ठंड का मौसम शुरू होते ही खेतों में सब्जी की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। पाला पड़ता है तो रात भर में फसल बर्बाद। ठंडी हवा चलती है तो पौधे सूखने लगते हैं। कभी अचानक बारिश हो जाए तो पानी भर जाता है। लेकिन अब एक छोटी सी तकनीक ने सारी चिंता दूर कर दी है। नाम है लो टनल। भाकृअनुप यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इसे सालों पहले तैयार किया था। आज यह छोटे-बड़े हर किसान की पसंद बन गई है। न सिर्फ फसल बचती है बल्कि तीस से चालीस दिन पहले तैयार होकर बाजार में ऊंचे दाम पर बिकती है। लागत इतनी कम कि पहली फसल से ही सारा खर्च निकल आता है।
लो टनल असल में क्या होता है
सब्जी की कतारें लगाने के बाद हर कतार के ऊपर लोहे की पतली छड़ें गाड़ी जाती हैं। ये छड़ें आपस में तार से बंधी होती हैं ताकि हवा से न हिलें। फिर ऊपर से एक पारदर्शी प्लास्टिक की शीट चढ़ा दी जाती है। यह शीट लचीली होती है और पूरी कतार को ढक लेती है। किनारों पर मिट्टी दबाकर इसे अच्छे से बंद कर दिया जाता है। बस यही है लो टनल। यह पौधों के लिए एक छोटा सा गर्म घर बन जाता है। दिन में धूप अंदर जाती है और गर्मी बनाती है। रात में बाहर की ठंड अंदर नहीं आ पाती।
ठंड, पाला और बारिश से कैसे बचाता है
सर्दियों में रात का तापमान 10 डिग्री से नीचे चला जाता है। बाहर पाला पड़ता है तो पौधों की पत्तियां जम जाती हैं। लेकिन लो टनल के अंदर तापमान 5 से 7 डिग्री तक ज्यादा रहता है। पाला बाहर ही रह जाता है। ठंडी हवा शीट को पार नहीं कर पाती। अगर बारिश हो जाए तो पानी शीट पर से बह जाता है, अंदर नहीं घुसता। इस तरह पौधे पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं। नमी भी सही रहती है क्योंकि शीट के नीचे हवा बंद रहती है। पौधे को न ठंड लगती है, न ज्यादा गीला होता है।
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फसल कितनी जल्दी तैयार हो जाती है
सामान्य तरीके से सब्जी जनवरी-फरवरी में तैयार होती है। लेकिन लो टनल लगाने से दिसंबर के आखिर या नवंबर के अंत तक ही फसल कटने लगती है। यानी 30-40 दिन पहले। जब बाजार में सब्जी कम होती है तब ये पहुंचती है। खीरा 2 रुपये की जगह 50 रुपये किलो बिकता है। टमाटर 30 की जगह 60 रुपये तक जाता है। ऑफ सीजन में मांग ज्यादा होती है, सप्लाई कम। इसलिए दाम अपने आप ऊंचे हो जाते हैं। कुल उत्पादन भी दस से बीस फीसदी तक बढ़ जाता है क्योंकि पौधे स्वस्थ रहते हैं।
बनाने में कितना खर्च आता है
लो टनल की सबसे बड़ी खासियत है इसकी कम लागत। 1 एकड़ के लिए जस्ते वाली लोहे की छड़ें दस से बारह हजार रुपये में आ जाती हैं। ये छड़ें 1.5 मीटर से 2.5 मीटर लंबी होती हैं। प्लास्टिक शीट 100 माइक्रॉन मोटी और आईआर ग्रेड की ली जाती है। 1 किलो शीट 100 रुपये के आसपास पड़ती है। पूरी एकड़ के लिए 4 से 5 हजार का प्लास्टिक लगता है। ये सामान दो से तीन साल तक चलता है। यानी हर साल का खर्च सिर्फ 2-3 हजार रुपये। अगर ड्रिप सिंचाई पहले से लगी हो तो पानी का खर्च भी बचता है। कुल मिलाकर पहली फसल से ही सारा पैसा वसूल हो जाता है।
लो टनल लगाने का पूरा तरीका
सबसे पहले खेत को अच्छे से जोत लें और समतल कर लें। फिर सब्जी की कतारें बनाएं। पौधों के बीच 50 सेंटीमीटर दूरी रखें। कतारों के बीच डेढ़ से सवा मीटर का फासला छोड़ें। अब हर कतार के दोनों तरफ लोहे की छड़ें गाड़ें। छड़ें जमीन में आधा फीट अंदर जाएं ताकि मजबूत रहें। ऊपर का हिस्सा 40-60 सेंटीमीटर ऊंचा रखें। छड़ों को आपस में तार से बांध लें।
अब प्लास्टिक शीट को ऊपर से डालें। शीट कतार से थोड़ी चौड़ी होनी चाहिए ताकि किनारे दबाने को जगह रहे। किनारों पर मिट्टी या पत्थर से अच्छे से दबा दें। बीच-बीच में हवा के लिए छोटे छेद छोड़ दें वरना अंदर घुटन हो सकती है। ड्रिप पाइप पहले से बिछी हो तो पानी सीधे जड़ों तक पहुंचता है।
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कौन सी सब्जियां इसमें सबसे अच्छी चलती हैं
लो टनल गर्मी पसंद करने वाली सब्जियों के लिए बनाई गई है। खीरा, तुरई, करेला, लौकी, टमाटर, शिमला मिर्च और बैंगन इसमें बहुत अच्छे बढ़ते हैं। ये सब्जियां ठंड सहन नहीं कर पातीं लेकिन टनल में गर्मी मिलने से तेजी से बढ़ती हैं। ठंडी सब्जियां जैसे पत्ता गोभी, फूल गोभी और ब्रोकोली भी इसमें लगाई जा सकती हैं। इनके पौधे मजबूत होते हैं और टनल की सुरक्षा में जल्दी तैयार हो जाते हैं। बीज हमेशा अच्छी कंपनी का लें। रोपाई के समय पौधे स्वस्थ और हरे होने चाहिए। कमजोर पौधा टनल में भी नहीं चलता।
कुल मिलाकर फायदा क्या है
सबसे बड़ा फायदा है फसल का जल्दी तैयार होना। डेढ़ महीने पहले बाजार पहुंचने से दाम दोगुने मिलते हैं। दूसरा फायदा है सुरक्षा। पाला, ठंडी हवा, बारिश कुछ नहीं बिगाड़ पाता। तीसरा फायदा है उत्पादन में बढ़ोतरी। पौधे बीमारी से बचते हैं, पत्तियां हरी रहती हैं, फल ज्यादा लगते हैं। चौथा फायदा है कम लागत। एक बार सामान खरीद लें तो तीन साल तक खर्च नहीं। पांचवां फायदा है आसानी। कोई मजदूर की जरूरत नहीं, किसान खुद लगा लेता है। कुल मिलाकर एक सीजन में ही समझ आ जाता है कि यह तकनीक क्यों हर किसान अपनाना चाहता है।
कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें
प्लास्टिक शीट हर साल चेक करें। अगर फट जाए तो बदल लें। बारिश ज्यादा हो तो किनारे से पानी अंदर न जाए, इसके लिए छोटी नाली बना लें। कीड़े लगें तो नीम का तेल या देसी तरीके इस्तेमाल करें। रासायनिक दवा कम से कम डालें। जैसे ही मौसम गर्म होने लगे, मार्च के शुरू में शीट हटा दें वरना पौधे जल जाएंगे। हवा के लिए रोज सुबह थोड़ी देर शीट उठाएं ताकि ताजी हवा अंदर जाए।
ठंड का मौसम अब डराने वाला नहीं रहा। लो टनल ने सब्जी की खेती को आसान, सस्ता और फायदेमंद बना दिया है। एक बार सही तरीके से लगा लें तो हर साल यही तरीका अपनाएंगे। खेत में छोटी सी मेहनत, बाजार में बड़ा मुनाफा।
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