Napier Ghas ke fayde: नेपियर घास पशुपालकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यह पोषक तत्वों से भरपूर चारा दुधारू पशुओं का दूध बढ़ाता है और उनकी सेहत सुधारता है। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में दीनदयाल शोध संस्थान ने इसकी खेती को बढ़ावा देकर किसानों को नई राह दिखाई है। एक बार लगाने पर यह घास 7-8 साल तक चलती है, और इस पर रोग-कीट कम लगते हैं। कम पानी और देखभाल में उगने वाली यह घास पशुपालकों की लागत घटाती है और मुनाफा बढ़ाती है। भारत के हर कोने में इसे उगाकर दूध उत्पादन और आय बढ़ाई जा सकती है।
नेपियर घास के फायदे- Napier Ghas ke fayde
नेपियर घास में प्रोटीन, फाइबर, और ऊर्जा भरपूर होती है, जो गाय-भैंस के दूध की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाती है। यह चारा पशुओं को तंदुरुस्त रखता है और उनकी बीमारियाँ कम करता है। एक बार खेत में लगाने के बाद यह सालों तक फसल देती है, जिससे बार-बार बुवाई का खर्च बचता है। यह हर मौसम में उगती है और कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है। सूखे इलाकों में लाल नेपियर जैसी किस्में खासतौर पर फायदेमंद हैं। बची हुई घास से साइलाज या जैविक खाद बनाकर अतिरिक्त कमाई भी की जा सकती है।
खेती का सही समय और तरीका
नेपियर घास की बुवाई साल के किसी भी मौसम में हो सकती है, लेकिन बरसात शुरू होने से पहले (जून-जुलाई) या सर्दियों से पहले (सितंबर-अक्टूबर) का समय बेस्ट है। खेत की गहरी जुताई करें और गोबर की खाद या वर्मीकंपोस्ट डालकर मिट्टी तैयार करें। खरपतवार हटाकर खेत को समतल करें। बुवाई के लिए धनलक्ष्मी, सुपर नेपियर, या लाल नेपियर जैसी उन्नत किस्मों की कटिंग्स चुनें। रो से रो की दूरी 90 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें। कटिंग्स को 45 डिग्री के कोण पर मिट्टी में लगाएँ और तुरंत हल्की सिंचाई करें।
देखभाल और सिंचाई का देसी नुस्खा
नेपियर घास को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। बुवाई के बाद पहली सिंचाई तुरंत करें, फिर हर 7-10 दिन में पानी दें। बारिश के मौसम में अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं। खरपतवार से बचाने के लिए बुवाई के 20-30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। हर कटाई के बाद गोबर की खाद या जीवामृत डालें, ताकि घास की ताकत बनी रहे। कीटों से बचाव के लिए नीम का तेल पानी में मिलाकर छिड़कें। मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए सूखी घास से मल्चिंग करें। यह देसी तरीका लागत घटाता है और पैदावार बढ़ाता है।
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कटाई और साइलाज का कमाल
नेपियर घास की पहली कटाई बुवाई के 70-80 दिन बाद करें, जब यह 6-7 फीट लंबी हो जाए। कटाई जड़ से 10-15 सेंटीमीटर ऊपर करें, ताकि नई घास जल्दी उगे। इसके बाद हर 40-45 दिन में कटाई हो सकती है। एक हेक्टेयर से सालाना 200-300 टन चारा मिलता है, जो 50-100 पशुओं के लिए काफी है। बची हुई घास से साइलाज बनाएँ, जो बारिश या सूखे में पशुओं के लिए पौष्टिक चारा है। साइलाज बनाने के लिए घास को छोटे टुकड़ों में काटकर प्लास्टिक ड्रम में दबाएँ और 30-40 दिन तक ढककर रखें।
मुनाफे का हिसाब
नेपियर घास की खेती में शुरुआती लागत 20,000-30,000 रुपये प्रति हेक्टेयर आती है, जिसमें कटिंग्स, खाद, और जुताई शामिल हैं। एक बार लगाने पर यह 7-8 साल तक चलती है, जिससे बार-बार खर्च नहीं होता। अगर आप इसे बेचते हैं, तो 2-3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से सालाना 4-6 लाख रुपये की कमाई हो सकती है। दूध उत्पादन में 20-30% की बढ़ोतरी से डेयरी किसानों की आय भी बढ़ती है। बचे हुए चारे से जैविक खाद बनाकर 10,000-20,000 रुपये अतिरिक्त कमाए जा सकते हैं।
पर्यावरण और मिट्टी के लिए फायदेमंद- Napier Ghas ke fayde
नेपियर घास सिर्फ पशुओं के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अच्छी है। यह मिट्टी के कटाव को रोकती है और उसकी उर्वरता बढ़ाती है। इसकी जड़ें मिट्टी को बाँधकर रखती हैं, जिससे बाढ़ या बारिश में नुकसान कम होता है। जैविक खेती में इसका बायोमास खाद के रूप में काम आता है। कम पानी और देखभाल में उगने के कारण यह सूखे इलाकों में भी पशुपालकों की जिंदगी आसान बनाती है।
गोंडा के एक पशुपालक ने 2 हेक्टेयर में नेपियर घास लगाकर अपने 40 गायों का दूध उत्पादन 25% बढ़ाया। उसने साइलाज बनाकर साल भर चारा स्टोर किया और 3 लाख रुपये की अतिरिक्त कमाई की। ऐसे कई किसान हैं, जो इस घास की खेती से डेयरी व्यवसाय को फायदेमंद बना रहे हैं। दीनदयाल शोध संस्थान के प्रशिक्षण शिविरों ने हजारों किसानों को इसके फायदे सिखाए हैं।
नेपियर घास की खेती पशुपालकों के लिए दूध और मुनाफे का खजाना है। कम लागत, कम पानी, और सालों तक चलने वाली यह फसल डेयरी व्यवसाय को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकती है। सही बुवाई, देसी देखभाल, और नियमित कटाई से आप इसे आसानी से उगा सकते हैं। नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या दीनदयाल शोध संस्थान से सलाह लें और नेपियर घास की खेती शुरू करें। मेहनत और सही तरीके से आपकी जेब भरेगी और पशु तंदुरुस्त रहेंगे!
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