Kundan Wheat Variety: भारत में गेहूं रबी सीजन की रीढ़ है। लेकिन हर साल लाखों किसान धान जैसी खरीफ फसलों की देरी से कटाई के कारण गेहूं की बुवाई नवंबर के अंत या दिसंबर तक खिसका देते हैं। ऐसे में उपज घटने का खतरा बढ़ जाता है। इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और क्षेत्रीय कृषि विश्वविद्यालयों ने कुंदन गेहूं किस्म विकसित की है।
यह किस्म गर्मी सहनशील, रोग प्रतिरोधी और उच्च उत्पादन क्षमता वाली है। इसकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि इसे देर से बुवाई यानी 20 दिसंबर से 5 जनवरी तक भी बोया जा सकता है। औसतन 45-50 क्विंटल और अनुकूल प्रबंधन में 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देने वाली यह किस्म अब उत्तर भारत के मैदानी इलाकों, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
देर से बुवाई का समाधान
कुंदन की सबसे बड़ी खासियत इसकी गर्मी सहनशीलता है। जब दिसंबर के अंत या जनवरी में तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, तब भी यह किस्म स्थिर उपज देती है। सामान्य किस्में जैसे PBW-343 इस समय दाना भरने की अवस्था में कमजोर पड़ जाती हैं, लेकिन कुंदन का जीनोटाइप इसे गर्मी तनाव से बचाता है। ICAR के अनुसार, इसकी पौध ऊँचाई 85-90 सेंटीमीटर होती है और मजबूत तना इसे गिरने (लॉजिंग) से बचाता है।
यह किस्म रात का तापमान 15-20 डिग्री और दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस रहने पर भी अच्छे से दाना भरती है। यही वजह है कि किसान धान की देर से कटाई के बाद भी बिना नुकसान के गेहूं की बुवाई कर सकते हैं।
ये भी पढ़ें- काले गेंहू की खेती से यहाँ के किसान कमा रहे बम्पर मुनाफा
बाली में ज्यादा दाने
कुंदन की उपज क्षमता इसे और खास बनाती है। एक बाली में औसतन 100-115 दाने आते हैं, जबकि HD-2967 जैसी लोकप्रिय किस्मों में यह संख्या 80-90 तक ही होती है। प्रति बाली 4-5 ग्राम वजन और 1000 दानों का वजन 42-45 ग्राम होता है। दाने मोटे, चमकदार और भारी होने के कारण बाजार में इनकी मांग प्रीमियम रहती है। औसतन उपज 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, लेकिन अगर किसान समय पर सिंचाई, उर्वरक और रोग नियंत्रण पर ध्यान दें तो यह 55-60 क्विंटल तक पहुँच सकती है। उत्तर प्रदेश के मऊ और जौनपुर जिलों में किए गए ट्रायल्स में कुंदन ने देर से बुवाई के बावजूद 12-15% अधिक उपज दी।
रोग प्रतिरोधकता
कुंदन गेहूं किस्म रोग प्रतिरोधकता के मामले में भी मजबूत है। यह भूरा रतुआ, पीला रतुआ और करनाल बंट जैसे प्रमुख रोगों के प्रति मध्यम से उच्च स्तर का प्रतिरोध रखती है। साथ ही, पत्ती झुलसा और स्मट से भी यह अच्छी तरह लड़ती है। ICAR की स्टडी बताती है कि कुंदन ने रतुआ रोग से होने वाले नुकसान को 20% तक कम किया। मजबूत पौध संरचना इसे माहू और तना छेदक जैसे कीटों से भी बचाती है। रासायनिक छिड़काव की जरूरत कम होने से किसानों की लागत में 15-20% की बचत हो जाती है।
बुवाई का समय और तकनीक
कुंदन की बुवाई सामान्य तौर पर 15 नवंबर से 10 दिसंबर तक की जा सकती है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे देर से बुवाई, यानी 20 दिसंबर से 5 जनवरी तक भी बोया जा सकता है। बुवाई ड्रिल विधि से करें और पंक्तियों के बीच 20-22 सेंटीमीटर तथा गहराई 2-3 सेंटीमीटर रखें। बीज दर 100-120 किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। बीज बोने से पहले कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम/किलो) या ट्राइकोडर्मा (5 ग्राम/किलो) से उपचार करना जरूरी है। खेत की 3-4 बार जुताई करें और 80-100 क्विंटल गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाएँ। इसकी खेती के लिए दोमट या हल्की दोमट मिट्टी (pH 6.5-7.5) सबसे उपयुक्त है।
ये भी पढ़ें- पूसा अनमोल HI 8737 गेहूं की किस्म जो कम लागत में दे रही है 78 क्विंटल उपज
खाद और उर्वरक प्रबंधन
कुंदन गेहूं में संतुलित पोषण सबसे अहम है। प्रति हेक्टेयर 120 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 40 किलो पोटाश डालें। नाइट्रोजन को तीन किस्तों में दें: आधा बुवाई के समय, एक-चौथाई 25 दिन बाद और शेष 50 दिन बाद। मिट्टी परीक्षण से जिंक (20 किलो/हेक्टेयर) और सल्फर (10 किलो/हेक्टेयर) की कमी की पूर्ति करें। जैविक खेती करने वाले किसान 5 टन वर्मीकम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर का उपयोग कर सकते हैं। ICAR का कहना है कि संतुलित उर्वरक उपयोग उपज को 10-15% तक बढ़ा सकता है।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
कुंदन गेहूं की फसल को 5-6 बार सिंचाई की जरूरत होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद (CRI स्टेज), दूसरी 45-50 दिन पर (टिलरिंग), तीसरी 70-75 दिन पर (बूटिंग), चौथी 95-100 दिन पर (फ्लावरिंग) और पाँचवीं 120 दिन पर (ग्रेन फिलिंग) करें। ड्रिप सिंचाई प्रणाली से पानी की बचत होती है और रोगों का खतरा भी कम रहता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए 30-35 दिन बाद 2,4-D (0.5 किलो/हेक्टेयर) या आइसोप्रोट्यूरॉन (1 किलो/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना भी जरूरी है।
रोग और कीट प्रबंधन
हालांकि कुंदन में रोग प्रतिरोध अच्छा है, फिर भी सावधानी जरूरी है। झुलसा और करनाल बंट के लिए मैनकोजेब (2 किलो/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। माहू और तना छेदक से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.2 लीटर/हेक्टेयर) या थायोमेथोक्साम (25 ग्राम/हेक्टेयर) कारगर है। जैविक खेती में नीम तेल (5 मिली/लीटर पानी) उपयोगी है।
ये भी पढ़ें- DBW-371 गेहूं किस्म किसानों के लिए वरदान, ज्यादा पैदावार और पोषण से भरपूर
बीज की उपलब्धता
कुंदन गेहूं का प्रमाणित बीज किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, सहकारी समितियों और ICAR-अनुशंसित निजी बीज विक्रेताओं से मिल सकता है। बीज खरीदते समय लेबल और प्रमाणन ज़रूर जाँचें।
औसत मुनाफा
कुंदन गेहूं की खेती में प्रति हेक्टेयर लागत 50,000-60,000 रुपये आती है, जिसमें बीज, उर्वरक, सिंचाई और श्रम शामिल हैं। औसत उपज 45-60 क्विंटल और बाजार मूल्य 2400-2800 रुपये प्रति क्विंटल होने पर किसान प्रति हेक्टेयर 1.08-1.68 लाख रुपये तक की आय प्राप्त कर सकते हैं। शुद्ध मुनाफा 60,000 से 1.1 लाख रुपये तक रहता है। अगर दानों की गुणवत्ता प्रीमियम रही, तो मुनाफा 20% तक बढ़ सकता है।
कुंदन गेहूं किस्म ने किसानों को देर से बुवाई का समाधान दिया है। इसकी गर्मी सहनशीलता, रोग प्रतिरोधकता और उच्च उत्पादन क्षमता इसे खास बनाती है। नवंबर से जनवरी तक की बुवाई और वैज्ञानिक प्रबंधन के साथ यह किस्म किसानों को स्थिर आय और बंपर पैदावार का भरोसा देती है। उत्तर भारत के किसान इस रबी सीजन में कुंदन को अपनाकर खेतों को समृद्धि का केंद्र बना सकते हैं।
ये भी पढ़ें- उत्तर भारत के लिए आई गेहूं की सुपर किस्म, बीमारियों से बचाव और रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन