किसान भाइयों, पपीता देश के कई हिस्सों में बड़े स्तर पर उगाया जा रहा है। तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और गुजरात तो इसके पारंपरिक केंद्र हैं, लेकिन अब उत्तर प्रदेश और बिहार में भी इसकी खेती जोर पकड़ रही है। मगर पपीते की खेती में एक बड़ी चुनौती है वायरस का हमला। अगर पौधों के पत्ते अचानक पीले पड़कर मुरझाने या सूखने लगें, तो ये पपीता लीफ कर्ल वायरस या रिंग स्पॉट वायरस का लक्षण हो सकता है।
ये रोग धीरे-धीरे पूरे खेत को चपेट में ले लेता है, जिससे उपज में भारी नुकसान होता है। बिहार के मुजफ्फरपुर के किसान रवि शंकर ने बताया कि उनके खेत में वायरस के कारण 30% फसल बर्बाद हो गई थी। लेकिन समय पर सावधानी और सही उपचार से फसल को बचाया जा सकता है।
वायरस से फसल को कैसे बचाएँ
पूसा इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि वायरस से बचाव के लिए खेत में पानी का ठहराव न होने दें। खासकर पौधों की जड़ों के पास ज्यादा नमी वायरस के प्रसार को बढ़ावा देती है। इसके लिए खेत में अच्छी जल निकासी की व्यवस्था करें। दोमट मिट्टी में 8-10 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर डालें और खेत को समतल रखें। खरपतवार भी वायरस का बड़ा कारण बनते हैं, क्योंकि जंगली घासें सफेद मक्खी जैसे कीटों को आकर्षित करती हैं, जो वायरस फैलाते हैं।
ये भी पढ़ें- सरकार दे रही पपीते की खेती पर 75% सब्सिडी, जानिए कैसे करें आवेदन
खेत को खरपतवार-मुक्त रखने के लिए 15-20 दिन के अंतराल पर निराई करें। नीम तेल (2 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव सफेद मक्खी को रोकने में मदद करता है। वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि पौधों को 2×2 मीटर की दूरी पर लगाएँ, ताकि हवा और धूप से वायरस का खतरा कम हो।
Planofix दवा का असर
वायरस के नियंत्रण के लिए रासायनिक उपाय के तौर पर Planofix दवा कारगर है। पूसा इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों के अनुसार, एक एकड़ खेत के लिए 60-70 मिलीलीटर Planofix को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसे 12-12 दिन के अंतराल पर दो बार करें। इससे पौधों की सेहत सुधरती है और वायरस का असर कम होता है। छिड़काव सुबह या शाम को करें, ताकि दवा अच्छे से काम करे। साथ ही, इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL (0.5 मिली/लीटर) का छिड़काव सफेद मक्खी जैसे वाहक कीटों को रोकने के लिए करें।
ये भी पढ़ें- बागवानी फसलों में कीट नियंत्रण के लिए यह सरकार दे रही 50-75% तक सब्सिडी, जानें कैसे उठाएं योजना का पूरा लाभ
समय पर सतर्कता जरूरी
कृषि विशेषज्ञों ने किसानों से अपील की है कि पत्तों के पीले पड़ने, मुरझाने, या कर्ल होने जैसे लक्षण दिखते ही तुरंत कदम उठाएँ। पपीता लीफ कर्ल वायरस सफेद मक्खी के जरिए फैलता है, और रिंग स्पॉट वायरस मिट्टी या बीज से आ सकता है। प्रभावित पौधों को तुरंत उखाड़कर नष्ट करें, ताकि वायरस बाकी फसल में न फैले।
फसल चक्र अपनाएँ और पिछले साल की बची मिट्टी में नई बुवाई से बचें। पूसा नैनो, रेड लेडी, और ताइवान 786 जैसी वायरस-प्रतिरोधी किस्में चुनना भी फायदेमंद है। समय पर रोग की पहचान और उपचार से 70-80% फसल बचाई जा सकती है।
किसानों के लिए सुनहरा अवसर
पपीते की खेती यूपी और बिहार में तेजी से बढ़ रही है, और बाजार में इसकी मांग 30-50 रुपये प्रति किलो तक है। लेकिन वायरस का खतरा फसल को बर्बाद कर सकता है। पूसा इंस्टीट्यूट की सलाह और Planofix जैसे उपायों से किसान अपनी मेहनत को बचा सकते हैं। खेत में जैविक खाद, सही सिंचाई, और कीट नियंत्रण से उपज 20-25 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। किसान भाई सतर्क रहें, नजदीकी कृषि केंद्र से सलाह लें, और अपनी फसल को वायरस से सुरक्षित रखें।
ये भी पढ़ें- ये खेती नहीं, कमाई की मशीन है! एक बार लगाएं, 40 साल तक पीटें मुनाफा