रबी सीजन की ठंडी हवाएँ चल रही हैं और खेतों में गेहूँ बोने का काम जोरों पर है। नवंबर का महीना आते ही किसान भाई खेत जोतने, बीज चुनने और बुआई की तैयारी में जुट जाते हैं। लेकिन कई इलाकों में पानी की कमी बड़ा सिरदर्द बन जाती है। अच्छी खबर ये है कि अब कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी उन्नत किस्में तैयार कर ली हैं जो कम पानी में भी लहलहाती फसल देती हैं। अगर सही समय पर बुआई कर ली, खाद का बैलेंस रखा और सिंचाई का क्रम फॉलो किया तो पैदावार में 20-25% तक का इजाफा हो जाता है। ये तरीका न सिर्फ पानी बचाता है बल्कि किसानों की जेब भी भारी करता है।
कम पानी वाले इलाके के लिए बेस्ट किस्में चुनें
जहाँ सिंचाई की सुविधा सीमित है या बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है, वहाँ सोन्ना 306 और WH 1142 जैसी किस्में कमाल दिखाती हैं। सोन्ना 306 एक देसी किस्म है जो औसतन 25 क्विंटल/हे. देती है लेकिन अच्छी देखभाल में 59.1 क्विंटल/हे. तक पहुँच जाती है। ये किस्म 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है और सूखे को अच्छी तरह झेल लेती है। दूसरी तरफ WH 1142 सिर्फ़ 140 दिन लेती है, इसकी औसत पैदावार 48.1 क्विंटल/हे. रहती है और कभी कभी 62.5 क्विंटल/हे. तक चली जाती है।
इनके अलावा HI 1402, HI 1342 और WH 1635 भी कम पानी में शानदार परफॉर्म करती हैं। इनकी उत्पादन क्षमता 66-71 क्विंटल/हे. तक होती है। कृषि अनुसंधान केंद्रों ने इन्हें खास तौर पर उन इलाकों के लिए विकसित किया है जहाँ पानी की हर बूंद गिनती है। ये किस्में जड़ें गहरी जमाती हैं और नमी को ज्यादा देर तक पकड़ कर रखती हैं, जिससे फसल सूखने से बच जाती है।
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सिंचाई भरपूर है तो हाई यील्ड वाली किस्में बोएँ
अगर खेत में नहर, ट्यूबवेल या अच्छी बारिश की सुविधा है तो WH 1270 सबसे आगे निकलती है। इसकी औसत पैदावार 73.7 क्विंटल/हे. से ज्यादा होती है और अच्छे मौसम में 85.8 क्विंटल/हे. तक पहुँच जाती है। इसके साथ HD 2967, HD 3086, HI 8759 और HD 3386 भी 70-84 क्विंटल/हे. तक देती हैं। इन किस्मों को अगर सही जल प्रबंधन और पोषक तत्वों का बैलेंस मिल जाए तो उत्पादकता में और ज्यादा उछाल आता है। ये बीज उर्वर मिट्टी में अच्छे से फैलते हैं और दाने भारी भरते हैं।
बुआई का सही समय हाथ से न जाने दें
अगेती बुआई या कम पानी वाली फसलों के लिए नवंबर का पहला हफ्ता से आखिरी हफ्ता तक का समय सबसे उचित रहता है। इस दौरान मिट्टी में नमी रहती है और पौधा मजबूत निकलता है। सामान्य बुआई के लिए नवंबर का तीसरा हफ्ता तक काम पूरा कर लें, इससे ज्यादा देर करने पर ठंड बढ़ने से अंकुरण प्रभावित होता है। बीज की मात्रा 40-50 किलोग्राम/हे. रखें। बीज को 4-5 सेंटीमीटर गहराई में ही बोएँ, ज्यादा गहरा डालने से पौधा कमजोर रहता है और कम गहरा करने पर पक्षी खा जाते हैं।
खाद का हिसाब मिट्टी की जाँच से ही करें
खाद डालने से पहले मिट्टी की जाँच करवाना सबसे जरूरी कदम है। बिना जाँच के अंधाधुंध खाद डालने से पैसा बर्बाद होता है और फसल को नुकसान पहुँचता है। कम सिंचाई वाले खेतों में 36:24:12 NPK मिश्रण प्रति हेक्टेयर दें। जहाँ सिंचाई अच्छी है वहाँ 60:24:12 NPK मिश्रण के साथ 50 किलोग्राम सल्फर और 150 किलोग्राम जिप्सम भी मिलाएँ। अगर मिट्टी में जस्ते की कमी दिख रही है तो 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट/हे. जरूर डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय दें और बाकी दो बराबर हिस्सों में पहली और दूसरी सिंचाई के साथ मिलाएँ।
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सिंचाई का क्रम बिल्कुल सही रखें
पहली सिंचाई 20-22 दिन बाद करें जब क्राउन रूट बनने की स्टेज शुरू हो। दूसरी सिंचाई कल्ले निकलते समय, तीसरी बाल आने की अवस्था में, चौथी दूधिया स्टेज में और पाँचवीं दाना भरने के वक्त दें। इस क्रम से पानी देने पर पौधे की हर स्टेज में जरूरत पूरी होती है और फसल अच्छी बढ़ती है। ज्यादा पानी एक साथ देने से जड़ें सड़ जाती हैं और कम पानी से दाने हल्के रह जाते हैं।
वैज्ञानिकों की सलाह पर अमल करें
कृषि वैज्ञानिकों के लंबे परीक्षणों से साफ हो गया है कि सही किस्म का चयन, मिट्टी की जाँच आधारित खाद प्रबंधन और समय पर सिंचाई से गेहूँ की पैदावार में 20-25% तक की बढ़ोतरी हो जाती है। कृषि विभाग इन उन्नत बीजों को उपलब्ध करा रहा है और गाँव गाँव में प्रशिक्षण शिविर भी लगा रहा है। किसान भाई इन सुविधाओं का फायदा उठाएँ और नई तकनीकों को अपनाएँ।
इस बार गेहूँ की बुआई में ये सारी बातें ध्यान में रखें। पानी कम लगेगा, खर्चा घटेगा और गोदाम दानों से लबालब भर जाएगा।
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