देश के कई हिस्सों में खरीफ सीजन के दौरान धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसी समय फसल पर तरह-तरह के रोग और कीटों का प्रकोप भी दिखाई देने लगता है। इन दिनों किसानों को जिस बीमारी ने सबसे ज्यादा परेशान किया है, वह है बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट। इसे जीवाणु पत्ती झुलसा भी कहा जाता है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रोग यदि समय पर नियंत्रित न किया जाए तो धान की पैदावार पर गंभीर असर डाल सकता है।
क्या है बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी.के. प्रजापति बताते हैं कि यह रोग जैन्थोमोनास औराइजी नामक बैक्टीरिया से फैलता है। इसकी शुरुआत आमतौर पर तब होती है जब खेत में नमी 80 से 90 प्रतिशत और तापमान 28 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। ऐसे हालात में यह बैक्टीरिया बहुत तेजी से सक्रिय हो जाता है। यह रोग मुख्य रूप से हवा और पानी के जरिए फैलता है। पौधों पर यदि कहीं घाव हो तो यह बीमारी और भी तेजी से हमला करती है और पूरे खेत को प्रभावित कर देती है।
रोग की पहचान कैसे करें
धान की पत्तियों के ऊपरी हिस्से पर पानी से भीगे हुए धारियों जैसे धब्बे सबसे पहले दिखाई देते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे पीले रंग के हो जाते हैं और बाद में सफेद तथा भूरे धब्बों में बदलकर पत्तियों को सुखाने लगते हैं। खेत में ऊपर से देखने पर पौधों का ऊपरी सिरा नीचे झुका हुआ और बीच का हिस्सा पीला होता नजर आता है। यह रोग धान के पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को रोक देता है, जिसके कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनका विकास प्रभावित होता है।
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रोग का फैलाव और असर
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट बहुत तेजी से फैलता है। हवा, वर्षा का पानी और खेत में जमा नमी इसके प्रमुख कारण हैं। यह रोग धान के पौधों को बौना कर देता है। यदि समय पर इसका नियंत्रण न किया जाए तो धान की बाली पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाती और दानों की संख्या तथा वजन पर भी बुरा असर पड़ता है।
रोग से बचाव के देसी उपाय
कई किसान इस रोग से निपटने के लिए पारंपरिक तरीका अपनाते हैं। ताजा गोबर लगभग दो से तीन किलो लेकर उसे 15-20 लीटर पानी में घोला जाता है और फिर कपड़े से छानकर उस घोल का छिड़काव फसल पर किया जाता है। यह उपाय शुरुआती अवस्था में बैक्टीरिया को रोकने में मददगार साबित होता है और फसल को काफी हद तक बचाता है।
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रासायनिक नियंत्रण
यदि रोग का प्रकोप बढ़ गया है तो किसान वैज्ञानिकों की सलाह से दवाओं का छिड़काव कर सकते हैं। सबसे पहले खेत की मेड़ साफ रखनी चाहिए और खेत में पड़े कचरे को हटा देना चाहिए। जिस खेत में यह रोग लग चुका हो उसका पानी दूसरे खेत में न जाने दें। नाइट्रोजन का प्रयोग कम कर दें क्योंकि इससे रोग और तेजी से फैल सकता है। फसल बचाने के लिए एग्री मायसिन और कॉपर ऑक्सिक्लोराइड का मिश्रण पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन जैसी दवाओं को कॉपर ऑक्सिक्लोराइड के साथ मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है। यह प्रक्रिया 10-12 दिन के अंतराल पर 2-3 बार करनी चाहिए।
कब आया भारत में जापानी रोग
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग पहली बार 1881 में जापान में पाया गया था। भारत में यह 1951 में महाराष्ट्र में देखा गया और उसके बाद यह पूरे देश में फैल गया। आज यह रोग उन सभी क्षेत्रों में पाया जाता है जहां धान की खेती होती है।
किसानों के लिए सलाह
यदि किसान इस बीमारी की पहचान समय पर कर लें और तुरंत उपाय करें तो पैदावार पर अधिक असर नहीं पड़ता। लेकिन अगर इसे नजरअंदाज किया गया तो उत्पादन में बड़ी गिरावट आ सकती है। इसलिए किसानों को इस रोग के शुरुआती लक्षणों को पहचानते ही आवश्यक कदम उठाने चाहिए ताकि फसल सुरक्षित रह सके और पैदावार भी अच्छी हो।
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