मूली एक ऐसी सब्जी है जो सलाद, सब्जी और अचार के रूप में हर घर में लोकप्रिय है, और इसके स्वास्थ्य लाभ जैसे पाचन सुधार, विटामिन सी और फाइबर की प्रचुरता इसे और महत्वपूर्ण बनाते हैं। भारत के किसान मूली की खेती को कम समय और कम लागत वाली फसल के रूप में पसंद करते हैं, क्योंकि यह 45-60 दिनों में तैयार हो जाती है और बाजार में हमेशा अच्छी कीमत मिलती है।
सितंबर का महीना मूली की बुवाई के लिए आदर्श है, जब ठंडक बढ़ने लगती है और फसल तेजी से बढ़ती है। इस समय उन्नत किस्में जैसे पूसा रश्मि, पूसा हिमानी, पंजाब पसंद, रैपिड रेड व्हाइट और जापानी सफेद की खेती करने से प्रति हेक्टेयर 230-350 क्विंटल तक पैदावार संभव है। इससे किसान लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं, क्योंकि बाजार मूल्य 10-20 रुपये प्रति किलो रहता है।
पूसा रश्मि
पूसा रश्मि मूली की उन्नत किस्म है, जो भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म बुवाई के 55-60 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी जड़ें 30-35 सेंटीमीटर लंबी, सफेद, क्रिस्प और हल्की तीखी स्वाद वाली होती हैं। प्रति हेक्टेयर 320-350 क्विंटल तक उपज देने वाली यह किस्म बाजार में अच्छी मांग रखती है, क्योंकि जड़ें सीधी और रेशा रहित होती हैं। सितंबर में बुवाई करने पर ठंडे मौसम में यह तेजी से बढ़ती है, और रोगों जैसे रूट रॉट या फफूंदी के प्रति मध्यम प्रतिरोध दिखाती है। किसान इसे मुख्य फसल के रूप में या इंटरक्रॉपिंग में उगा सकते हैं, जिससे कुल आय 3-4 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है।
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पूसा हिमानी
पूसा हिमानी भी IARI की एक लोकप्रिय उन्नत किस्म है, जो हल्की तीखी स्वाद वाली मूली देती है। बुवाई के 60 दिनों में तैयार होने वाली इसकी जड़ें 25-30 सेंटीमीटर लंबी, सफेद और मोटी होती हैं। प्रति हेक्टेयर 330-350 क्विंटल उपज के साथ यह किस्म ठंडे मौसम के लिए आदर्श है, और सितंबर बुवाई से नवंबर-दिसंबर में कटाई संभव है। इसकी खासियत है कि जड़ें मजबूत और स्टोरेज में लंबे समय तक ताजा रहती हैं, जिससे बाजार मूल्य 15-20 रुपये प्रति किलो तक मिलता है। यह किस्म फॉर्किंग (जड़ों का कांटा होना) और कीटों जैसे माहू के प्रति सहनशील है, जिससे रासायनिक दवाओं की जरूरत कम पड़ती है।
पंजाब पसंद
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित पंजाब पसंद मूली की उन्नत किस्म है, जो बुवाई के मात्र 45 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी जड़ें लंबी, रेशा रहित, सफेद और क्रिस्प होती हैं, जो सलाद और सब्जी के लिए परफेक्ट हैं। प्रति हेक्टेयर 230-235 क्विंटल उपज के साथ यह किस्म सितंबर बुवाई के लिए उपयुक्त है, और ठंडे मौसम में स्वाद बढ़ जाता है। बाजार में इसकी मांग अधिक रहती है, क्योंकि जड़ें साफ और आकर्षक दिखती हैं। यह किस्म मिट्टी की विभिन्न स्थितियों में अच्छी बढ़ोतरी करती है, और कीटों जैसे कटवर्म के प्रति मध्यम प्रतिरोध रखती है। किसान इसे छोटे खेतों में उगाकर 2-3 लाख रुपये का मुनाफा कमा सकते हैं।
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रैपिड रेड व्हाइट
रैपिड रेड व्हाइट मूली देखने में लाल गाजर जैसी लगती है, लेकिन इसका छिलका लाल और अंदर सफेद होता है, जो इसे बाजार में अलग पहचान देता है। यह सबसे तेजी से पकने वाली किस्म है, जो 40-45 दिनों में तैयार हो जाती है। सितंबर बुवाई से अक्टूबर के अंत तक कटाई संभव है, और प्रति हेक्टेयर 250-280 क्विंटल उपज मिलती है। स्वाद में मीठी और क्रिस्प होने से यह सलाद और स्नैक के लिए लोकप्रिय है। लाल छिलका एंथोसायनिन से भरपूर होता है, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यह किस्म फफूंदी और जड़ सड़न के प्रति सहनशील है, और छोटे किसानों के लिए लाभकारी है।
जापानी सफेद
जापानी सफेद मूली सितंबर बुवाई के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है, जो 45-50 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी जड़ें बेलनाकार, सफेद, मुलायम और हल्की तीखी स्वाद वाली होती हैं, जो अचार और सब्जी के लिए आदर्श हैं। प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल उपज के साथ यह किस्म ठंडे मौसम में अच्छी बढ़ोतरी करती है। बाजार मूल्य 12-18 रुपये प्रति किलो होने से मुनाफा 3-4 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है। यह किस्म माहू और कटवर्म जैसे कीटों के प्रति मध्यम प्रतिरोध रखती है, और स्टोरेज में लंबे समय तक ताजा रहती है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
मूली की खेती के लिए हल्की, भुरभुरी और अच्छी जल निकास वाली बलुई-दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है, जिसमें जैविक पदार्थ की भरपूर मात्रा हो। मिट्टी का pH 6.0-7.0 होना चाहिए, क्योंकि इस रेंज में जड़ों का विकास तेज होता है। खेत की तैयारी में 4-5 बार जुताई करें ताकि मिट्टी ढीली हो जाए। बुवाई से पहले 100-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर खाद मिलाएं। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन 100 किलो, फॉस्फोरस 50 किलो, और पोटाश 50 किलो प्रति हेक्टेयर दें। आधा नाइट्रोजन बुवाई पर, बाकी दो हिस्सों में 20 और 40 दिन बाद। मिट्टी परीक्षण करवाकर सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे बोरॉन (5 किलो/हेक्टेयर) जोड़ें ताकि फॉर्किंग न हो।
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बुवाई और रोपाई की तकनीक
सितंबर का महीना मूली बुवाई के लिए बेस्ट है। बीज दर 8-10 किलो प्रति हेक्टेयर रखें। बीजों को फफूंदनाशक (कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/किलो) से उपचारित करें। बुवाई 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर करें, पंक्ति दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे दूरी 5-7 सेंटीमीटर। मेड़ विधि अपनाएं, जहां मेड़ ऊंचाई 15-20 सेंटीमीटर हो। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें ताकि नमी बनी रहे। अंकुरण 4-5 दिनों में होता है।
सिंचाई और देखभाल
मूली को नियमित सिंचाई चाहिए, लेकिन जलभराव से बचें। बुवाई के बाद 4-5 सिंचाई दें, खासकर जड़ विकास के समय (20-30 दिन)। गर्मी में सप्ताह में 2-3 बार पानी दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। कीटों जैसे माहू के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिली/लीटर) और रोगों जैसे रूट रॉट के लिए ट्राइकोडर्मा (5 किलो/हेक्टेयर) का उपयोग करें।
शुद्ध मुनाफा
45-60 दिनों में जड़ें 25-35 सेंटीमीटर लंबी होने पर कटाई करें। सुबह या शाम को निकालें ताकि ताजगी बनी रहे। उपज 230-350 क्विंटल/हेक्टेयर। कटाई के बाद पत्तियां हटाकर ठंडी, नम जगह पर 7-10 दिन स्टोर करें।प्रति हेक्टेयर लागत 30,000-40,000 रुपये होने पर 300 क्विंटल उपज से 15 रुपये/किलो पर 4.5 लाख आय। शुद्ध लाभ 3-4 लाख रुपये।
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