Green Fodder Moringa: मौसम के बदलाव ने पशुपालकों की मुश्किल बढ़ा दी है। गाय-भैंस और भेड़-बकरी के लिए साल भर हरा चारा जुटाना आसान नहीं रहा। चारा महंगा होने से दूध की कीमतें भी साल में दो-तीन बार चढ़ जाती हैं। ऐसे में एक ऐसा चारा चाहिए, जो पौष्टिक हो, दूध बढ़ाए, और हर मौसम में मिल जाए। मथुरा के केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG) के वैज्ञानिकों ने इसका हल निकाला है। उनकी रिसर्च कहती है कि मोरिंगा यानी सहजन ऐसा ही चारा है, जो पशुओं की सेहत सुधारता है और पशुपालकों की जेब का ख्याल रखता है।
मोरिंगा की ताकत
मोरिंगा का चारा पशुओं के लिए वरदान है। CIRG के वैज्ञानिकों ने पाँच साल की रिसर्च में पाया कि मोरिंगा में ढेर सारा प्रोटीन, विटामिन, और मिनरल्स होते हैं। दूसरे हरे चारे के मुकाबले ये कहीं ज़्यादा पौष्टिक है। भेड़-बकरी और गाय-भैंस इसे खाकर ज़्यादा दूध देती हैं। इसकी पत्तियाँ और मुलायम तने पशु बड़े चाव से खाते हैं। खास बात ये कि मोरिंगा हर मौसम में उगाया जा सकता है, जिससे चारे की किल्लत खत्म हो जाती है। ये चारा ना सिर्फ पशुओं की सेहत बढ़ाता है, बल्कि दूध की क्वालिटी भी सुधारता है।
बुवाई का सही समय
CIRG के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. मोहम्मद आरिफ ने बताया कि मोरिंगा उगाने के लिए गर्मी और बरसात का मौसम सबसे मुफीद है। जून से इसकी बुवाई शुरू करना फायदेमंद रहता है। बरसात में मिट्टी की नमी मोरिंगा को जल्दी बढ़ने में मदद करती है। ब 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज बोए जाते हैं। खास बात ये है कि इसे पेड़ नहीं बनने देना है। 90 दिन यानी तीन महीने बाद पहली कटाई होती है, जब पौधा 8-9 फीट ऊँचा हो जाता है। इसके बाद हर 60 दिन में कटाई की जाती है।
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कटाई का सही तरीका
मोरिंगा की कटाई का तरीका भी खास है। पहली कटाई 90 दिन बाद होती है, और इसके बाद हर दो महीने में कटाई की जाती है। कटाई जमीन से एक से डेढ़ फीट ऊपर करनी चाहिए। इससे नई शाखाएँ आसानी से निकलती हैं, और चारा लगातार मिलता रहता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरीके से मोरिंगा साल भर हरा चारा देता है। कटाई के समय सावधानी रखनी चाहिए, ताकि पौधा खराब न हो। ये तरीका छोटे और बड़े पशुपालकों, दोनों के लिए फायदेमंद है।
साल भर चारा जमा करें
मोरिंगा की पत्तियाँ और तने दोनों पशुओं के लिए पौष्टिक हैं। डॉ. आरिफ के मुताबिक, पत्तियाँ ताज़ा खिला सकते हैं, और तनों को पैलेट्स बनाकर साल भर के लिए रखा जा सकता है। तनों को सुखाकर, पीसकर पैलेट्स बनाए जाते हैं, जो बकरी और गाय-भैंस बड़े चाव से खाती हैं। ये पैलेट्स बनाने का तरीका आसान है और गाँव में ही किया जा सकता है। इससे सर्दी, गर्मी, या बरसात, हर मौसम में चारे का इंतज़ाम हो जाता है। ये तरीका चारे की लागत को भी काफी कम करता है।
पशुपालकों के लिए वरदान
मोरिंगा का चारा पशुपालकों की कई मुश्किलें हल करता है। ये ना सिर्फ सस्ता और पौष्टिक है, बल्कि दूध की मात्रा और क्वालिटी भी बढ़ाता है। साथ ही, ये चारा हर मौसम में उपलब्ध है, जिससे पशुपालकों को महंगे चारे पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। CIRG की रिसर्च ने छोटे किसानों को नया रास्ता दिखाया है। गाँव के पशुपालक इसे आसानी से उगा सकते हैं और अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
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