गर्मी का मौसम शुरू हो गया है, और पानी की कमी हर किसान की चिंता बढ़ाती है। लेकिन चिंता छोड़िए, क्योंकि गर्मियों में कम पानी वाली फसलें आपके खेत को हरा-भरा और जेब को भरा रख सकती हैं। फरवरी खत्म होते ही कम पानी की खेती की तैयारी का वक्त है। बाजरा, ज्वार, मूंग, तिल और अरहर जैसी गर्मी की फसलें न सिर्फ कम पानी में उगती हैं, बल्कि अच्छा मुनाफा भी देती हैं। ये फसलें सूखे को मात देती हैं और मेहनत का पूरा दाम दिलाती हैं। आइए, इन्हें देसी अंदाज में समझें और खेती को आसान बनाएँ।
बाजरा: सूखे का सच्चा साथी
गर्मियों में कम पानी वाली फसलें में बाजरा सबसे आगे है। इसे बोने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं, और ये गर्मी की तपिश को आसानी से झेल लेता है। मार्च-अप्रैल में बुवाई करें, और 60-70 दिन में फसल तैयार। प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल तक पैदावार मिलती है, और बाजार में 20-25 रुपये प्रति किलो का भाव मिल जाता है। बाजरे की खेती मिट्टी को ताकत देती है और चारे के लिए भी काम आती है। गाँव में लोग कहते हैं, “बाजरा बो दो, सूखा हँसते-हँसते भागेगा।” ये मुनाफे वाली फसल हर छोटे किसान के लिए वरदान है।
ज्वार: कम पानी, ज्यादा फायदा
ज्वार भी कम पानी की खेती का शानदार नमूना है। ये अनाज और चारा दोनों देता है, और गर्मी में सिर्फ 2-3 सिंचाई में तैयार हो जाता है। मार्च से जून तक बो सकते हैं, और 90-100 दिन में कटाई। प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल तक उपज मिलती है, और बाजार में 25-30 रुपये प्रति किलो का रेट। ज्वार की जड़ें मिट्टी को मजबूत करती हैं, और पशुओं के लिए हरा चारा भी देती हैं। गर्मी की फसलें में ज्वार सूखे के दिनों में किसानों का सहारा बनता है। इसे आजमाएँ, और देखें कैसे खेत लहलहाता है।
मूंग: छोटी फसल, बड़ी कमाई
गर्मियों में कम पानी वाली फसलें में मूंग छोटा पौधा है, लेकिन कमाई में बड़ा। इसे 60-65 दिन में काट सकते हैं, और पानी की जरूरत सिर्फ 2-3 बार। मार्च-अप्रैल में बोई जाने वाली मूंग प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल तक देती है। बाजार में इसका भाव 70-80 रुपये प्रति किलो तक जाता है। मूंग की खेती मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाती है, जो अगली फसल के लिए फायदेमंद है। गाँव में इसे “हरा सोना” कहते हैं, क्योंकि ये मुनाफे वाली फसल है और खाने में भी पौष्टिक।
तिल: सूखे में तेल की खान
तिल एक ऐसी गर्मी की फसल है, जो पानी की कमी में भी तेल और मुनाफा देती है। मार्च से मई तक बोई जाती है, और 90-100 दिन में तैयार। प्रति हेक्टेयर 5-7 क्विंटल तक पैदावार होती है, और बाजार में 100-120 रुपये प्रति किलो का दाम। तिल की खेती के लिए हल्की सिंचाई काफी है, और ये गर्मी को बखूबी झेलता है। कम पानी की खेती में ये छोटे किसानों के लिए बड़ा फायदा लाती है। तिल का तेल और बीज दोनों बिकते हैं, तो कमाई के दो रास्ते खुलते हैं।
अरहर: गर्मी में दाल का ठिकाना
अरहर (तुअर) भी गर्मियों में कम पानी वाली फसलें में शुमार है। इसे मार्च-अप्रैल में बोया जा सकता है, और 120-150 दिन में फसल तैयार। प्रति हेक्टेयर 10-15 क्विंटल तक उपज मिलती है, और बाजार में 80-100 रुपये प्रति किलो का भाव। अरहर की गहरी जड़ें पानी की गहराई से खींचती हैं, इसलिए इसे बार-बार सिंचाई की जरूरत नहीं। मुनाफे वाली फसल के साथ ये मिट्टी को भी पोषण देती है। गाँव में इसे “दाल का राजा” कहते हैं।
खेती का तरीका: कम पानी, बंपर फसल
कम पानी की खेती के लिए खेत की तैयारी जरूरी है। गर्मियों से पहले गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी हवादार हो। गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट डालें, इससे पानी की जरूरत कम होगी। बीज बोने से पहले हल्की सिंचाई करें, और फसल बढ़ने पर 15-20 दिन में एक बार पानी दें। ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल करें, तो पानी की और बचत होगी। गर्मी की फसलें उगाने में धूप और गर्मी का फायदा उठाएँ, लेकिन पौधों को सूखने से बचाएँ। ये तरीका मेहनत को फल देगा।
सूखे में भी हरा खेत
कई किसानों से बात करके पता चला कि गर्मियों में कम पानी वाली फसलें सूखे इलाकों में भी कमाल करती हैं। एक भाई ने बताया कि उसने मूंग और तिल बोया, और कम पानी में अच्छी कमाई हुई। बाजरे की खेती करने वाले कहते हैं कि पशुओं को चारा भी मिला और बिक्री से पैसा भी। ये फसलें मेहनत को बर्बाद नहीं होने देतीं। मुनाफे वाली फसलें चुनें, और गर्मी को अपने फायदे में बदलें।
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