आज के दौर में धान की खेती में डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) तकनीक किसानों के लिए वरदान बन रही है। यह पानी, मेहनत और लागत बचाती है, लेकिन इसके साथ ही खरपतवारों की समस्या भी बढ़ जाती है। खरपतवार न सिर्फ फसल की पैदावार घटाते हैं, बल्कि रासायनिक दवाओं पर निर्भरता भी बढ़ाते हैं, जो पर्यावरण और सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकती है।
पारंपरिक तरीकों से खरपतवार हटाना समय और श्रम की मांग करता है, जो छोटे किसानों के लिए मुश्किल हो गया है। ऐसे में जरूरत है एक ऐसी तकनीक की, जो आसान, प्रभावी और टिकाऊ हो। यहीं से शुरू होती है इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट साउथ एशिया रीजनल सेंटर (ISARC) की नई क्रांति, जो किसानों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है।
ट्रैक्टर-चालित वीडर, ISARC का गेम चेंजर
ISARC ने एक ट्रैक्टर-चालित खरपतवार नियंत्रण मशीन (वीडर) लॉन्च की, जो डीएसआर खेतों के लिए खास तौर पर डिजाइन की गई है। यह मशीन संकरी पहियों के साथ किसी भी ट्रैक्टर पर फिट हो सकती है और धान के पौधों को नुकसान पहुँचाए बिना खरपतवारों को साफ करती है। वैज्ञानिकों ने इसे वाराणसी जिले के पनियारा गाँव में सफलतापूर्वक टेस्ट किया, जहाँ इसने 25 से 30 दिन बाद बुवाई के बाद शानदार परिणाम दिए।
खास बात यह है कि यह मशीन एक एकड़ जमीन को सिर्फ एक घंटे में साफ कर सकती है, जो पारंपरिक तरीकों से कहीं तेज और सस्ता है। यह तकनीक खरपतवारों को दबाने में माहिर है, जिससे फसल की ग्रोथ बेहतर होती है।
पर्यावरण और लागत में बचत का रास्ता
इस ट्रैक्टर-चालित वीडर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह रासायनिक हर्बिसाइड्स पर निर्भरता कम करता है। हर्बिसाइड्स का अत्यधिक इस्तेमाल न सिर्फ मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और कीट प्रतिरोध जैसे मुद्दों को जन्म देता है। ISARC के वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह मशीन समय पर खरपतवार नियंत्रण करके लागत को 20-30% तक घटा सकती है। साथ ही, यह पानी की बचत में भी मदद करती है, जो डीएसआर की खासियत है। पारंपरिक खेती में बाढ़ की जरूरत पड़ती है, लेकिन डीएसआर में कम पानी से काम चलता है, और यह वीडर इस प्रक्रिया को और आसान बनाता है। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और पर्यावरण सुरक्षित रहेगा।
किसानों के लिए आसान और प्रभावी
इस मशीन का इस्तेमाल करना बेहद आसान है। ट्रैक्टर पर संकरी पहियों को फिट करने के बाद इसे 25 सेंटीमीटर की पंक्ति दूरी वाले डीएसआर खेतों में चलाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने सुझाया है कि इसे बुवाई के 25-30 दिन बाद इस्तेमाल करना सबसे बेहतर होता है, जब खरपतवार बढ़ने लगते हैं लेकिन धान के पौधे मजबूत हो जाते हैं। इससे फसल को नुकसान का खतरा नहीं रहता। छोटे और मझोले किसान, जो महंगे उपकरण नहीं खरीद सकते, इस मशीन को किराए पर लेकर भी फायदा उठा सकते हैं। ISARC का लक्ष्य इसे पूरे दक्षिण एशिया में सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराना है, ताकि हर किसान तकनीक का लाभ ले सके।
भविष्य की खेती में ISARC का योगदान
(Isarc DSR Kheti Kharpatwar Niyantran) यह नवाचार डीएसआर को और लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाएगा। पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन और अनियमित बारिश ने धान की खेती को चुनौती दी है। पारंपरिक तरीके अब प्रभावी नहीं रहे, और डीएसआर एक हल के रूप में उभरा है। इस ट्रैक्टर-चालित वीडर के साथ, किसान न सिर्फ पैदावार बढ़ा सकते हैं, बल्कि मेहनत और लागत भी बचा सकते हैं। ISARC ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के 500 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में डीएसआर डेमो दिखाए हैं, और इस मशीन को अपनाने से उत्पादन में 10-15% तक इजाफा होने की उम्मीद है। यह तकनीक खासकर उन क्षेत्रों के लिए फायदेमंद है, जहाँ श्रम की कमी और पानी की किल्लत है।
युवाओं और स्टार्टअप्स के लिए मौका
यह मशीन न सिर्फ किसानों, बल्कि युवाओं के लिए भी रोजगार के नए रास्ते खोलेगी। ट्रैक्टर सर्विस प्रोवाइडर्स और एग्री-टेक स्टार्टअप्स इस मशीन को किराए पर देकर कमाई कर सकते हैं। ISARC ने ट्रेनिंग प्रोग्राम भी शुरू किए हैं, जहाँ किसानों और तकनीशियनों को इसकी जानकारी दी जा रही है। आने वाले समय में, यह तकनीक दक्षिण एशिया और अफ्रीका के चावल उत्पादक देशों में फैलेगी, जिससे खेती को आधुनिक और टिकाऊ बनाया जा सकेगा।
अगर आप धान की खेती में नई तकनीक आजमाना चाहते हैं, तो ISARC की इस ट्रैक्टर-चालित वीडर को अपनाएँ। यह आपकी मेहनत को आसान करेगा और मुनाफे को बढ़ाएगा। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से इसकी जानकारी लें और डीएसआर खेती के फायदों को भुनाएँ। यह समय है पुरानी सोच को बदलने का और खेती को तकनीक के साथ जोड़ने का। ISARC का यह कदम न सिर्फ फसल, बल्कि किसानों के भविष्य को भी हरा-भरा करेगा।