धान की फसल के बाद करें खेसारी की खेती, सिर्फ कुछ हफ्तों में कमाएँ ₹15,000 प्रति एकड़

khesari ki kheti: धान की कटाई के बाद खेत खाली छोड़ना किसानों के लिए नुकसान का सौदा है। लेकिन ‘उतेरा विधि’ से खेसारी की बुवाई करके आप खाली खेत को कमाई का जरिया बना सकते हैं। यह दलहनी फसल न केवल 5-5.5 क्विंटल/एकड़ पैदावार देती है, बल्कि मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाकर अगली फसल के लिए तैयार करती है। सिंचाई-खाद की कम जरूरत, 6,000-7,300 रुपये की लागत और 4,000 रुपये/क्विंटल बाजार भाव से शुद्ध मुनाफा 13,000-15,000 रुपये/एकड़ तक पहुँचता है। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के किसान इसे अपनाकर अतिरिक्त आय कमा रहे हैं।

उतेरा विधि क्या है

उतेरा विधि में धान की कटाई से 15-20 दिन पहले खेसारी के बीज धान के खेत में छिटककर बो दिए जाते हैं। धान की नमी और अवशेष ही खेसारी के लिए पर्याप्त होते हैं। कोई जुताई, सिंचाई या अतिरिक्त खाद की जरूरत नहीं। यह विधि बिहार के पूर्णिया और मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में लोकप्रिय है। बीज मात्रा 30-32 किग्रा/एकड़ रखें। बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच करें, ताकि धान पकने तक अंकुरण हो जाए। भारी और नमी वाली मिट्टी सबसे अच्छी। पानी जमा न होने दें, वरना बीज सड़ सकते हैं। फसल 120-140 दिनों में तैयार हो जाती है।

खाद और उर्वरक

खेसारी मिट्टी की मौजूदा उर्वरता पर निर्भर करती है, लेकिन बेहतर पैदावार के लिए बुवाई के समय नाइट्रोजन 8 किग्रा, फास्फोरस 20 किग्रा, पोटाश 12 किग्रा और सल्फर 8 किग्रा/एकड़ डालें। यह DAP, यूरिया और पोटाश मिश्रण से आसानी से हो जाता है। पौधों पर दो बार यूरिया (2%) का छिड़काव करें – पहला 30 दिन बाद, दूसरा फूल आने पर। इससे दाने मोटे और रोगमुक्त रहते हैं। जैविक खेती के लिए गोबर खाद या वर्मीकम्पोस्ट मिलाएँ। राइजोबियम कल्चर से बीज उपचारित करें, ताकि जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सेशन बढ़े।

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5 क्विंटल/एकड़, 20,000 रुपये की कमाई

खेसारी की पैदावार 5-5.5 क्विंटल/एकड़ तक होती है। बाजार भाव 4,000-4,500 रुपये/क्विंटल रहता है। कुल बिक्री 20,000-22,000 रुपये। लागत बीज (2,000 रुपये), खाद (2,000-2,500 रुपये), मजदूरी (2,000 रुपये) मिलाकर 6,000-7,300 रुपये। शुद्ध मुनाफा 13,000-15,000 रुपये/एकड़। दाने चना दाल की तरह इस्तेमाल होते हैं, और पशु चारे के लिए पत्तियाँ बेची जा सकती हैं। मंडियों में माँग ज्यादा, इसलिए बिक्री आसान। बिहार के किसान इसे ‘दूसरी फसल’ कहते हैं।

खेसारी की खेती के फायदे

खेसारी दलहनी फसल होने से मिट्टी में 40-50 किग्रा नाइट्रोजन प्रति एकड़ छोड़ती है, जो अगली गेहूँ या सरसों फसल के लिए मुफ्त खाद का काम करती है। जलवायु परिवर्तन के दौर में यह कम पानी वाली फसल है। कीट-रोग कम, इसलिए कीटनाशक खर्च शून्य। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि धान-खेसारी चक्र से मिट्टी की उर्वरता 20-25% बढ़ती है। यह टिकाऊ कृषि का मॉडल है।

अभी शुरू करें, मुनाफा दोगुना

धान कटाई से पहले बीज तैयार रखें। प्रमाणित बीज (प्रति 101, पूसा प्रभात) लें। बुवाई के बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए हल्की गुड़ाई करें। फसल कटाई मार्च-अप्रैल में। अनाज अलग कर पत्तियाँ पशु चारे के लिए बेचें। कृषि विभाग से संपर्क कर सब्सिडी (बीज पर 50%) लें। यह फसल आपके खेत को साल भर उत्पादक बनाएगी।

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  • Rahul

    मेरा नाम राहुल है। मैं उत्तर प्रदेश से हूं और संभावना इंस्टीट्यूट से पत्रकारिता में शिक्षा प्राप्त की है। मैं krishitak.com पर लेखक हूं, जहां मैं खेती-किसानी, कृषि योजनाओं पर केंद्रित आर्टिकल लिखता हूं। अपनी रुचि और विशेषज्ञता के साथ, मैं पाठकों को लेटेस्ट और उपयोगी जानकारी प्रदान करने का प्रयास करता हूं।

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