इस साल खेती के मैदान पर खुशहाली के संकेत तो दिखे, लेकिन बाजार की हकीकत ने सबके माथे पर बल डाल दिए। मानसून ने भरपूर पानी बरसाया, मिट्टी हरी-भरी रही, और रबी की बुवाई ने जोर पकड़ लिया। फिर भी, खरीफ की फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दामों पर बिकीं। इससे किसान भाइयों की चिंता बढ़ गई है। आशंका ये है कि ये समस्या रबी सीजन तक न फैल जाए, जहां फसल तो बंपर होने वाली है। चलिए, इसकी पूरी तस्वीर देखते हैं, ताकि आप सही फैसला ले सकें।
रबी बुवाई ने तोड़े रिकॉर्ड
सर्दी की ठंडक ने अभी-अभी दस्तक दी है, और ये किसानों के लिए वरदान साबित हो रही। मानसून के जाते ही आसमान नीला हो गया, हल्की फुहारें पड़ीं, और खेतों में नमी बनी रही। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 7 नवंबर तक पूरे देश में 130 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर रबी फसलों की बुआई पूरी हो चुकी। ये संख्या पिछले साल से 27 फीसदी ऊपर है। खासकर गेहूं, जौ और सरसों जैसी फसलें पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के खेतों में लहलहा रही हैं।
कारण साफ है जलाशयों का जलस्तर ऊंचा है। 161 बड़े बांधों में कुल क्षमता का 90 फीसदी से ज्यादा पानी जमा है, जो दस साल के औसत से 11 फीसदी बेहतर स्थिति है। भूजल भी स्थिर है, तो सिंचाई की कोई दिक्कत नहीं।
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बाजार की नरमी ने मचाई खलबली
अब बात आती है असल मुश्किल की। खरीफ का सीजन खत्म होते ही मंडियों में हाहाकार मच गया। मुख्य फसलें जैसे मूंग, उड़द, मूंगफली और सोयाबीन सब MSP से नीचे लुढ़क गईं। 5 नवंबर के सरकारी आंकड़ों में मूंग के दाम 20 फीसदी तक गिरे दिखे। बाकी फसलें भी 12 फीसदी से ज्यादा सस्ती बिकीं। एक किसान ने अपनी व्यथा सुनाई, “मेहनत तो पूरी की, लेकिन पैसे इतने कम कि अगले महीने का गुजारा मुश्किल।”
रबी की तरफ मुड़ें तो गेहूं का भाव अभी 2,775 से 2,800 रुपये क्विंटल के दायरे में अटका है। MSP से तो ज्यादा, लेकिन कुछ हफ्ते पहले की तुलना में काफी कम। विशेषज्ञों का मानना है कि अच्छी पैदावार के कारण बाजार भर गया। ऊपर से विदेश से खाद्य तेलों का ढेर सारा आयात हो रहा, और कुछ फसलों पर आयात शुल्क शून्य है। नतीजा घरेलू दाम दबाव में। पंजाब की एक मंडी में सोयाबीन 3,500 से घटकर 3,000 रुपये के नीचे आ गया। ऐसे में किसान सोच रहे हैं कि रबी की कटाई के वक्त ये सिलसिला थमेगा या नहीं।
खरीफ की मार रबी तक न पहुंचे, यही उम्मीद
खरीफ कटाई और रबी बुआई के बीच तो बस कुछ दिन का अंतर होता है। अगर कमाई न हुई, तो नई फसल के लिए बीज, खाद या मजदूरी का इंतजाम कैसे? एक हालिया रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि बाजार की ये कमजोरी रबी को भी चपेट में ले सकती है। अच्छी फसल होकर भी नुकसान हो सकता है।
लेकिन निराशा की बात नहीं। सरकार ने हालात संभालने के लिए हाथ बढ़ाया है। 31 अक्टूबर को पीली मटर पर 30 फीसदी आयात शुल्क लगा दिया गया। साथ ही, दलहन और तिलहन की खरीद के लिए 1.15 लाख करोड़ रुपये की योजना पास हुई। इनसे बाजार में थोड़ी हलचल आ सकती है। किसान भाइयों, सलाह यही है कि मंडी के भाव पर नजर रखें, सहकारी समितियों से जुड़ें, और जहां हो सके फसल को थोड़ा स्टोर करने का इरादा बनाएं।
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