह 3,851 रुपये प्रति क्विंटल है। संदीप कुमार बेरा का सुझाव है कि राज्यों के बीच उपज के अंतर को कम करने और सही खेती तकनीकों को अपनाने से लागत घट सकती है। खेतों में गोबर की खाद, नीम की खली, और जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करने से लागत कम हो सकती है।

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बीजों की जरूरत और प्रजनक हब

मूंगफली की बीज रोलिंग योजना के तहत 150 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से 95.4 लाख क्विंटल बीज चाहिए। 25 फीसदी बीज प्रतिस्थापन दर (SRR) के लिए 1.59 लाख हेक्टेयर और 35 फीसदी SRR के लिए 2.23 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की जरूरत है। खाद्य तेल मिशन के तहत 18 प्रजनक बीज हब विकसित करने के लिए 50 लाख रुपये बुनियादी ढांचे और 100 लाख रुपये भंडारण के लिए दिए गए हैं। इससे बीज की उपलब्धता बढ़ेगी और किसानों को फायदा होगा।

खरीफ के लिए सलाह

IIGR के निदेशक सुझाते हैं कि खरीफ सीजन से पहले किसानों को मूंगफली के अच्छे बीज मुफ्त या रियायती दर पर मिलें। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद की गारंटी से रकबा और उत्पादन बढ़ सकता है। 2024-25 के लिए MSP 6,783 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। किसानों को सलाह है कि वे खेत की मिट्टी की जांच करवाएं और स्थानीय कृषि केंद्रों से संपर्क करें। सब्सिडी योजनाओं का लाभ उठाकर भंडारण और मशीनीकरण में निवेश करें।

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  • Rahul

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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