सरसों की बुआई कैसे करें, डिबलर या छिट्टुआ कौन सी विधि रहेगी बेहतर, जाने पूरी डिटेल

किसान भाइयों, सरसों की खेती सितम्बर लास्ट में प्रारंभ हो जाती हैं। सरसों की फसल न सिर्फ तेल देती है, बल्कि इसकी हरी पत्तियाँ और दाने बाजार में अच्छी कीमत भी लाते हैं। लेकिन अच्छी फसल के लिए खेत की सही तैयारी और बुआई का तरीका बहुत जरूरी है। कई किसान भाई पूछते हैं कि सरसों के लिए खेत की जुताई कितनी बार करें। आमतौर पर दो से तीन बार जुताई काफी है, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो और खरपतवार न रहें। आज हम डिबलर और छिट्टूआ विधियों की तुलना करेंगे, ताकि आप अपने खेत के लिए बेहतर तरीका चुन सकें। ये दोनों तरीके हमारे गाँवों में आजमाए हुए हैं और अच्छी फसल देते हैं।

खेत की जुताई का सही तरीका

सरसों की बुआई (Sarson Ki Kheti) से पहले खेत को अच्छे से तैयार करना जरूरी है। ज्यादातर गाँवों में किसान दो से तीन बार जुताई करते हैं। पहली जुताई गहरी करें, ताकि मिट्टी ढीली हो जाए और जड़ें आसानी से फैलें। इसके बाद दूसरी और तीसरी जुताई कल्टीवेटर या डिस्क हैरो से करें, जिससे मिट्टी बारीक और समतल हो। अगर खेत में पहले कोई फसल थी, तो उसके अवशेष हटाने के लिए तीसरी जुताई जरूरी हो सकती है। इससे खरपतवार कम होते हैं और मिट्टी हवादार बनती है। जुताई के बाद हल्की सिंचाई करें, जिससे बीज जल्दी अंकुरित हो।

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डिबलर विधि से बुआई कैसे करें

डिबलर विधि एक आधुनिक और व्यवस्थित तरीका है। इसमें डिबलर टूल या मशीन से बीज सही गहराई और फासले पर बोए जाते हैं। ये तरीका उन किसानों के लिए अच्छा है, जिनके पास बड़े खेत हैं। प्रति हेक्टेयर सिर्फ 4-5 किलो बीज काफी है, और पौधों को 20-25 सेंटीमीटर के फासले पर लगाया जाता है। इस विधि में बीज बर्बाद नहीं होते, और पानी-खाद का इस्तेमाल भी सही ढंग से होता है। बुआई का सही समय अक्टूबर से नवंबर है, और इस विधि से फसल 90-100 दिन में तैयार हो सकती है।

छिट्टूआ विधि का आसान तरीका

छिट्टूआ विधि पुराने जमाने का तरीका है, जो आज भी हमारे गाँवों में खूब चलता है। इसमें बीज को हाथ से खेत में छिटक दिया जाता है। ये तरीका तेज और सरल है, क्योंकि इसके लिए कोई मशीन नहीं चाहिए। लेकिन इसमें 6-8 किलो बीज प्रति हेक्टेयर लगते हैं, क्योंकि बीज असमान रूप से फैलते हैं। बुआई के बाद हल्की जुताई या रोलर चलाना पड़ता है, ताकि बीज मिट्टी में दब जाएँ। कुछ किसान कहते हैं कि ये विधि छोटे खेतों के लिए ठीक है, लेकिन फसल कभी घनी तो कभी कम हो सकती है, जिससे पैदावार थोड़ी कम रहती है। इस विधि में निराई-गुड़ाई ज्यादा करनी पड़ती है, लेकिन लागत कम आती है।

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डिबलर और छिट्टूआ, कौन सा बेहतर

डिबलर और छिट्टूआ दोनों विधियाँ सरसों की बुआई के लिए अच्छी हैं, लेकिन इनके अपने फायदे और कमियाँ हैं। डिबलर विधि में बीज कम लगते हैं और फसल एकसार बढ़ती है, जिससे 15-20 प्रतिशत ज्यादा पैदावार मिल सकती है। ये पानी और खाद की बचत करती है, लेकिन मशीन या टूल का खर्च शुरू में ज्यादा हो सकता है। दूसरी तरफ, छिट्टूआ विधि सस्ती और आसान है, क्योंकि इसके लिए सिर्फ हाथों की जरूरत है। लेकिन बीज ज्यादा लगते हैं और फसल असमान हो सकती है, जिससे खरपतवार और देखभाल की मेहनत बढ़ती है।

सरसों की खेती हमारे गाँवों के लिए कमाई का अच्छा जरिया है। दो-तीन बार जुताई से खेत को तैयार करें, और डिबलर या छिट्टूआ में से अपने खेत और बजट के हिसाब से चुनें। डिबलर विधि ज्यादा पैदावार देती है और लंबे समय में फायदेमंद है, जबकि छिट्टूआ सस्ता और तेज है। सही समय पर बुआई और अच्छे बीज चुनकर आप अपनी फसल को लहलहा सकते हैं। अपने नजदीकी कृषि केंद्र से सलाह लें और इस रबी सीजन में सरसों की शानदार फसल उगाएँ।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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