Ramtil Variety: रामतिल, जिसे नाइजर या राम तिल के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। यह फसल खरीफ के मौसम में बारिश पर निर्भर रहकर उगाई जाती है और इसके बीजों से निकलने वाला तेल कई उद्देश्यों के लिए उपयोगी होता है। भारत के विभिन्न राज्यों में जलवायु और मिट्टी की विविधता के कारण हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग उन्नत किस्में विकसित की गई हैं। सही किस्म का चयन करके किसान कम लागत में अधिक उत्पादन और तेल प्राप्त कर सकते हैं।
रामतिल की खेती का महत्व
रामतिल की फसल छोटी अवधि में अच्छी पैदावार देती है और इसे कम संसाधनों में उगाया जा सकता है। इसके बीजों में 37 से 47 प्रतिशत तक तेल होता है, जो हल्का पीला और अखरोट जैसी खुशबू वाला होता है। यह तेल न केवल खाना पकाने के लिए उपयुक्त है, बल्कि सौंदर्य प्रसाधन, पेंट, साबुन, और इत्र उद्योग में भी इस्तेमाल होता है।
इसके अलावा, रामतिल का खल पशुओं के लिए पौष्टिक चारा है, जो दुधारू मवेशियों की दूध उत्पादन क्षमता बढ़ाता है। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए इसे हरी खाद के रूप में भी उपयोग किया जाता है, जिससे अगली फसल के लिए मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है। भारत में रामतिल की खेती करीब ढाई लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जिसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, और ओडिशा जैसे राज्य प्रमुख हैं।
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क्षेत्र के अनुसार रामतिल की उन्नत किस्में
भारत के विभिन्न राज्यों में जलवायु और मिट्टी की स्थिति के आधार पर अलग-अलग रामतिल की किस्में लोकप्रिय हैं।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जेएनसी-6 और जेएनसी-9 जैसी किस्में किसानों के बीच पसंद की जाती हैं। ये किस्में कम समय में अच्छी पैदावार देती हैं और तेल की मात्रा भी अधिक होती है।
महाराष्ट्र में आईजीपी-76 और फुले कराला-1 का उपयोग होता है, जो सूखे क्षेत्रों में भी अच्छा प्रदर्शन करती हैं।
कर्नाटक के किसान आरसीआर-317 और केबीएन-1 को चुनते हैं, क्योंकि ये किस्में स्थानीय मौसम के अनुकूल हैं और रोगों के प्रति प्रतिरोधी हैं।
ओडिशा में, जहां रामतिल को रबी फसल के रूप में भी उगाया जाता है, जीए-10 और उत्कल रामतिल-150 जैसी किस्में बेहतर परिणाम देती हैं।
झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में बिरसा रामतिल-1 और बिरसा रामतिल-2 लोकप्रिय हैं, जो कम उर्वर मिट्टी में भी अच्छी उपज देती हैं।
गुजरात में गुजरात रामतिल-1 और तमिलनाडु में पैतूर-1 जैसी किस्में स्थानीय किसानों के लिए लाभकारी साबित हुई हैं। इन किस्मों का चयन करते समय किसानों को अपनी मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए और स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए।
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रामतिल की खेती के लिए जरूरी सावधानियां
रामतिल की खेती के लिए हल्की दोमट या बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसकी बुआई जून-जुलाई में शुरू होती है, जब मानसून की पहली बारिश हो जाए। किसानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, क्योंकि अधिक पानी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। बीजों को बोने से पहले उपचारित करना जरूरी है, ताकि फफूंद और कीटों से बचाव हो। औसतन, रामतिल की उपज 3-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, लेकिन उन्नत किस्मों और बेहतर प्रबंधन से इसे 5-6 क्विंटल तक बढ़ाया जा सकता है।
रामतिल से अतिरिक्त आय के अवसर
रामतिल की खेती न केवल तेल उत्पादन के लिए लाभकारी है, बल्कि इससे कई तरह से अतिरिक्त आय भी कमाई जा सकती है। इसके बीजों का उपयोग स्थानीय बाजारों में तेल निकालने के लिए बेचा जा सकता है। साथ ही, खल को पशु आहार के रूप में बेचकर किसान अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं। कुछ क्षेत्रों में रामतिल के तेल का उपयोग हर्बल उत्पादों और आयुर्वेदिक दवाओं में होता है, जिससे किसानों को बेहतर कीमत मिल सकती है। सरकार द्वारा चलाई जा रही तिलहन मिशन योजनाओं का लाभ उठाकर किसान बीज और तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
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