Mustard Cultivation: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत के साथ ठंडक का मौसम आते ही धान की अगेती किस्मों की कटाई शुरू हो जाती है। ऐसे में किसान खाली खेतों का सदुपयोग सरसों की खेती के लिए कर सकते हैं। भारत की प्रमुख तिलहन फसल सरसों न केवल खाद्य तेल की जरूरत पूरी करती है, बल्कि किसानों को अच्छा मुनाफा भी दिलाती है। रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी शिवशंकर वर्मा बताते हैं कि धान के बाद सरसों की बुवाई से आय दोगुनी हो सकती है। 15-25 डिग्री सेल्सियस तापमान में यह फसल तेजी से बढ़ती है और हर प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है।
सरसों की खेती का सही समय और जलवायु
सरसों की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर तक होता है, जब तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस रहता है। इस समय बुवाई करने से फसल में रोगों का प्रकोप कम होता है और पैदावार अच्छी मिलती है। देरी से बुवाई करने पर फूल झड़ने या कीटों का खतरा बढ़ जाता है। धान की कटाई के तुरंत बाद खेत तैयार करें और बुवाई शुरू कर दें। सरसों को ठंडी जलवायु पसंद है, लेकिन शुरुआती नमी के लिए हल्की सिंचाई जरूरी है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह फसल बड़े पैमाने पर उगाई जाती है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
सरसों की अच्छी पैदावार के लिए दोमट या हल्की काली मिट्टी सबसे उपयुक्त है, जिसमें नमी बनी रहती है। मिट्टी का pH 6.5-8.0 होना चाहिए। खेत की तैयारी में गहरी जुताई महत्वपूर्ण है – पहले कल्टीवेटर से जुताई करें, फिर रोटावेटर से 15-20 सेंटीमीटर गहराई तक। सामान्य हल से 2-3 बार जुताई भी पर्याप्त है। इससे मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है और जड़ें मजबूत बनती हैं। बुवाई से पहले खेत में जैविक खाद मिलाएं और जल निकास की अच्छी व्यवस्था करें ताकि जलभराव न हो।
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उर्वरक और खाद का संतुलित उपयोग
बुवाई से पहले मिट्टी में 60-80 किलो नाइट्रोजन, 40-50 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर मिलाएं। इसके अलावा, सड़ी गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट 100-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें। नाइट्रोजन का आधा भाग बुवाई के समय और बाकी रोपाई के 30-45 दिन बाद दें। पोटाश 40-50 किलो भी जोड़ें। संतुलित उर्वरक से फसल की वृद्धि तेज होती है और उपज 20-25% बढ़ सकती है। जैविक खेती अपनाने वाले किसान नीम खली या अन्य प्राकृतिक खादों का इस्तेमाल करें।
चुनें सही वैरायटी
सरसों की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जो कम समय में ज्यादा उत्पादन देती हैं। पीडीजेड-8, पूसा बोल्ड, पूसा टारक, वरुणा और कृष्णा प्रमुख हैं। पीडीजेड-8 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल उपज देती है। पूसा बोल्ड रोग प्रतिरोधी है और तेल की गुणवत्ता अच्छी रखती है। वरुणा और कृष्णा संकर किस्में हैं, जो 18-20 क्विंटल तक पैदावार देती हैं। बुवाई के लिए 4-5 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। ये किस्में बाजार में अच्छी कीमत दिलाती हैं।
बीज उपचार और बुवाई की विधि
बीज को फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें ताकि रोग मुक्त रहे। बुवाई पंक्ति विधि से करें, जहां पंक्तियों के बीच 20-30 सेंटीमीटर दूरी हो। बीज 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। ड्रिल विधि अपनाने से बीज की बचत होती है और अंकुरण एकसमान रहता है। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें ताकि नमी बनी रहे।
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सिंचाई, खरपतवार और रोग प्रबंधन
सरसों की फसल को शुरुआती अवस्था में 2-3 सिंचाई दें, लेकिन अधिक पानी से बचें क्योंकि इससे जड़ गलन हो सकती है। फूल आने और दाना बनने के समय सिंचाई जरूरी है। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 20-30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। पेंडीमेथालिन जैसे खरपतवारनाशक का सीमित उपयोग करें। रोगों में अल्टरनेरिया ब्लाइट मुख्य है – इसके लिए मैनकोजेब का छिड़काव करें। कीटों जैसे एफिड्स के लिए इमिडाक्लोप्रिड का उपयोग करें।
कटाई और उत्पादन
सरसों 110-140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। कटाई तब करें जब फलियां पीली पड़ने लगें और बीज सख्त हो जाएं। समय पर कटाई से बीज झड़ने का नुकसान नहीं होता। प्रति हेक्टेयर 18-20 क्विंटल औसत उत्पादन मिल सकता है, जो बाजार मूल्य 5000-6000 रुपये प्रति क्विंटल पर 1-1.2 लाख का मुनाफा देता है। कटाई के बाद दाना सुखाकर भंडारण करें।
सरसों से दोगुनी आय
धान के बाद सरसों की खेती किसानों के लिए आर्थिक मजबूती का माध्यम है। उन्नत किस्में, सही समय और वैज्ञानिक तरीके से पैदावार बढ़ाकर मुनाफा कमाएं। स्थानीय कृषि केंद्र से बीज और सलाह लें। इस सीजन में सरसों बोकर अपने खेत को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बनाएं।
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