उत्तर प्रदेश सरकार रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को कम करने के लिए किसानों को प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर प्रेरित कर रही है। कृषि विभाग ने जैविक खाद के उत्पादन को बढ़ावा दिया है, जो यूरिया और डीएपी जैसे रासायनिक उर्वरकों की लागत घटाने में मदद करता है। मौसम में हल्की ठंडक और नमी का मेल इस समय खेती के लिए अनुकूल है, और यह बदलाव किसानों की जिंदगी को आसान बना सकता है। तो आइए, जानें कि यह कदम खेतों को कैसे समृद्ध करेगा।
जैविक खाद का कमाल, मिट्टी की सेहत
जैविक उर्वरक मृदा में पड़े अघुलनशील उर्वरकों को सक्रिय करके पौधों तक पहुंचाते हैं, जो रासायनिक उर्वरकों की बर्बादी को रोकता है। आमतौर पर रासायनिक उर्वरकों का सिर्फ 15-20% हिस्सा पौधों तक पहुंच पाता है, बाकी जमीन में नीचे चला जाता है या वायुमंडल में वाष्प बनकर खो जाता है। लेकिन जैविक खाद इस बर्बादी को कम करता है और मिट्टी की उर्वरता को बरकरार रखता है। सितंबर की यह सुबह खेतों को प्राकृतिक तरीके से तैयार करने का सही मौका है, जो फसलों की जड़ों को मजबूती देगा।
जैविक उर्वरकों का इस्तेमाल फसल की प्रकृति के हिसाब से किया जाता है, जो रासायनिक उर्वरकों की 30-40% मात्रा को कारगर बनाता है। इससे किसानों की लागत कम होती है और मिट्टी प्रदूषण से बचती है। ये उर्वरक सस्ते होने के साथ-साथ रासायनिक खादों की प्रभावशीलता को बढ़ाते हैं, जो फसल को स्वस्थ रखता है। इटावा जिले में तीनों फसलों के लिए करीब तीन लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती है, जहां सालाना एक लाख मीट्रिक टन से ज्यादा रासायनिक उर्वरक इस्तेमाल होते हैं। यह बदलाव उस बर्बादी को रोक सकता है।
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बेकार जाता धन, रासायनिक उर्वरकों की हानि
रासायनिक उर्वरकों का बड़ा हिस्सा बेकार चला जाता है, जो किसानों की जेब पर भारी पड़ता है। अधिकतर उर्वरक जमीन की निचली सतह में समा जाते हैं या हवा में मिलकर प्रदूषण फैलाते हैं। इससे सिर्फ 15-20% उर्वरक ही पौधों तक पहुंच पाता है, बाकी की मेहनत और पैसा व्यर्थ हो जाता है। जैविक खाद इस नुकसान को कम करके पौधों को पूरा पोषण देता है, जो मिट्टी की सेहत और फसल की पैदावार दोनों को बढ़ाता है। यह कदम खेती को टिकाऊ बनाने की दिशा में है।
प्रयोगशाला प्रभारी गजेंद्र सिंह बताते हैं कि जैविक कल्चर सूक्ष्म जीवाणुओं का मिश्रण है, जो किसानों को फसल के अनुसार तैयार किए जाते हैं। इटावा के उप कृषि निदेशक शोध कार्यालय की जैव कल्चर प्रयोगशाला में तीन प्रकार के जैविक उर्वरक बनाए जाते हैं। पीएसबी कल्चर फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया होता है, जो मिट्टी के अघुलनशील फास्फेट को घोलकर पौधों की वृद्धि को 10% तक बढ़ाता है। यह रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करता है और फफूंदी से बचाव करता है।
फसलों के लिए खास, राइजोबियम और एजोटोबैक्टर
राइजोबियम कल्चर दलहनी फसलों के लिए खास है, जो वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी और पौधों को समृद्ध करता है। इसे बीज उपचार के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो पैदावार बढ़ाने में मददगार है। वहीं, एजोटोबैक्टर मिट्टी में पाया जाने वाला जीवाणु है, जो नाइट्रोजन को पौधों के लिए उपयोगी बनाता है। यह धान, गेहूं, बाजरा, कपास, टमाटर, गोभी, सरसों, कुसुम, और सूरजमुखी जैसी फसलों में प्रयोग होता है। यह विकास हार्मोन पैदा करता है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है।
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उप कृषि निदेशक आरएन सिंह का कहना है कि किसानों को जैविक उर्वरकों का नियमित इस्तेमाल करना चाहिए। यह फसलों की पैदावार बढ़ाता है और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। रासायनिक उर्वरकों की मात्रा कम होने से लागत और मिट्टी प्रदूषण में कमी आती है। इटावा में यह जैविक उर्वरक राजकीय कृषि बीज भंडार पर 75% सब्सिडी पर उपलब्ध है, जो छोटे किसानों के लिए राहत की बात है। सितंबर का यह मौसम इसे अपनाने का सही वक्त है।
किसानों के लिए प्रेरणा
जैविक खेती इटावा के किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है। यह न सिर्फ लागत कम करता है, बल्कि मिट्टी को लंबे समय तक उपजाऊ बनाए रखता है। अगर किसान इस तकनीक को अपनाएं और सरकार की सब्सिडी का फायदा उठाएं, तो उनकी मेहनत का फल दोगुना हो सकता है। यह बदलाव आने वाली पीढ़ियों के लिए हरा-भरा वातावरण छोड़ेगा और खेती को टिकाऊ बनाएगा।
इटावा के किसानों के लिए एक नई शुरुआत का संकेत है। जैविक खेती के साथ रासायनिक उर्वरकों से मुक्ति पाएं और अपनी फसलों को समृद्ध करें। 75% सब्सिडी पर जैविक उर्वरक लें और अपने खेतों को प्राकृतिक तरीके से तैयार करें। यह कदम आपकी जिंदगी को आसान बनाएगा और मिट्टी को नई जिंदगी देगा। तो देर न करें, आज से इस बदलाव को अपनाएं!
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