भारत में गेहूं का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाकर किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा लगातार नई उन्नत किस्में विकसित की जा रही हैं। इस दिशा में भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR), करनाल का योगदान सराहनीय है। संस्थान ने करण शिवानी DBW 327 नामक गेहूं की किस्म विकसित की है, जो उच्च पैदावार के साथ कई घातक रोगों के प्रति मजबूत प्रतिरोधकता प्रदान करती है।
यह किस्म किसानों को प्रति एकड़ रिकॉर्ड 31.6 क्विंटल (औसत) से 35 क्विंटल (अधिकतम) तक उपज दिला रही है, जो पारंपरिक किस्मों से 13-35% बेहतर है। 2021 में केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा अनुमोदित यह किस्म उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के सिंचित खेतों और अगेती बुवाई के लिए आदर्श साबित हो रही है। बदलते मौसम, सूखा और रोगों के दौर में यह किस्म किसानों के लिए एक वरदान है, जो न केवल पैदावार बढ़ाती है बल्कि लागत भी कम रखती है।
IIWBR का अनुसंधान
करण शिवानी DBW 327 का विकास IIWBR के वैज्ञानिकों ने अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP) के तहत किया है। यह किस्म एचडी 2967 और एचडी 3086 जैसी मौजूदा किस्मों से क्रॉस-ब्रीडिंग के माध्यम से तैयार की गई है। परीक्षणों में इसकी औसत उपज 79.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई, जो एचडी 2967 से 35% और एचडी 3086 से 13.6% अधिक है।
अधिकतम उपज 87.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंची। संस्थान के अनुसार, यह किस्म पूरे उत्तर पश्चिमी जोन में पैदावार की स्थिरता दिखाती है और उच्च मात्रा में उर्वरक तथा वृद्धि नियंत्रकों के साथ बेहतर परिणाम देती है। 2021 में रिलीज होने के बाद से किसानों के फीडबैक में इसकी सफलता की कहानियां सामने आ रही हैं, जहां कई ने प्रति एकड़ 32-34 क्विंटल उपज प्राप्त की है।
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उच्च उपज और रोग प्रतिरोधकता
करण शिवानी DBW 327 की सबसे बड़ी ताकत इसकी उच्च पैदावार क्षमता है। अगेती उच्च उपज परीक्षणों में इसकी औसत उपज 79.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रही, जो मौजूदा किस्मों से काफी आगे है। अधिकतम 87.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की क्षमता इसे रिकॉर्ड तोड़ने वाली बनाती है। रोग प्रतिरोधकता के मामले में यह पीला रतुआ के सभी प्रमुख रोगजनकों और भूरे रतुआ के प्रति पूर्णतः प्रतिरोधी है। करनाल बंट रोग के खिलाफ भी यह अन्य किस्मों से बेहतर प्रदर्शन करती है, जहां प्राकृतिक और कृत्रिम स्थितियों में कम ACI वैल्यू दर्ज की गई। जलवायु सहनशीलता के लिहाज से यह उच्च तापमान और सूखे के प्रति अवरोधी है, जो गर्मी बढ़ते मौसम में फसल सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
पौधे की ऊंचाई 98 सेंटीमीटर रहती है, जो लॉजिंग की समस्या को कम करती है। दाने बोल्ड, एम्बर, कठोर और चमकदार होते हैं, जिनका 1000 दानों का वजन 48 ग्राम होता है। पोषक तत्वों की दृष्टि से दानों में लौह की मात्रा 39.4 ppm और जिंक 40.6 ppm है, जो कुपोषण से लड़ने में मदद करता है। चपाती बनाने के लिए स्कोर 7.67, ब्रेड के लिए 6.56/10, और बिस्कुट फैलाव गुणांक 6.7 सेमी है। गीला ग्लूटन 35.5% और सूखा ग्लूटन 11.3% होने से यह चपाती, ब्रेड, बिस्कुट जैसे उत्पादों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। पकने की अवधि औसतन 155 दिन है, जो अगेती बुवाई के लिए परफेक्ट है।
उत्तर पश्चिमी मैदानी जोन का चहेता
करण शिवानी DBW 327 को विशेष रूप से उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के सिंचित खेतों और अगेती बुवाई के लिए अनुशंसित किया गया है। इसमें पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के मैदानी इलाके शामिल हैं। राजस्थान के अधिकांश भाग (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर) में यह सफल है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी डिवीजन को छोड़कर) के किसान इसे पसंद कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिलों, हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले और पांवटा घाटी, तथा उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में इसकी पैदावार स्थिर रहती है। इन क्षेत्रों में बदलते मौसम की चुनौतियों के बीच इसकी रोग प्रतिरोधकता और सूखा सहनशीलता किसानों को भरोसा देती है।
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बुवाई और खेती की वैज्ञानिक विधि
करण शिवानी DBW 327 की बुवाई का सबसे अच्छा समय 20 अक्टूबर से 5 नवंबर तक है, जब तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस रहता है। इससे अंकुरण तेज होता है और फसल स्वस्थ बढ़ती है। बुवाई के लिए 100 किलो बीज प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें। पंक्तियों के बीच 20 सेंटीमीटर दूरी रखें, ताकि हवा और धूप अच्छी मिले। ड्रिल विधि अपनाएं, जिसमें बीज 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। मिट्टी दोमट या बलुई दोमट होनी चाहिए, जिसका pH 6.0-7.5 हो।
खेत की तैयारी में 2-3 बार गहरी जुताई करें और 100-150 क्विंटल सड़ी गोबर खाद प्रति हेक्टेयर मिलाएं। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन 120-150 किलो, फॉस्फोरस 60-80 किलो, पोटाश 40-60 किलो प्रति हेक्टेयर दें। आधा नाइट्रोजन और पूरा फॉस्फोरस-पोटाश बुवाई के समय, बाकी नाइट्रोजन 30 और 60 दिन बाद दें। बीज उपचार कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोनाजोल से करें ताकि रोग मुक्त रहे।
सिंचाई, खरपतवार और रोग प्रबंधन
इस किस्म को 5-6 सिंचाइयां चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें, फिर हर 20-25 दिन के अंतराल पर। फूल आने और दाना बनने के चरण में विशेष सिंचाई दें, लेकिन जलभराव से बचें। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। पेंडीमेथालिन जैसे खरपतवारनाशक का सीमित उपयोग करें। रोग प्रबंधन में यह किस्म स्वाभाविक रूप से मजबूत है, लेकिन रतुआ या करनाल बंट के संकेत मिलने पर मैनकोजेब या प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करें। कीटों जैसे एफिड्स के लिए इमिडाक्लोप्रिड का उपयोग करें। जैविक खेती अपनाने वाले किसान ट्राइकोडर्मा और नीम तेल का सहारा लें।
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कटाई और लाभ
करण शिवानी DBW 327 155 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। कटाई तब करें जब पौधे पीले पड़ने लगें और दाने सख्त हो जाएं। समय पर कटाई से दाने झड़ने का नुकसान टल जाता है। औसत उपज 31.6 क्विंटल प्रति एकड़ और अधिकतम 35.08 क्विंटल प्रति एकड़ तक संभव है। बाजार मूल्य 2200-2500 रुपये प्रति क्विंटल होने पर प्रति एकड़ आय 70,000-87,000 रुपये तक पहुंच सकती है।
लागत 20,000-25,000 रुपये प्रति एकड़ होने पर शुद्ध लाभ 50,000-60,000 रुपये रहता है। जिंक और आयरन युक्त दाने बाजार में प्रीमियम मूल्य दिलाते हैं, जो पोषण-जागरूक उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करते हैं। किसानों के अनुभव से पता चलता है कि यह किस्म सूखे वर्षों में भी 25-28 क्विंटल प्रति एकड़ देती है।
बीज उपलब्धता और संसाधन
करण शिवानी DBW 327 के बीज IIWBR, करनाल या राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) से प्राप्त करें। सरकारी योजनाओं जैसे PMKSY या किसान क्रेडिट कार्ड से सब्सिडी लें। स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से मिट्टी परीक्षण और सलाह लें।
आय बढ़ाने का सशक्त माध्यम
करण शिवानी DBW 327 गेहूं की खेती को नया आयाम दे रही है। उच्च उपज, रोग प्रतिरोध और पोषक गुणवत्ता से यह किस्म उत्तर भारत के किसानों के लिए आशा की किरण है। अगेती बुवाई और वैज्ञानिक तरीकों से रिकॉर्ड पैदावार लें। इस रबी सीजन में इसे अपनाकर अपनी आय दोगुनी करें और खेत को समृद्ध बनाएं।
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