किसान क्यों दौड़ रहे हैं इन आलू किस्मों की ओर? जानें जल्दी पकने और रोगमुक्त होने का राज़

उत्तर प्रदेश, खासकर फर्रुखाबाद जैसे इलाकों में, आलू की खेती किसानों की कमाई का बड़ा ज़रिया है। सितंबर और अक्टूबर का समय आलू की बुवाई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। इस दौरान मौसम न ज्यादा गर्म होता है और न ज्यादा ठंडा, जो आलू की बढ़त के लिए जरूरी है। लेकिन कई बार किसानों को सही बीज न मिलने की वजह से फसल की पैदावार कम हो जाती है। अच्छी खबर यह है कि अब रोग-मुक्त और जल्दी पकने वाली आलू की किस्में उपलब्ध हैं, जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सकती हैं। अगर सही किस्म और सही तकनीक का इस्तेमाल करें, तो किसान अच्छी फसल के साथ बाजार में बेहतर कीमत पा सकते हैं।

जल्दी तैयार होने वाली किस्में

आलू की कई ऐसी उन्नत किस्में हैं, जो रोगों से बची रहती हैं और कम समय में तैयार हो जाती हैं। इनमें कुफरी उदय, कुफरी कंचन, पुखराज, नीलकंठ, हॉलैंड, चिप्सोना, बादशाह, कुफरी सिंदूरी और कुफरी देवा शामिल हैं। ये किस्में न सिर्फ रोग-रोधी हैं, बल्कि इनकी पैदावार भी शानदार होती है। फर्रुखाबाद में एयरोपोनिक तकनीक से तैयार किए गए बीजों का इस्तेमाल बढ़ रहा है। इस तकनीक से बीज रोग-मुक्त होते हैं और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है। इन किस्मों को बोने से किसान 90-100 दिनों में फसल तैयार कर सकते हैं, जो सामान्य किस्मों से तेज है।

बुवाई से पहले खेत की तैयारी

आलू की खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी है। समतल भूमि चुनें और उसमें जैविक खाद, जैसे गोबर की खाद, मिलाएं। खेत को दो-तीन बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा करें, ताकि आलू के कंद अच्छे से बढ़ सकें। बुवाई के लिए मौसम का तापमान 15 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। इस दौरान नमी और धूप का संतुलन आलू की बढ़त के लिए जरूरी है। बीजों का उपचार करें, ताकि रोगों से बचाव हो और अंकुरण बेहतर हो। पुराने बीजों की बजाय नई, रोग-मुक्त किस्मों के बीज चुनें। प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल बीज की जरूरत पड़ती है, जो मिट्टी और किस्म पर निर्भर करता है।

ये भी पढ़ें- आलू की खेती का नया तकनीक, पैदावार होगी दोगुनी और कमाई भी, देखें डिटेल

खेती का सही तरीका

आलू की बुवाई के बाद समय पर सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी है। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें, फिर 10-12 दिन के अंतर पर पानी दें। खरपतवारों को हटाने के लिए मल्चिंग या हल्की गुड़ाई करें। जैविक खाद और संतुलित उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखता है और पैदावार बढ़ाता है। फसल 90-100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके बाद आलू की खुदाई करें और उन्हें शीतगृह में स्टोर करें या सीधे बाजार में बेचें। इन उन्नत किस्मों से 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिल सकती है, जो सामान्य किस्मों से कहीं ज्यादा है।

किसानों के लिए सलाह

किसानों को सलाह है कि वे स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें और कुफरी उदय, चिप्सोना या पुखराज जैसे उन्नत बीजों की जानकारी लें। सरकार की ओर से बीज और खेती के लिए सब्सिडी भी मिलती है, जिसका फायदा उठाएं। सही समय पर बुवाई, उचित सिंचाई और रोग प्रबंधन से न सिर्फ फसल सुरक्षित रहेगी, बल्कि बाजार में अच्छा भाव भी मिलेगा। आलू की इन नई किस्मों को अपनाकर किसान कम लागत में बंपर मुनाफा कमा सकते हैं।

ये भी पढ़ें- Potato New Varieties: कृषि मंत्रालय ने आलू की 4 नई किस्मों को दी मंजूरी, किसानों को मिलेगी ज्यादा पैदावार, जानिए इनके नाम और खासियतें

Author

  • Shashikant

    नमस्ते, मैं शशिकांत। मैं 2 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे खेती से सम्बंधित सभी विषय में विशेषज्ञता प्राप्‍त है। मैं आपको खेती-किसानी से जुड़ी एकदम सटीक ताजा खबरें बताऊंगा। मेरा उद्देश्य यही है कि मैं आपको 'काम की खबर' दे सकूं। जिससे आप समय के साथ अपडेट रहे, और अपने जीवन में बेहतर कर सके। ताजा खबरों के लिए आप Krishitak.com के साथ जुड़े रहिए।

    View all posts

Leave a Comment