रबी मौसम की शुरुआत हो चुकी है और नवंबर गेहूं की बुवाई के लिए सबसे सही समय है। धान की कटाई के बाद खेतों को जोतकर तैयार करने वाले किसान भाई अब ऐसी किस्में चुन रहे हैं जो कम समय में ज्यादा पैदावार दें। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और राज्य कृषि विभागों की सिफारिशों के मुताबिक, HD 3388, DBW-327 और PBW-826 जैसी तीन किस्में इस सीजन के लिए बेस्ट साबित हो रही हैं।
ये किस्में न सिर्फ 130-145 दिनों में तैयार हो जाती हैं, बल्कि रोगों और बदलते मौसम से भी लड़ती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इनका इस्तेमाल करने से प्रति एकड़ उपज 20-30 क्विंटल तक पहुंच सकती है, जिससे बाजार में अच्छी कीमत मिलने पर किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में ये किस्में खासतौर पर फायदेमंद हैं, जहां ठंड और सूखे का असर आम है।
HD 3388: कम समय में ज्यादा उपज
HD 3388 को ICAR-IARI ने विकसित किया है, जो मात्र 125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा जैसे क्षेत्रों के लिए आदर्श है, जहां गर्मी ज्यादा रहती है। अच्छी सिंचाई वाली मिट्टी में प्रति हेक्टेयर 52 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है, जो एक एकड़ में 20-22 क्विंटल के बराबर है। इसके दाने चमकीले और मोटे होते हैं, जो बाजार में ऊंची कीमत लाते हैं।
रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होने से कंडवा या पत्ती झुलसा जैसे रोगों का खतरा कम रहता है, और कीटनाशकों का खर्च आधा बच जाता है। किसान भाई अगर समय पर बुवाई करें तो होली से पहले फसल काटकर बाजार में बेच सकते हैं, जिससे अतिरिक्त कमाई का मौका मिलेगा।
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DBW-327: मौसम की मार झेलने वाली
DBW-327 एक ऐसी किस्म है जो कम पानी और कठोर मौसम में भी डटी रहती है। यह 130-140 दिनों में पक जाती है और प्रति एकड़ 25-30 क्विंटल उपज देती है। हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए यह बेस्ट चॉइस है, क्योंकि इसके पौधे मजबूत होते हैं और हवा या बारिश से नहीं गिरते।
ICAR के अध्ययन बताते हैं कि यह किस्म सूखे या ज्यादा ठंड में भी 15-20 प्रतिशत ज्यादा पैदावार देती है। दाने सफेद और चमकदार होने से आटे की गुणवत्ता ऊंची रहती है, जो बाजार में 200-250 रुपये प्रति क्विंटल की प्रीमियम कीमत दिला सकती है। रोगों जैसे करनाल बंट या धब्बा रोग से यह अच्छी तरह लड़ती है, इसलिए जैविक खेती करने वालों के लिए भी उपयुक्त है।
PBW-826: रोग मुक्त फसल
PBW-826 को 140-145 दिनों में कटाई के लिए तैयार होने वाली यह किस्म पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के सूखाग्रस्त इलाकों में खूब उगाई जा रही है। प्रति एकड़ 22-25 क्विंटल पैदावार के साथ इसके दाने सफेद और चमकीले होते हैं, जो उपभोक्ताओं को भाते हैं। कृषि विभाग के अनुसार, इसकी पत्तियां और जड़ें मजबूत रहती हैं, इसलिए कीट-रोगों का असर न के बराबर पड़ता है। कम सिंचाई की जरूरत होने से पानी की बचत होती है, जो ग्राउंडवाटर लेवल गिरते इलाकों के लिए राहत है। बाजार में इसकी मांग ज्यादा रहती है, क्योंकि इससे बनी रोटी स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। किसान भाई अगर नीम आधारित स्प्रे का इस्तेमाल करें तो फसल पूरी तरह सुरक्षित रहेगी।
बुवाई के आसान टिप्स
इन किस्मों की सफल खेती के लिए नवंबर के पहले पखवाड़े में बुवाई करें। खेत को अच्छी तरह जोतकर गोबर खाद मिलाएं, बीज दर 40-50 किलो प्रति हेक्टेयर रखें। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें और फूल आने पर दूसरी दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए जड़ से उखाड़ें या जैविक तरीके अपनाएं। ICAR की सलाह है कि बीज उपचार जरूर करें, ताकि शुरुआती रोग न लगें। इन छोटे कदमों से लागत 20-30 प्रतिशत कम हो जाएगी और मुनाफा बढ़ेगा।
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