सरकारी आंकड़ों ने खोली पोल, सिर्फ 6 महीनों में 1500 से ज्यादा आत्महत्याएँ, सरकार के आंकड़े चौंकाने वाले

Maharashtra Farmer Suicides: महाराष्ट्र के गाँवों में किसानों की जिंदगी एक जंग बन चुकी है। कर्ज का बोझ, फसल नुकसान और बाजार की मार ने हजारों परिवारों को बर्बाद कर दिया है। राज्य सरकार के ताजा आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से अगस्त 2025 तक 1,183 किसानों ने आत्महत्या की, जो पिछले साल की तुलना में चिंताजनक रूप से बढ़ा है। जनवरी से मार्च के पहले तीन महीनों में ही 767 किसानों की जान गई, यानी हर तीन घंटे में एक किसान ने आत्महत्या की। अप्रैल से सितंबर तक ये संख्या 1,000 से ज्यादा पहुँचने का अनुमान है।

मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों में ये संकट सबसे गहरा है, जहाँ जनवरी से जून तक 520 से ज्यादा मौतें हुईं, जो पिछले साल से 20% ज्यादा है। गाँव के किसान भाई-बहन अब आर्थिक और मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं, और सरकार की नीतियाँ पर्याप्त राहत नहीं दे पा रही हैं।

मराठवाड़ा-विदर्भ में सबसे ज्यादा प्रभाव, जिलेवार आंकड़े

महाराष्ट्र के 36 जिलों में से 14 जिलों (मुख्य रूप से विदर्भ और मराठवाड़ा) में ही 1,546 किसान आत्महत्याएँ दर्ज की गई हैं। मराठवाड़ा में जनवरी-मार्च 2025 में 269 मौतें हुईं, जो 2024 के मुकाबले 32% ज्यादा हैं। बीड जिले में पहले छह महीनों में 120 से ज्यादा मामले सामने आए, जबकि नांदेड़, संभाजीनगर (औरंगाबाद) और विदर्भ के यवतमाल, अमरावती, अकोला, बुलढाणा व वाशिम में भी दर्जनों मौतें हुईं। वाशिम में ही 88 किसानों ने आत्महत्या की। गाँवों में ये आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि परिवारों की टूटी उम्मीदें हैं। विदर्भ में कपास और सोयाबीन की फसलें बर्बाद होने से किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

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सरकारी आंकड़े और मुआवजा, क्या हो रहा है?

राज्य सरकार के पुनर्वास विभाग के अनुसार, 1,546 मामलों में से 517 किसान मुआवजे के पात्र माने गए, जबकि 279 अपात्र घोषित हुए। 488 मामलों की जाँच चल रही है। 516 परिवारों को 1 लाख रुपये का मुआवजा मिल चुका है, लेकिन 44 पात्र मामलों में देरी हो रही है। वाशिम जैसे जिलों में 29 परिवारों को सहायता मिली, लेकिन 15 मामलों की जाँच लंबित है। गाँवों में किसान भाई-बहन मुआवजे की प्रतीक्षा में हैं, लेकिन ये राशि उनके कर्ज के बोझ को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं है। सरकार का दावा है कि जाँच प्रक्रिया पारदर्शी है, लेकिन किसान संगठन इसे नौकरशाही का बहाना मानते हैं।

किसानों की आत्महत्याओं के पीछे के कारण

किसानों की मौतों के पीछे कई गहरे कारण हैं। सबसे बड़ा है कर्ज का जाल – बैंकों और साहूकारों से लिया कर्ज चुकाने में असमर्थता। मौसम की मार ने सोयाबीन, उड़द, मूंग और कपास जैसी फसलों को डुबो दिया, जिससे उत्पादन लागत बढ़ी लेकिन बाजार में दाम गिर गए। विदर्भ और मराठवाड़ा में सिंचाई की कमी (केवल 10-12% क्षेत्र में) ने सूखे और बाढ़ दोनों का सामना कराया। सामाजिक दबाव, मानसिक तनाव और प्रशासनिक उपेक्षा ने किसानों को तोड़ दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि बीटी कॉटन जैसी फसलों की विफलता और वैकल्पिक आय के अभाव ने स्थिति और बिगाड़ी। गाँवों में ये कारण न सिर्फ आर्थिक, बल्कि भावनात्मक संकट पैदा कर रहे हैं।

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किसान संगठनों और विपक्ष का आक्रोश

किसान संगठन और विपक्षी दल सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं। किसान नेता राजू शेट्टी, सदाभाऊ खोत और बच्चू कडू जैसे संगठनों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाने, बिचौलियों को हटाने और कर्ज माफी की मांग की है। शरद पवार की एनसीपी ने नासिक में बड़ा आंदोलन किया, जिसमें डूबे खेतों का सर्वे, मुआवजा और कृषि नीति में बदलाव की मांग रखी गई। विपक्ष का कहना है कि अगर तत्काल राहत न मिली, तो हालात और बिगड़ेंगे। गाँवों में आंदोलन तेज हो रहे हैं, और किसान संगठन चेतावनी दे रहे हैं कि MSP पर खरीद न होने से मौतें बढ़ेंगी।

संकट की चेतावनी, क्या करें सरकार?

किसान संगठनों का कहना है कि अगर सरकार ने तुरंत कदम न उठाए, तो महाराष्ट्र में आत्महत्याओं का सिलसिला और तेज हो जाएगा। उनकी मुख्य मांगें हैं – सभी किसानों का कर्ज माफ करना, बेमौसम बारिश और आपदाओं से प्रभावित फसलों का सर्वे कर मुआवजा देना, और फसलों के बेहतर दाम सुनिश्चित करना। गाँवों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि इरिगेशन कवरेज बढ़ाना, बीमा योजना को मजबूत करना और वैकल्पिक आय स्रोत जैसे जैविक खेती को बढ़ावा देना जरूरी है।

महाराष्ट्र के गाँवों में किसानों की आत्महत्याएँ एक राष्ट्रीय संकट बन चुकी हैं। 2025 में 1,183 मौतें सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की व्यथा हैं। सरकार को MSP, कर्ज माफी और राहत पैकेज पर तुरंत अमल करना होगा। गाँव के किसान भाई-बहन मजबूत रहें, संगठनों से जुड़ें और सरकारी योजनाओं का लाभ लें। ये संकट खत्म करने के लिए सबको एकजुट होना होगा।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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